1990 में ज्योतिंद्र प्रसाद ने तांगे से प्रचार कर चुनाव में हासिल की थी जीत

वर्तमान में लोकसभा, विधान सभा, पंचायत चुनाव व नगर निगम का चुनाव काफी मंहगा हो गया है. प्रचार-प्रसार के नया-नया तरीका अपनाया जा रहा है. बैनर-पोस्टर, फ्लैक्स, डीजे, साउंड सिस्टम, रिकॉर्डिंग गीत, रोड शो आदि के जरिये प्रत्याशी का प्रचार होता है.

By Prabhat Khabar Print | May 22, 2024 5:47 PM

फ्लैश बैक : गिरिडीह विधान सभा क्षेत्र

समशुल अंसारी, गिरिडीह.

वर्तमान में लोकसभा, विधान सभा, पंचायत चुनाव व नगर निगम का चुनाव काफी मंहगा हो गया है. प्रचार-प्रसार के नया-नया तरीका अपनाया जा रहा है. बैनर-पोस्टर, फ्लैक्स, डीजे, साउंड सिस्टम, रिकॉर्डिंग गीत, रोड शो आदि के जरिये प्रत्याशी का प्रचार होता है. लेकिन एक समय था जब कोई प्रत्याशी पैदल व तांगा के जरिये अपना प्रचार व महज चंद रुपये के खर्च कर चुनाव जीत जाते थे. हम बात कर रहे हैं गिरिडीह के पूर्व विधायक ज्योतिंद्र प्रसाद की. पूर्व विधायक ज्याेतिंद्र प्रसाद ने कहा कि वह 1990 से 95 तक विधायक रहे. उस जमाने में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता साफ-सुथरी थी. समाज में एकता व सौहार्द का माहौल रहता था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के टिकट पर वह मैदान में उतरे, कभी पैदल तो कभी तांगा और कभी पार्टी कार्यकर्ताओं के मोटरसाइकिल में सवार होकर चुनाव प्रचार किया. कहा कि चुनाव में महज चंद रुपये खर्च हुआ था. कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने सीपीआई ओमीलाल आजाद को 24 हजार 391 से हराया था. हालांकि, 1995 में वह भाजपा के चंद्रमोहन प्रसाद से हार गये थे. इस चुनाव में भाजपा के चंद्रमोहन प्रसाद को 23 हजार 123 वोट मिला था, वहीं श्री प्रसाद को 17 हजार 859 मत मिले थे.

सादगी व ईमानदारी से बनी पहचान

पूर्व विधायक श्री प्रसाद अभी भी राजनीति से जुड़े रहे हैं. कहा कि वर्तमान में राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है. कहा कि सादगी व ईमानदारी ही उनकी पहचान है और रहेगी. उन्हें पैदल चलना पसंद है. कोरोना काल में भी वे प्रतिदिन मॉर्निंग वॉक करते रहे. इसलिए वह कोरोना से बचे रहे. श्री प्रसाद हमेशा जनता की सुख-दुख में उनके साथ रहते हैं. माइका मजदूरों के अधिकार की लड़ाई उन्होंने लड़ी. श्री प्रसाद के ईमानदार छवि की चर्चा आज भी राजनीतिक क्षेत्रों में होती है.

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