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International Women’s Day 2021 : लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखरने के लिए धनबाद की कई महिलाओं ने चुना वकालत का पेशा

International Women's Day 2021, Jharkhand News, Dhanbad News, धनबाद : 21वीं सदी की नारी मुखर है. हर क्षेत्र में कामयाबी का नया इतिहास रच रही हैं. शिक्षा का क्षेत्र हो या साहित्य का, स्वास्थ्य हो या वकालत का, खेल का या फिर सांस्कृतिक जगत हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर यह साबित कर दिया है कि उनमें रचनात्मकता है, हौसला है, आत्मविश्वास है. बस उन्हें मौका मिलना चाहिए. धनबाद की कई महिलाएं वकालत का पेशा अपनाकर लोगों को न्याय दिलाने में जुटी है.

International Women’s Day 2021, Jharkhand News, Dhanbad News, धनबाद : 21वीं सदी की नारी मुखर है. हर क्षेत्र में कामयाबी का नया इतिहास रच रही हैं. शिक्षा का क्षेत्र हो या साहित्य का, स्वास्थ्य हो या वकालत का, खेल का या फिर सांस्कृतिक जगत हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर यह साबित कर दिया है कि उनमें रचनात्मकता है, हौसला है, आत्मविश्वास है. बस उन्हें मौका मिलना चाहिए. धनबाद की कई महिलाएं वकालत का पेशा अपनाकर लोगों को न्याय दिलाने में जुटी है.

अपने को कभी कमजोर न समझे धनबाद : सुमन चटर्जी

13 साल से महिलाओं के हक के लिए लड़नेवाली आत्मविश्वासी व निडर अधिवक्ता सुमन चटर्जी क्रिमिनल केस और पारिवारिक मामले पर विशेष ध्यान देती हैं. इनके परिवार में माता- पिता, दीदी सभी अधिवक्ता हैं. पापा से इंस्पायर होकर इस पेशे में आयी. धनबाद लॉ कॉलेज से एलएलबी और पुणे के सिंबॉसिस कॉलेज से साइबर लॉ किया है. अपने पिता को आदर्श माननेवाली सुमन कहती हैं महिलाएं कोमल जरूर हैं पर कमजोर नहीं. परिस्थिति कैसी भी हो अपने को कमजोर कभी न समझे. भारतीय संविधान ने जो अधिकार महिलाओं को दिये हैं उसकी जानकारी रखें. तभी जीवन की लड़ाई लड़ सकती हैं. बदलते परिवेश के साथ खुद को बदलना सीखें.

5 वर्षों से महिलाओं के हक के लिए लड़ रही हैं स्वाति चौरसिया

धनबाद कोर्ट में 5 साल से महिलाओं के हक के लिए लड़नेवाली स्वाति चौरसिया महिलाओं की दयनीय अवस्था को देख इस पेशे में आयी. मजिस्ट्रेट बनना इनका जीवन लक्ष्य है. उसकी तैयारी के साथ ही महिलाओं के हक की आवाज बनकर उन्हें न्याय दिला रही है. कोडरमा लॉ कॉलेज से एलएलबी कर बार एसोसिएशन धनबाद से लाइसेंस लेकर प्रेक्टिस कर रही हैं. स्वाति कहती हैं मैने अपनी खुशी के लिए यह पेशा चुना है. महिलाओं को हर मोर्चे पर तभी कामयाबी मिलेगी जब वे अंतिम क्षण तक आशान्वित होकर अपना संघर्ष जारी रखेंगी. महिला दिवस पर आधी आबादी को यही संदेश देती हैं कि सशक्त बनने के साथ जीवन लक्ष्य बनाकर उसे हासिल करने की दिशा में अग्रसर रहें. कोई साथ तभी देता है जब हम पहल करते हैं. कभी न मानें हार.

