किस्सा, कहानी में महुआटोली गांव, अंग्रेजों से लड़ने वाले कई सेनानी इसी गांव में हुए थे पैदा

दुर्जय पासवान, गुमला देश की आजादी में अगर हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बात करते हैं, तो हमारे झारखंड राज्य के गुमला जिले में रहने वाले टाना भगतों के योगदानों को भी भुलाया नहीं जा सकता. गुमला के जंगल व पहाड़ों में रहने वाले टाना भगत महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 29, 2019 10:26 PM

दुर्जय पासवान, गुमला

देश की आजादी में अगर हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बात करते हैं, तो हमारे झारखंड राज्य के गुमला जिले में रहने वाले टाना भगतों के योगदानों को भी भुलाया नहीं जा सकता. गुमला के जंगल व पहाड़ों में रहने वाले टाना भगत महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम व अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की बिगुल फूंकने वालों में बिशुनपुर प्रखंड के चिंगरी नवाटोली गांव के जतरा टाना भगत का नाम सबसे पहले आता है.

वे देश के लिए लड़े और मर गये. सभी लोग चिंगरी नवाटोली गांव के स्वतंत्रता सेनानी जतरा टाना भगत को जानते हैं. लेकिन उन्हीं की तरह एक और वीर सेनानी थे. जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़े. इनमें रायडीह प्रखंड के महुआटोली गांव के जतरा टाना भगत हैं. आज चिंगरी नवाटोली गांव के स्वतंत्रता सेनानी जतरा टाना भगत को सभी जानते हैं. उन्हें याद भी करते हैं. लेकिन रायडीह प्रखंड के महुआटोली गांव के जतरा टाना भगत आज भी गुमनाम है.

जबकि, महुआटोली गांव के जतरा टाना भगत भी अंग्रेजों से लड़े थे. इतना ही नहीं. उनके पिता सोमरा टाना भगत भी गांधी से मिले थे. वे भी आंदोलन किये थे. आज महुआटोली गांव के जतरा टाना भगत व उसके पिता सोमरा टाना भगत इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन किस्सा, कहानी में जरूर उनका नाम लिया जाता है. उसके वंशज आज भी गांधी के जमाने में मिले दस्तावेज सुरक्षित अपने घर पर रखे हुए हैं. जो जतरा टाना भगत व उनके पिता सोमरा टाना भगत के आंदोलन की कहानी बयां करती है.

1901 से झंडा लगाते आ रहे हैं

जतरा टाना भगत के परपोता महादेव टाना भगत पेशे से सरकारी शिक्षक हैं. लेकिन आज भी महादेव अपनी मां, पत्नी व बच्चों के साथ पूरखों के घर महुआटोली गांव में रहते हैं. घर खपड़ा का है. इनके घर के आंगन में 1901 ईस्वी से झंडा फहरता रहा है. बांस के पतले डंडा में झंडा देखा जा सकता है. जिस स्थान पर झंडा है. उसी स्थान पर तुलसी का पौधा है. जहां हर रोज परिवार के लोग झंडा व तुलसी की पूजा करते हैं.

मेरे परदादा का भी प्रतिमा गांव में लगे : बेटा

परपोता महादेव टाना भगत ने कहा कि मेरे परदादा सोमरा टाना भगत ने देश के लिए लड़ाई लड़ी. सोमरा के साथ उनका बेटा जतरा टाना भगत जब होश संभाले तो वे भी गांधी जी की बातों से प्रभावित होकर देश को आजाद कराने निकल गये. 1901 से 1947 तक घर से बाहर रहे. गांधी जी के हर एक आंदोलन में भाग लेते थे. जब बिहार व झारखंड में गांधी जी आये थे तो उनके परदादा लोग भाग लिये थे. महादेव ने अपने महुआटोली गांव में जतरा टाना भगत व साथ में सोमरा टाना भगत का प्रतिमा बनवाने की मांग प्रशासन से की है.

जतरा का निधन 1955 में हुआ था : बहू

जतरा टाना भगत का बेटा सुकरा टाना भगत हुए. सुकरा की शादी दशमती टाना भगत से हुई थी. इन्हीं का बेटा महादेव टाना भगत हैं तो अभी शिक्षक हैं. जतरा की बहू दशमती बूढ़ी हो चली है. वह पुरानी बातों को स्मरण करते हुए कहती है कि उनके ससुर जतरा टाना भगत का निधन 1955 ईस्वी में हुआ था. उससे पहले ही सोमरा टाना भगत की मौत हो चुकी थी. सोमरा व जतरा टाना भगत की समाधि स्थल अपने ही जमीन में बनाया है. दशमती ने कहा कि मेरे ससुर कई आंदोलन में भाग लिये. देश आजाद हुआ तो इंदिरा गांधी से जाकर मिले थे और नीलाम जमीन को वापस दिलाने की मांग की थी. वह जमीन अब धीरे-धीरे टाना भगतों को मिल रही है.

भिखराम टाना भगत, प्रखंड अध्यक्ष, अखिल भारतीय टाना भगत विकास, रायडीह ने कहा कि महुआटोली गांव में सोमरा टाना भगत, जतरा टाना भगत, घुड़ा टाना भगत व सुना टाना भगत जैसे वीर सेनानी का जन्म हुआ था. इन लोगों ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. लेकिन आज ये लोग गुमनाम हैं. प्रशासन इन लोगों को भी सम्मान दें. 15 अगस्त, 26 जनवरी व दो अक्तूबर गांधी जयंती पर परिवार के लोगों को प्रशासन द्वारा सम्मान देना चाहिए.

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