एक ही भवन में चलते हैं खड़ियाकॉलोनी का पीएचसी व आंगनबाड़ी

गालूडीह, खड़ियाकॉलोनी व झाटीझरना पीएचसी बदहाल-लाचार झारखंड के ग्रामीण इलाज कराने जाते हैं बंगाल आठ पंचायतों की एक बड़ी आबादी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था से वंचित गालूडीह : घाटशिला प्रखंड के गालूडीह, खड़ियाकॉलोनी और झाटीझरना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) बदहाल है. तीनों पीएचसी महुलिया, बड़ाकुर्शी और झाटीझरना पंचायत में स्थित है. बाघुड़िया, हेंदलजुड़ी, जोड़सा, उलदा और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 21, 2017 5:23 AM

गालूडीह, खड़ियाकॉलोनी व झाटीझरना पीएचसी बदहाल-लाचार

झारखंड के ग्रामीण इलाज कराने जाते हैं बंगाल
आठ पंचायतों की एक बड़ी आबादी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था से वंचित
गालूडीह : घाटशिला प्रखंड के गालूडीह, खड़ियाकॉलोनी और झाटीझरना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) बदहाल है. तीनों पीएचसी महुलिया, बड़ाकुर्शी और झाटीझरना पंचायत में स्थित है. बाघुड़िया, हेंदलजुड़ी, जोड़सा, उलदा और बनकांटी पंचायत में प्राथमिक उप स्वास्थ्य हैं, लेकिन सिर्फ कहने को. यहां न चिकित्सक बैठते हैं और न दवाइयां हैं. गालूडीह क्षेत्र के आठ पंचायतों की एक बड़ी आबादी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था से परेशान और बेबश है. बीमार पड़ने पर ग्रामीण निजी नर्सिंग होम ही जाते हैं. बंगाल सीमा से सटे झाटीझरना पंचायत के लोग तो रहते हैं झारखंड में, लेकिन बीमार पड़ने पर इलाज कराने बंगाल जाते हैं.
गालूडीह : यहां पीएचसी है. सप्ताह में दो या तीन दिन चिकित्सक आते हैं. वह भी सुबह दस से एक बजे तक. जबकि दवाइयों का घोर अभाव है. अस्पताल कंपाउंडर और एएनएम के भरोसे ही चल रहा है.
खड़ियाकॉलोनी : खड़ियाकॉलोनी के नाम से संचालित पीएचसी पुतड़ू गांव के आंगनबाड़ी केंद्र में 2015 से संचालित है. पहले इसी गांव के हर मोहन महतो के खपरैल घर पर भाड़े पर पीएचसी चलता था. भाड़ा नहीं देने और घर के जर्जर होने से यहां से पीएचसी को खाली कर पास के आंगनबाड़ी केंद्र में सिफ्ट कर दिया गया. यहां भी सप्ताह में दो दिन ही चिकित्सक आते हैं. दवा भी नहीं है. एक ही भवन में आंगनबाड़ी और अस्पताल चलने से परेशानी होती है.
झाटीझरना : इस बीहड़ पंचायत के भोमाराडीह गांव के पास पीएचसी भवन है. यहां भी सप्ताह में दो दिन ही चिकित्सक जाते हैं.
पूर्व में कई माह तक यह पीएचसी चिकित्सक विहीन ही था. कंपाउंडर और एएनएम के भरोसे पंचायतवासियों को चिकित्सा सुविधा मिलती है. यहां के अधिकांश लोग रहते तो हैं झारखंड में, लेकिन बीमार पड़ने पर बंगाल जाते हैं इलाज कराने.

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