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पर्यावरण के एक नंबर दुश्मन से लड़ाई का अस्त्र नहीं

धनबाद: पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग कोयलांचल में धड़ल्ले से हो रहा है. ऐसा नहीं कि इसके नियंत्रण के लिए प्रयास न किया गया हो. समय-समय पर इसे रोकने के लिए प्रशासन व प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा पहल भी की गयी, लेकिन वह केवल खानापूर्ति साबित हुई. पिछले पांच साल के […]

धनबाद: पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग कोयलांचल में धड़ल्ले से हो रहा है. ऐसा नहीं कि इसके नियंत्रण के लिए प्रयास न किया गया हो. समय-समय पर इसे रोकने के लिए प्रशासन व प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा पहल भी की गयी, लेकिन वह केवल खानापूर्ति साबित हुई. पिछले पांच साल के दौरान सरकार के दिशा निर्देश पर कई दफा अभियान चला कर इसे रोकने का प्रयास हुआ, लेकिन पूरा बेअसर रहा.
प्रतिबंधित पॉलीथिन से क्या है नुकसान: बाजार में 40 माइक्रॉन से पतला पॉलीथिन की बिक्री व उपयोग पर कानून प्रतिबंध है. क्योंकि इससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है. पॉलीथिन एक ऐसा मैटेरियल है जो स्वत : समाप्त नहीं होता. पतला पॉलीथिन जहां तहां फेंक देने पर उसे जानवर खा लेते हैं, और पचा नहीं पाते हैं. इससे जानवर की मृत्यु तक हो सकती है. मिट्टी में मिल कर सड़ता नहीं है. पूरी मिट्टी को उर्वराहीन कर देता है. इस तरह से यह पर्यावरण का बहुत बड़ा दुश्मन है.
जिम्मेवारी पर मतभेद मुख्य बाधा: प्रतिबंधित पॉलीथिन के उपयोग को रोकने के लिए 2011 में राज्य सरकार ने माना कि इसे रोकना अकेले किसी विभाग के बूते की बात नहीं है. इसलिए मिला-जुला प्रयास होना चाहिए. ऐसे अलग-अलग विभाग को अलग-अलग जिम्मेवारी दी गयी. प्रदूषण नियंत्रण विभाग की जिम्मेवारी इसका निर्माण न हो, उसे रोकना है. जबकि बाजार में इसको रोकने की जिम्मेवारी नगर निगम व प्रशासन की थी. लेकिन जिम्मेवारी तय करने के दौरान यह स्पष्ट नहीं किया गया कि मामले में कानूनी कार्रवाई कराने की जिम्मेवारी किसकी होगी.
पकड़ाने के बाद भी केस नहीं : इसके खिलाफ 2012 मे चले अभियान के दौरान पुराना बाजार में प्रतिबंधित पॉलीथिन दुकानदारों को बेचने वाले कुछ व्यवसायियों को प्रशासन ने रंगेहाथ पकड़ा था. लेकिन उसके खिलाफ केस करने को लेकर मतभेद छिड़ गया. प्रशासन ने प्रदूषण नियंत्रण पर्षद को केस करने को कहा तो उसने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि केस करने का विभाग को कोई आदेश नहीं है. ऐसे में आरोपियों के खिलाफ केस तक नहीं हो सका और यह जान कर अन्य लोग भी निडर हो गये.
नहीं रुकने का यह भी कारण : प्रतिबंधित पॉलीथिन को बाजार में रोकने के लिए 40 माइक्रॉन या उससे अधिक मोटी पॉलीथिन का उपयोग की तैयारी भी विफल रही. इसके तहत तय हुआ था कि उपयोग वाली पॉलीथिन का भाव नगर निगम तय करेगा. तथा कोई भी दुकानदार नि: शुल्क पॉलीथिन में सामान देने की बजाय ग्राहक से राशि लेकर पॉलीथिन देगा. लेकिन इसकी दर तय करने की जिम्मेवारी नगर नगर निगम को दी गयी थी. नगर निगम ने तीन साल के दौरान अब तक दर तय नहीं की.
वर्तमान स्थिति : नाम न छापने की शर्त पर प्रदूषण नियंत्रण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि अप्रैल 2015 में केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रलय अपनी साइट पर एक ड्राफ्ट जारी कर चार मामले पर नियम में संशोधन के लिए आमजन की टिप्पणी ले रही है.

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