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धनबाद-कतरास आने-जाने में खर्च ज्यादा और हिचकोले भी, कहां वह रेल यात्रा और कहां यह ऑटो का सफर

धनबाद: धनबाद से कतरास के बीच आने-जाने में एक व्यक्ति को अमूमन 20 रुपये अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं. इसके अलावा सड़कों का गर्दो-गुबार और प्रदूषित हवा खानी पड़ रही है. कुछ जगहों पर जर्जर सड़कों के हिचकोले खाने पड़े. धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन बंद होने के बाद यद्यपि विकल्प के रूप में सड़क मार्ग […]

धनबाद: धनबाद से कतरास के बीच आने-जाने में एक व्यक्ति को अमूमन 20 रुपये अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं. इसके अलावा सड़कों का गर्दो-गुबार और प्रदूषित हवा खानी पड़ रही है. कुछ जगहों पर जर्जर सड़कों के हिचकोले खाने पड़े. धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन बंद होने के बाद यद्यपि विकल्प के रूप में सड़क मार्ग है, लेकिन रेल यात्रा से तुलनात्मक रूप में यह महंगा और थकाने वाला है. विदित हो कि धनबाद से कतरास का पैसेंजर में किराया 10 रुपया था, जबकि ऑटो का किराया 20 रुपये है.
दिन भर ऑटो उपलब्ध : धनबाद स्टेशन रोड पर कतरास के लिए दिन भर ऑटो उपलब्ध है. पूर्वाह्न 11. 56 बजे ऑटो (जेएच 10 एक्यू, 5494) पर हम कतरास के लिए निकले. ऑटो में एसएसएलएनटी कॉलेज की दो छात्राएं भी थीं. उनका कहना था : ट्रेन बंद होने से परेशानी बढ़ गयी है. अब तो किराया के साथ समय भी ज्यादा लगता है. इससे कतरास की कई छात्राओं ने कॉलेज आना लगभग छोड़ दिया है. बहुत जरूरी होने पर ही कॉलेज आती हैं. इस कारण पूरी कक्षाएं नहीं कर पातीं और पढ़ाई पीछे छूटते जा रही है.
ऊफ यह जाम: श्रमिक चौक से आगे का रास्ता कठिनाइयों से भरा था. जाम, धूल-धक्कड़ और धुअां. इसी बीच श्रमिक चौक पर तीन छात्र पीछे की सीट पर बैठ गये. बैंक मोड़ तक गाड़ियों की लंबी कतार लगी थी. कतार में शामिल होने के बाद हमारा ऑटो रैंगने लगा. पांच मिनट का रास्ता 25 मिनट में तय हुआ. खैर हम बैंक मोड़ पहुंच गये तो जान में जान आयी.
नया मोड़ से सिजुआ मोड़ तक सड़क जर्जर : बैंक मोड़ में एक दो और यात्री ऑटो पर बैठे और हम कतरास के लिए निकल पड़े. मटकुरिया के आगे बीसीसीएल के एरिया ऑफिस के पास थोड़ी बहुत सड़क जर्जर थी. लेकिन ज्यादा परेशानी ऑटो में बैठे लोगों को नहीं हुई. ऑटो तेज गति से भाग रहा था. दोपहर 12.35 बजे हम केंदुआ, 12.43 बजे लोयाबाद चौक, और 12.52 बजे सिजुआ नया मोड़ पहुंचे. उसके बाद नया मोड़ से लेकर सिजुआ मोड़ तक की सड़क बहुत खराब मिली. वहां काफी धूल उड़ रही थी जिसके कारण लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. ऑटो में बैठे लोग रेल यात्रा के दिनों को याद करने लगे. उनका कहना था कि ऑटो में थकान भी ज्यादा होती है और आप एक बार से दूसरी बार धनबाद-कतरास की यात्रा को सोच भी नहीं सकते. जबकि ट्रेन में समय और धन की बचत के साथ-साथ यात्रा भी आरामदायक होती थी. अपराह्न 01.10 बजे हम अपनी मंजिल कतरास नदी किनारे पहुंच गये थे. ऑटो यहां रुक गया.
पूजा पर पड़ेगा असर: कतरास का दुर्गापूजा पूरे जिले में मशहूर है. यहां चार से छह दिनों तक मेला लगता है. जिले भर के लोग यहां आते हैं. अाम दिनों में जहां प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार यात्री ट्रेनों से सफर करते थे, वहीं पिछले साल दुर्गापूजा में प्रतिदिन 25 से 35 हजार यात्री ट्रेनों से सिर्फ कतरास दुर्गापूजा देखने जाते थे. इस साल इतने लोग नहीं जा पायेंगे.
क्योंकि पूजा के दौरान सड़क मार्ग में तरह-तरह के व्यवधान रहते हैं. प्रशासन भी रूट डायवर्ट करता है. किराये की गाड़ियों से बहुत परेशानी होती है.

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