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कार्यक्रम.”चीन की चुनौती और स्वदेशी” पर पीके राय में व्याख्यान, बोले कश्मीरी लाल, हम दे रहे हैं चीन को 18 गुणा लाभ

धनबाद: पेटेंट के नाम पर हमारा आर्थिक शोषण किया जाता रहा है. एक विदेशी कंपनी ने ब्लड कैंसर की दवा की कीमत एक लाख 65 हजार रुपये रखी थी. वहीं छह भारतीय कंपनियों ने उससे अच्छी दवा बनायी और मुनाफा सहित सभी खर्च जोड़ कर कीमत 6,500 रुपये निर्धारित की. इस तरह विदेशी कंपनियों के […]

धनबाद: पेटेंट के नाम पर हमारा आर्थिक शोषण किया जाता रहा है. एक विदेशी कंपनी ने ब्लड कैंसर की दवा की कीमत एक लाख 65 हजार रुपये रखी थी. वहीं छह भारतीय कंपनियों ने उससे अच्छी दवा बनायी और मुनाफा सहित सभी खर्च जोड़ कर कीमत 6,500 रुपये निर्धारित की. इस तरह विदेशी कंपनियों के आर्थिक शोषण को समझा जा सकता है.

चीन के सामानों का थोड़ा बहुत बहिष्कार बेकार नहीं जाता है. छह लाख 50 हजार करोड़ रुपये का सामान चीन से आता है. वहीं मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति 25 बिलियन डॉलर है और इस तरह इनकी ढाई गुणा संपत्ति हम चीन को दे देते हैं. हम चीन को 18 गुणा लाभ देते हैं. और पैसे देकर कुछ अच्छा सामान लाएं तो एक बात थी, लेकिन सस्ता के चक्कर में बार-बार खराब होने वाला सामान खरीद लेते हैं. उक्त बातें स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संघटक कश्मीरी लाल ने कही. वह सोमवार को पीके राय मेमोरियल कॉलेज में राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान के तहत व्याख्यान को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे. व्याख्यान का विषय ‘चीन की चुनौती और स्वदेशी’ था.

बनने लगे सस्ते में कंबल : श्री लाल ने कहा कि कंबल के मामले में आज पानीपत 100 प्रतिशत स्वदेशी हो गया है और हालत चीन को कंबल एक्सपोर्ट करने जैसी हो गयी है. पहले चीन से मशीन से कंबल बन कर आता था, जो काफी सस्ता होता था. इस कारण कंबल व्यवसाय से जुड़े करीब एक लाख लोग बेरोजगार हो गये थे. अपने देश में एक मशीन बनायी गयी और उससे भी सस्ता और अच्छा कंबल का निर्माण होने लगा. देखते ही देखते बेरोजगार हुए एक लाख लोगों में 80 हजार को पुन: रोजगार मिल गया.
स्वदेशी अपनाने की जरूरत : विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के कुलपति डॉ रमेश शरण ने कहा कि एक समय था जब आत्मनिर्भरता हमारा मूल मंत्र हुआ करता था. 1985 के बाद वक्त बदला और हमें स्वदेशी जैसा मूल मंत्र अपनाने की जरूरत पड़ गयी. आज भी वैश्वीकरण के बाजार में 500 कंपनियों का ही कब्जा है. जबकि पहले ऐसा नहीं था. विकसित देशों के पास पैसा बहुत ज्यादा जमा हो गया है. वे एफडीआइ का रूप लेकर हमारे जैसे देशों में निवेश कर रहे हैं. दुनिया में पहले गेट्स का समझौता हुआ था, जो केवल वस्तुओं को लेकर था. बाद में सर्विस और शिक्षा को जोड़ दिया गया, जो गलत है. 1970 के पहले प्रक्रिया का पेटेंट होता था, लेकिन प्रोडक्ट का पेटेंट नहीं होता था. इससे भारत को जबरदस्त नुकसान हुआ था. शोध केंद्र सार्वजनिक क्षेत्र के नहीं रह गये, जिस पर व्यापक नियंत्रण की जरूरत है. पहले धान के 116 तरह के बीच झारखंड में मिलते थे और 2012 में केवल छह-सात तरह के बीच मिलने लगे. कंपनियों ने जान बूझ कर ऐसा किया कि बीज उनसे ही लेना पड़े. अब के बीज बांझ हो गये हैं. हमने ज्यादा मुनाफा के चक्कर में अपने बीज खो दिये.
बड़ी कंपनियों की चाल : वेलेंटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे मनाना बड़ी कंपनियों की ही चाल है. चीन में राष्ट्रीयता की भावना बहुत अधिक है. हम खुद को गुजराती, मराठी, बंगाली कहने में गर्व महसूस करते हैं. स्वदेशी के लिए राष्ट्रवाद बहुत जरूरी है. मेक इन इंडिया में मेक फोर इंडिया, मेक बाइ इंडिया को जोड़ा जाये, तब जाकर देश विकसित होगा. प्राचार्य डॉ एसकेएल दास ने कहा कि चीन के विकास का कारण उसकी राष्ट्रीयता है. मौके पर राजेश उपाध्याय, जय प्रकाश देवरालिया, सतीश्वर प्रसाद, बंशीधर रुख्यार आदि मौजूद थे.

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