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पिता से प्रेरित हो कर मीठू आयी वकालत के पेशे में

अपने पापा से प्रेरित होकर मीठू रानी वकालत का क्षेत्र चुना. कॉलेज लाइफ से ही अधिवक्ता पिता जीवी कुमार के काले कोर्ट और महिलाओं के प्रति होनेवाले अन्याय ने इन्हें वकालत का पेशा चयन करने के लिए इंस्पायर किया. मीठू क्रिमिनल केस में अधिक दिलचस्पी रखती हैं. 20वीं सदी हो या 21वीं महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहींं आया हैं. मीठू कहती हैं आज भी महिलाओं का जीवन संधर्षपूर्ण है. महिलाओं को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि संधर्ष के बाद जो कामयाबी मिलती है वह जीने का हौसला देती है. कामयाब होकर हमेशा उन महिलाओं का आसरा बनें जो उपेक्षित और प्रताड़ित हैं. आठ मार्च हमें यह बताने के लिए आता है कि हमें संगठित होना है. कभी हार न मानना है.

जीवन के कई बातों से इत्तिफाक रखती हैं अधिवक्ता आशा कुमारी

7 साल से कोर्ट में आधी आबादी के हक के लिए आवाज उठा रही हैं, उन्हें न्याय दिला रही हैं. धनबाद लॉ कॉलेज से एलएलबी कर प्रैक्टिस कर रही हैं. अपने पापा के सपने को पूरा करने के लिए इस पेशे में आयीं. आशा कहती हैं मेरे पिता मेरा नाम आशा रखकर हमेशा आशांवित रहने की बात कहते थे. मेरा सिद्धांत हैजीवन में आगे बढ़ने के लिए संधझर्ष का पहला कदम स्वंय उठाना पड़ता है. हमारे पास कई ऐसे केस आते हैं जिसमें महिलाएं अज्ञानता के कारण अन्याय सहती रहती हैं. महिला दिवस की सभी बहनों को शुभकामना देने के साथ यही कहना चाहती हूं कि आधी आबादी हर वो काम कर सकती हैं जिसे करने की ठान लें. कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता एक पत्थर तबियत से उदालनेकी जरूरत है.

संजू कुमारी ने बचपन से संघर्ष करना सीखें

धनबाद कोर्ट में 5 साल से वकालत कर रही संजू कुमारी अपने पिता अनिल कुमार कौशल की इच्छा से इस पेशे में आयी. इनके पिता BCCL में कार्यरत थे. कुछ केस चल रहा है. केस की वकालत संजू नाम की वकील कर रही थी. अपने वकील की बहस से प्रेरित होकर अपनी बेटी का नाम संजू रखा और वकील बनाने की बात सोची. संजू बताती है कि पापा की प्रेरण से इस पेशे में आयी. संघर्ष तो हमें बचपन से करना पड़ता है. आधी आबादी की कामयाबी हमारे समाज में जल्दी से स्वीकार करना कठिन होता है. मुझे उस वक्त बहुत खुशी होती है जब किसी पीड़िता को उसका हक दिलवाती हूं. कहती हैं कि संविधान में कुछ बदलाव की जरूरत है. महिलाओं से यही कहना है कि शिक्षित बनें, तभी सबल बनेंगी. परिवार समाज के लिए जीने के साथ स्वयं के लिए भी जीना सीखें.

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शक्ति पहचान कर लें निर्णय

धनबाद लॉ कालेज से एलएलबी कर विगत पांच सालों से आधी आबादी को उनका अधिकार दिला रही हैं नागमति सिंह. कोर्ट में प्रैक्टिस के साथ जूडिशियरी की तैयारी भी कर रही हैं. क्रिमिनल केस ज्यादा देखती हैं. वर्तमान परिवेश में महिलाओं की उपलब्धि की पक्षधर होने के साथ महिलाओं को अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने की बात कहती हैं. इनका कहना है सिर्फ 8 मार्च ही महिला दिवस क्यों. वो कौन- सा दिवस है जो महिलाओं के बिना हो सकता है. बचपन से लेकर जीवन के अंतिम पड़ाव तक आधी आबादी का संघर्ष किसी न किसी रूप में जारी रहता है. मेरी नजर में हर दिन महिला दिवस है. यह दिवस तभी सार्थक हो सकता है जब महिलाएं संगठित होकर आगे बढ़ेंगी. अन्याय के खिलाफ आवाज उठायेंगी.

Posted By : Samir Ranjan.

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