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गड़बड़झाला. निगम की गाड़ी व मलाई खा रहे ट्रांसपोर्टर

धनबाद: तामझाम के साथ 16 जून को 23 लाख खर्च कर 22 सिटी बसों को सड़कों पर उतारा गया. आउटसोर्स पर सात ट्रांसपोर्टरों को बस हैंडओवर किया गया. एग्रीमेंट के मुताबिक ट्रांसपोर्टरों को प्रति बस प्रतिदिन ढाई से लेकर चार सौ रुपये किराया देना था. पांच माह में लगभग नौ लाख रुपया किराया आना चाहिए […]

धनबाद: तामझाम के साथ 16 जून को 23 लाख खर्च कर 22 सिटी बसों को सड़कों पर उतारा गया. आउटसोर्स पर सात ट्रांसपोर्टरों को बस हैंडओवर किया गया. एग्रीमेंट के मुताबिक ट्रांसपोर्टरों को प्रति बस प्रतिदिन ढाई से लेकर चार सौ रुपये किराया देना था. पांच माह में लगभग नौ लाख रुपया किराया आना चाहिए था लेकिन निगम को मात्र तीन लाख रुपया ही मिला.
गाड़ी खराब होने का हवाला देते हैं ट्रांसपोर्टर : निगम सूत्रों के मुताबिक कुछ ट्रांसपोर्टर तय किराया नहीं दे रहे हैं. गाड़ी खड़ा रहने व गाड़ी खराब होने का हवाला देते हैं. इसकी जांच की जा रही है. जो ट्रांसपोर्टर गलत कर रहे हैं उन्हें ब्लैक लिस्ट किया जायेगा.
मामले में ऑडिट ने उठाया सवाल
: महालेखागार की ऑडिट टीम ने सिटी बस के आउटसोर्स पर सवाल उठाया है. पूछा है कि किस आधार पर इतना कम किराया पर ट्रांसपोर्टरों को दिया गया. यही नहीं बसों की मरम्मत पर 23 लाख के खर्च पर भी ऑडिट ने ऑब्जेक्शन किया है.
6.52 करोड़ में खरीदी गयी थीं सिटी बसें : जेएनएनयूआरएम के तहत सात अगस्त 2010 को नगर बस सेवा शुरू की गयी. प्रथम चरण में 48 बसों को सड़कों पर उतारा गया. दूसरे चरण में 22 बसों को मंगाया गया. बसों की खरीद में कुल 6.52 करोड़ खर्च हुए. भूतपूर्व कल्याण समिति की देखरेख में बसों का परिचालन शुरू हुआ. मुश्किल से दो माह भी समिति ने हाथ खड़े कर लिये. इसके बाद जेटीडीसी(झारखंड टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) की देखरेख में परिचालन शुरू हुआ. लेकिन लूट खसोट के कारण मुश्किल से तीस बसें ही नियमित रूप से चली. पांच बसों को देवघर भेजा गया. वर्ष 2014 तक बसों का परिचालन ठप हो गया. कुछ बसें तो खड़ी-खड़ी सड़ गयी.
छह बस बनकर तैयार : छह बस बन कर तैयार है. रूट तय नहीं होने के कारण सड़कों पर बसों को उतारा नहीं जा रहा है. एक-दो बसों को महिला कॉलेज में चलाने की योजना है. बसों की मरम्मत का टेंडर संगम इंटरप्राइजेज को मिला है.
आदेशानुसार बसों को सड़कों पर उतारा जायेगा
सिटी बस काफी पुरानी हो गयी है. बसों को चलाना घाटा का सौदा है. एक बस की मरम्मत पर लगभग पचास हजार खर्च हो रहे हैं. ऑन रोड करने में 1.50 लाख खर्च है. वरीय पदाधिकारी का जैसा आदेश होगा. उसके अनुसार आगे बसों को सड़कों पर उतारा जायेगा.
अमित कुमार, सहायक अभियंता(यांत्रिक)

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