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कलोदी के इंजीनियर बनने के सफर पर ग्रहण
धनबाद/सिंदरी: एक तरफ सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान पूरे जोर-शोर से चला रही है. दूसरी तरफ, एक गरीब आदिवासी छात्रा का इंजीनियर बनने का सपना एक सरकारी तकनीकी संस्थान में ही आर्थिक परेशानियों के कारण टूटने के कगार पर है. स्कॉलरशिप के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. लेकिन, इस मेधावी […]
धनबाद/सिंदरी: एक तरफ सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान पूरे जोर-शोर से चला रही है. दूसरी तरफ, एक गरीब आदिवासी छात्रा का इंजीनियर बनने का सपना एक सरकारी तकनीकी संस्थान में ही आर्थिक परेशानियों के कारण टूटने के कगार पर है. स्कॉलरशिप के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. लेकिन, इस मेधावी छात्रा को एक वर्ष से भी ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद स्कॉलरशिप के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं मिल पायी. बात हो रही है सिंदरी स्थित बीआइटी में केमिकल इंजीनियरिंग की छात्रा कलोदी मरांडी की.
बचपन से ही है मेधावी : जामताड़ा जिले के कुंडहित प्रखंड के सुपसतिया गांव की रहने वाली कलोदी का सपना केमिकल इंजीनियर बनने का है. तमाम आर्थिक परेशानियों व संसाधनों की कमी के बावजूद कलोदी ने मैट्रिक, इंटर की परीक्षा में अच्छे अंक से पास की. अपनी मेधा के बल पर झारखंड संयुक्त प्रवेश परीक्षा में पास करने के बाद बीआइटी सिंदरी में केमिकल इंजीनियरिंग के लिए चयनित हुई. कलोदी ने अपनी आरंभिक पढ़ाई कुंडहित में ही उत्क्रमित उच्च विद्यालय में की. उसके बाद 12वीं तक की पढ़ाई जामताड़ा स्थित नवोदय स्कूल में हुई. स्कूल के समय से ही कलोदी में पढ़ाई के प्रति गजब का लगन रहा है. जब सभी बच्चे खेलते थे, उस समय भी कलोदी अपना ज्यादातर समय पढ़ाई में देती थी. कलोदी ने 12वीं के बाद इंजीनियरिंग की तैयारी दादर नगर हवेली में दक्षिणा फाउंडेशन में की. उसकी मेधा को देखते हुए दक्षिणा फाउंडेशन ने पढ़ाई, रहने-खाने के लिए कोई पैसे नहीं लिये. कोचिंग के दौरान कलोदी ने दो बार आइआइटी की परीक्षा दी. कुछ ही नंबरों की कमी के कारण कलोदी आइआइटी की परीक्षा में सफल नहीं हो पायी. आइआइटी में सफल नहीं होने पर कलोदी टूट-सी गयी. उसी समय उसे सुपर 30 के आनंद कुमार का साथ मिला. चार महीने तक कलोदी हॉस्टल में रही. बाद में आनंद कुमार के घर में. सुपर 30 में एडमिशन के समय ही आनंद कुमार ने वादा किया था कि अगर कोचिंग क्लास के दौरान उसका प्रदर्शन बढ़िया रहेगा तो आगे कोचिंग की पढ़ाई वो उसे अपने घर में करायेंगे. कोचिंग की तैयारी के बाद कलोदी बीआइटी सिंदरी में सफल हो गयी और उसे केमिकल इंजीनियरिंग ब्रांच मिला.
51 हजार के लिए फंसी है पढ़ाई
कलोदी कहती हैं कि तीसरे सेमेस्टर में नामांकन के लिए उसे तीन हजार रुपये मासिक मेस फीस, पांच हजार रुपये वार्षिक छात्रावास शुल्क, दो हजार रुपये वार्षिक बिजली बिल के अलावा आठ हजार रुपये ट्यूशन फीस भरना है. कुल 51 हजार रुपये एक वर्ष की पढ़ाई के लिए चाहिए. उसने कॉलेज प्रबंधन से इन फीसों का माफ करने के लिए आग्रह किया है. लेकिन, अब तक कुछ ठोस आश्वासन नहीं मिला है. कॉलेज प्रबंधन की ओर से उसे स्कॉलरशिप में मिलने वाली राशि से फीस भरने की सलाह दी गयी है. लेकिन, कलोदी कहती है कि ‘उसे स्कॉलपरशिप के रूप में अब तक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है.’ बातचीत में उसकी आंखें भर आती हैं. कलोदी कहती है कि ‘ मेरे माता-पिता इतना खर्च वहन नहीं कर सकते. मेरे बाकी के भाई-बहन भी पढ़ाई कर रहे हैं. सरकारी मदद पर ही आस टिकी है.’
गरीबी रेखा के नीचे कलोदी का परिवार
कलोदी का पूरा परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है. कलोदी की माता पत्तल बना कर बेचने का और पिता दूध का काम करते हैं. कलोदी के पिता छह बच्चों की परवरिश के बाद उच्च शिक्षा का खर्च उठाने में असमर्थ हैं. सिंदरी स्थित बीआइटी में एडमिशन लेने के लिए भी कलोदी के पास पैसे नहीं थे. एडमिशन दिलाने के लिए कलोदी के पिता ने 15 हजार रुपये में अपनी दोनों गायों को भी बेच दिया, लेकिन एडमिशन लेने के लिए इतने रुपये काफी नहीं थे. जब बीआइटी के छात्रों को इसकी जानकारी मिली तो वे कलोदी के एडमिशन के लिए आपस में चंदा करने लगे. बाद बीआइटी प्रबंधन के संज्ञान में बात आयी और कलोदी का नामांकन बीआइटी में हो सका. इसके चलते कलोदी ने पहले वर्ष दो सेमेस्टर की पढ़ाई पूरी कर ली.
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