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जिंदगी को बोझ की तरह ढोना नहीं है, आनंद और मौज में रहो

धनबाद : वर्तमान परिवेश की यह विडंबना है कि ‘बेटी बचाओ बेटी-पढ़ाओ’ कहना पड़ रहा है. कन्या भ्रूण हत्या और दहेज सामाजिक बीमारी है. सही शिक्षा के अभाव में ऐसा हो रहा है. जिस तरह मंदिर में दान देने पर रसीद मिलती है उसी तरह बेटी परमात्मा द्वारा पुण्य कर्मों के एवज में गयी रसीद […]

धनबाद : वर्तमान परिवेश की यह विडंबना है कि ‘बेटी बचाओ बेटी-पढ़ाओ’ कहना पड़ रहा है. कन्या भ्रूण हत्या और दहेज सामाजिक बीमारी है. सही शिक्षा के अभाव में ऐसा हो रहा है. जिस तरह मंदिर में दान देने पर रसीद मिलती है उसी तरह बेटी परमात्मा द्वारा पुण्य कर्मों के एवज में गयी रसीद है.
जैसे ही पारिवारिक सदस्यों को पता चलता है मां के गर्भ में पलनेवाली संतान लड़की है, उसे नष्ट कराने की योजना बनने लगती है. लोग मानते हैं बेटियां भगवान का प्रसाद नहीं होती. समाज ने बहुत पाप किये हैं. कन्या भ्रूण हत्या की है. जिस वजह से लड़कों की संख्या लड़कियों से अधिक हो गयी है. शर्म की बात है आदिवासी इलाके से लड़की खरीदी जाती है. स्त्री को भोग्या समझा जाता है. बहू बेटी बहन के साथ अभद्रता करनेवाले समाज के लिए गाली हैं, कलंक हैं. अभया कांड पर खूब आंदोलन हुए. अभी एक अभया मरी है, कितने और मरेगी. ऐसी घटना पर सख्त दंड का प्रावधान जरूरी है. बंगलुरू सहित देश के कई स्थान में ऐसी घटनाएं हो रहीं हैं. घटना होती रहेगी और तब तक नही रुकेगी जब तक लोग चरित्रवान नही बनेंगे. ये बातें गोल्फ ड्राउंड में कथा वाचक रमेश भाई ओझा ने व्यास पीठ से श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान महोत्सव के पांचवें दिन गुरुवार को कही.
जरूरत है चरित्र निर्माण की : शिक्षा प्रणाली ऐसी बने, जहां डॉक्टर इंजीनियर नहीं सच्चे इनसान का निर्माण हो. नहीं तो पढ़े-लिखे भी राक्षस वृत्ति से युक्त होते हैं. मौजूदा समय में चरित्र निर्माण की जरूरत है. बच्चों को चरित्रवान बनाने की जरूरत है. केवल साक्षर न बनायें. शिक्षा नीति में आमूल परिवर्तन की जरूरत है.
ये कैसी शिक्षा प्रणाली : ये कैसी शिक्षा प्रणाली है. पढ़ने के बाद सभी सरकारी नौकरी चाहते हैं. जहां कुछ करना न पड़े. यह चरित्र का पतन है. पढ़ानेवाले नौकर हो गये तो नौकर ही पैदा होगा. गुरुकुल में गुरु पढ़ाते थे तो गुरु पैदा होता था. पढ़ानेवाले के प्रति गुरु भावना नहीं आयेगी तो विद्या कैसे आयेगी. शिक्षक नौकरी नहीं करें गुरु की भावना से पढ़ायें. ज्ञान बांटें. शिक्षक अपना चरित्र ऐसा बनायें कि लोग आदर देने के लिए बाध्य हो जायें. गुरुवाली निष्ठा नहीं होगी तो काम के प्रति लगाव नहीं होगा. जो पाश से बंधा है पशु है. विद्या चाहिए तो शिव की उपासना करें. सर्व विद्या के अधिपति शिव हैं.
अविरल बहनेवाली धारा है राधा : राधा कृष्ण की अविरल बहनेवाली धारा है. धारा को धाराप्रवाह बोलने से वह राधा बन जाती है. श्रीमद् भागवत में राधा का नाम नहीं काम है. काम बोलता है. भागवत में भक्तिवाला भीगापन राधा है. राधा कृष्ण की अलादीनी शक्ति है. प्रेम स्वरूपा भक्ति स्वरूपा है. राधा गोपी है. प्रसिद्धि के पीछे नहीं भागती है. प्रेम ऐसी चीज है जितना छुपाओ उतना बढ़ेगा. प्रेम में संगोपन होना चाहिए. जो कृष्ण को हृदय में छुपाये रहती है वह है गोपी. जो अपने इंद्रियों द्वारा भक्ति रस का पान करती है वह है गोपी.
कृष्ण के बिना जीवन नीरस है : कृष्ण जीवन में हैं तो जीवन सरस है, नही हैं तो जीवन नीरस है. नीरस जीवन बोझ और सरस जीवन उत्सव हो जाता है. जिंदगी को बोझ की तरह ढोना नहीं है. आनंद में, मौज में रहो. जीवन में कृष्ण है तो प्रत्येक क्षण उत्सव है. जीवन को उत्सव बनाना है या सजा यह मनुष्य पर निर्भर करता है. हमारा संकल्प कल्याणकारी होना चाहिए. संकल्प शिव होना चाहिए. मनुष्य स्वयं स्वर्ग और नरक का निर्माण करता है. इसके लिए दूसरों को दोष क्यों देता है. दूसरा मुझे दु:ख दे रहा है यह कुबुद्धि है.
परमात्मा है कल्पवृक्ष : सुख सकारात्मक विचार है. कोई भी शुभ कार्य करते समय संकल्प कराया जाता है. सब कुछ संकल्प से होता है. परमात्मा कल्पवृक्ष है. कल्पवृक्ष की साया में हम बैठे हैं. जैसा सोचोगे, वैसा ही होगा. अपनी सोच बदलो. जिसका कोई विकल्प न हो उसे संकल्प कहते हैं. निर्णायक शक्ति की जीत होती है. तुम्हारी सृष्टि तुम्हारे संकल्प से बनेगी. वह संकल्प शिव संकल्प है. तुम्हारा स्वार्थ, जिद, अहंकार परिवार को नरक बना देगा. तुम्हारा समर्पण, लचीलापन, परमार्थ, दूसरों के लिए जीने का भाव घर को स्वर्ग बना देगा. अपने विचारों, संकल्पों का महत्व समझो. भागवत संकल्प का परिणाम है.
प्रेम रहित जीवन अपराध है : सामान सोच वालों के बीच मैत्री होती है. हमारे जीवन में कृष्ण हों, उसके चलते आनंद हो. जीवन में उत्सव हो. भक्ति ही भगवान को प्रसन्न करती है. आपका बोलना, चलना, सोना सब कृष्ण की अराधना है. बिना राधा अराधना नही हो सकती. राधा जिंदगी से निकल गयी यानी कृष्ण प्रेम की धारा निकल जाये तो उसे अपराध कहते हैं. प्रेम रहित जीवन अपराध है. प्रेम रहित हर सांस अपराध है.

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