धनबाद: छह हजार करोड़ रुपया से भी ज्यादा राजस्व देने वाला धनबाद रेल मंडल के कर्मी छह दशक पुराने जजर्र फर्नीचर का उपयोग करने को विवश हैं. कमाई के मामले में पूरे देश में दूसरे स्थान पर रहने वाला धनबाद रेल मंडल कार्यालय की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है. अभी भी डीआरएम कार्यालय को पूरी तरह से कॉरपोरेट लुक नहीं दिया जा सका है.
कुछ कमरे को छोड़ दिया जाये तो अधिकांश की हालत खासकर कर्मचारियों के लिए बने हॉल या कक्ष की स्थिति बेहद खराब है. कई कार्यालय कक्ष में तो दशकों पुराना मेज, कुरसी लगी हुई है. इन फर्नीचरों पर इस्ट इंडिया कंपनी की मुहर लगी हुई है. यानी इस तरह के सारे फर्नीचर देश की आजादी के पहले के हैं.
पांच दशक पुराना है मंडल : धनबाद में पहली रेल लाइन कोलियरी क्षेत्र में 1894 में बिछायी गयी थी. वर्ष 1946 में धनबाद को आसनसोल रेल मंडल का सब – डिवीजन बनाया गया. वर्ष 1963 में धनबाद पूर्ण रेल मंडल बना. यानी धनबाद रेल मंडल कार्यालय बने पांच दशक पूरे हो चुके हैं. इस काल खंड में इस मंडल ने कई उतार-चढ़ाव देखे. अरबों रुपये का राजस्व देने वाले इस रेल मंडल की उपेक्षा का आरोप हमेशा लगता रहा है. जन प्रतिनिधि से ले कर रेल यूनियन के नेता भी हमेशा धनबाद के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाते रहे हैं.
कंप्यूटरीकरण भी पूरा नहीं : डीआरएम ऑफिस के प्राय: विभागों में अभी भी फाइल सरकती है. कुछ ही विभागों में ही कंप्यूटर लगा है. आम तौर पर रेलकर्मी फाइल पर झुक कर काम करते दिख जायेंगे. लेकिन अफसरों के पास कंप्यूटर है.