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सती काली के नाम से पूजी जाती है आलगपाथर की मां काली 214 वर्षों से ही रही है पूजा प्रतिनिधि, रानीश्वरप्रखंड के मयुराक्षी नदी के दक्षिणप्रांत अंतर्गत आगलपाथर गांव में 214 वर्षों से काली पूजा का आयोजन किया जा रहा है. यह काली पूजा पूरे क्षेत्र में काफी मशहूर है. यही वजह है कि इस […]

सती काली के नाम से पूजी जाती है आलगपाथर की मां काली 214 वर्षों से ही रही है पूजा प्रतिनिधि, रानीश्वरप्रखंड के मयुराक्षी नदी के दक्षिणप्रांत अंतर्गत आगलपाथर गांव में 214 वर्षों से काली पूजा का आयोजन किया जा रहा है. यह काली पूजा पूरे क्षेत्र में काफी मशहूर है. यही वजह है कि इस दिन प्रखंड क्षेत्र के अलावा झारखंड व पश्चिम बंगाल के विभिन्न क्षेत्र से लोग यहां पहुंचते हैं. आगलपाथर की काली पूजा 214 साल पहले मयुराक्षी नदी के किनारे मोहुलपुर गांव में शुरू की गयी थी, लेकिन वर्त्तमान समय में आलगपाथर गांव में यह पूजा होती है. यहां काली पूजा सतीदाह प्रथा से संबंधित है. जैसा कि इतिहास में वर्णित है कि पति की मृत्यु के बाद जिस चिता में पति को जलाया जाता था, उसी चिता में पत्नी को भी कूद कर जान देनी पड़ती थी. उस समय राजा राममोहन राय ने आगे आकर इस कुप्रथा का अंत किया था. तब यह इलाका बंगाल राज्य के अधीन था. कहा जाता है कि मोहुलपुर गांव में 214 साल पहले एक आदमी की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी ने अपने पति की चिता में कूद कर जान दे दी थी. पति की चिता में जिंदा जलने वाली महिला ने गांव के धनदास कुनुई को गांव में काली पूजा करने का स्वपन दिया था. उसी समय से यहां प्रतिवर्ष बड़े धूमधाम से कालीपूजा का आयोजन किया जाता है. कहा जाता है कि 214 साल पहले जिस ब्राहमण महिला ने अपने पति की चिता में कूद कर जान दी थी, उसने अपने हाथ में लोहे की चूढ़ी पहन रखी थी, जो उस वक्त जली नहीं थी. वह चूढ़ी मंदिर परिसर में आज भी है. जिसकी नियमित पूजा की जाती है. …………………फोटो 3 रानीश्वर 7आलगपाथर गांव का काली मंदिर………………..

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