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दो जून की रोटी भी नहीं दे पाती दिन भर की कारीगरी

देवघर: शहर के बीच केके स्टेडियम से सटे मुहल्ले में एक खास परिवार झुग्गी-झोपड़ी में गुजर बसर कर रहा है. इन लोगों की जिंदगी कच्चे बांस के बीच ही कटती है. बांस काट कर लाना और उससे तरह तरह के सामान तैयार करके ये लोग अपना भरन पोषण करते हैं. इनकी अहमियत छठ पूजा के […]

देवघर: शहर के बीच केके स्टेडियम से सटे मुहल्ले में एक खास परिवार झुग्गी-झोपड़ी में गुजर बसर कर रहा है. इन लोगों की जिंदगी कच्चे बांस के बीच ही कटती है. बांस काट कर लाना और उससे तरह तरह के सामान तैयार करके ये लोग अपना भरन पोषण करते हैं. इनकी अहमियत छठ पूजा के दिन बढ़ जाती है. क्योंकि ये झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले खास परिवार के लोग कच्चे बांस का सूप व दौरा बनाते हैं.

और कच्चे बांस के बने सूप व दौरा छठि मइया को बहुत प्रिय है. लेकिन इस खास परिवार को की आमदनी इतनी नहीं होती कि वे अपने परिवार और बाल बच्चों का पेट पाल सकें. इसका कई कारण इस परिवार के लोग बयां करते हैं. उन लोगों का कहना है कि एक तो उन लोगों के इस कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार या प्रशासन के स्तर से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता है.

दूसरी ओर ये परिवार छोटी संख्या में हैं. साथ ही काफी गरीब हैं. इस कारण देवघर की सूप व डाला की डिमांड भी ये पूरा नहीं कर पाते हैं. बाजार में बाहर से सूप व डाला बेचने के लिए मंगाया जाता है. प्रभात खबर ने छठ पूजा में सूप व दौरा के महत्व को देखते हुए इसे गढ़ने वाले परिवार से बातचीत की.

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