गुमला के रोपना उरांव का जब कांग्रेस ने काटा टिकट, तो जनसंघ से जुड़कर दर्ज की दो बार जीत

।। दुर्जय पासवान ।। गुमला : गुमला विधानसभा सीट से 1967 व 1969 में दो बार विधायक रहे दिवंगत रोपना उरांव राजनीति के क्षेत्र में ऐसे महान शख्सियत थे. जिन्होंने आम जनता व पार्टी के कार्यकर्ताओं को मान सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. 1967 में जनसंघ में शामिल होने से पहले रोपना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 13, 2019 9:34 PM

।। दुर्जय पासवान ।।

गुमला : गुमला विधानसभा सीट से 1967 व 1969 में दो बार विधायक रहे दिवंगत रोपना उरांव राजनीति के क्षेत्र में ऐसे महान शख्सियत थे. जिन्होंने आम जनता व पार्टी के कार्यकर्ताओं को मान सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

1967 में जनसंघ में शामिल होने से पहले रोपना उरांव ने कांग्रेस से मिलकर गुमला विधानसभा से टिकट मांगे थे. परंतु कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया. जनता की सेवा का संकल्प ले चुके रोपना उरांव ने कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बाद जनसंघ में शामिल हो गये.

जनसंघ में शामिल होते ही उन्होंने बेहरतीन जीत दर्ज की और गुमला में जनसंघ की मजबूत नींव रखी. उसी का नतीजा है गुमला में आज भाजपा मजबूत स्थिति में है. रोपना उरांव ने आखिरी दम तक जनसंघ का झंडा थामे रखा.

एक पुरानी यादें हैं जो रोपना उरांव को महान बनाती है. वर्ष 1967 में जनसंघ के सर्वमान्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी जब रांची आये थे, तब गुमला के रोपना उरांव ने रांची में जाकर वाजपेयी से मिले और गुमला विधानसभा के लिए टिकट मांगा. उस समय वाजपेयी ने रोपना से पूछा था कि टिकट आपको ही क्यों दें.

रोपना ने जनता के हित व जनसंघ की मजबूती के लिए जो जवाब दिया, उससे वाजपेयी प्रभावित होकर उन्‍हें टिकट दे दिया. टिकट मिलते ही रोपना ने जीत का झंडा गाड़ दिया. रोपना उरांव दो बार विधायक रहे और राज्य मंत्री भी बने.

हालांकि 1972 में उन्हें कांग्रेस के बैरागी उरांव से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उस हार के बावजूद रोपना हताश नहीं हुए. उन्हें अपनी हार से ज्यादा चिंता अपने कार्यकर्ताओं व जनता की थी. जिनका विश्वास उनपर था.

हारने के बाद रोपना उरांव ने कहा था, जनसंघ की नींव मजबूत हो चुकी है, अब यह नहीं हिलेगी. उनकी राजनीति में आने की भी कहानी दिलचस्प थी. रोपना उरांव गुमला और पालकोट प्रखंड में सरकारी कर्मचारी के रूप काम किया था. 1936 में उनका जन्म हुआ था. 1980 में उनका निधन हुआ. मात्र 31 साल के उम्र में विधायक बने थे.

राजनीति में आने के पहले उनकी लड़ाई एक पदाधिकारी से हो गयी थी. स्वाभिमानी रोपना उरांव ने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया और जनता की सेवा के लिए राजनीति में आ गये. आज रोपना उरांव नहीं हैं, लेकिन जनजातीय बहुल गुमला जिले में उनका बड़े सम्मान से नाम लिया जाता है.

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