शाम को श्रीधाम वृंदावन से आये व्यास आचार्य प. श्री ब्रजेशजी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि मनुष्य को सौ कार्य छोड़ भोजन करना चाहिए. हजार कार्य छोड़ कर नहाना चाहिए और सारे कार्य छोड़ कर भगवान का भजन करना चाहिए. जिस परमात्मा ने हमें जीवन दिया है, हमें उसका स्मरण करना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर हमारा जीवन व्यर्थ है.
ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए महाराज ने कहा कि भक्त के लिये भगवान को पत्थर से भी प्रकट होना पड़ता है. ध्रुव ने पांच वर्ष की ही आयु में भगवान को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर पृथ्वी पर आने को विवश किया. भक्त प्रह्लाद की कथा वृतांत के उपरांत कहा कि हमें अपनी संतानों को बचपन से ही अच्छे संस्कार देने चाहिए. क्योंकि भक्त प्रह्लाद ने बचपन से ही भगवान के प्रति अपना जीवन समर्पण कर दिया था. तभी श्री भगवान ने हिरण्यकश्यप से उसकी रक्षा की. उन्होंने कहा कि अहंकार व्यक्ति के पतन का कारण होता है. गुरुवार की शाम कथा सुनने बड़ी संख्या में श्रद्धालु आये थे.