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शास्त्र, संगीत व कला विहीन मनुष्य पशु के समान : स्वामी निरंजनानंदरिखिायापीठ. 25 वर्ष पहले रिखियापीठ की स्थापना हुई थी. इस वर्ष रिखियापीठ का रजत जयंती समारोह मनाया जा रहा है. एक वर्ष के दौरान कई गतिविधियां रिखियापीठ में हुई. इसमें शास्त्र, संगीत व कला भी बच्चों को बताया गया. उक्त बातें स्वामी निरंजनानंदजी ने […]

शास्त्र, संगीत व कला विहीन मनुष्य पशु के समान : स्वामी निरंजनानंदरिखिायापीठ. 25 वर्ष पहले रिखियापीठ की स्थापना हुई थी. इस वर्ष रिखियापीठ का रजत जयंती समारोह मनाया जा रहा है. एक वर्ष के दौरान कई गतिविधियां रिखियापीठ में हुई. इसमें शास्त्र, संगीत व कला भी बच्चों को बताया गया. उक्त बातें स्वामी निरंजनानंदजी ने प्रवचन में कही. उन्होंने कहा कि शास्त्र, संगीत व कला विहीन मनुष्य पशु के समान है. यह तीनों में एक गुण अवश्य मनुष्य में होना चाहिए. रिखिया में अब बच्चों को यह प्रशिक्षण देकर उन्हें परिपूर्ण किया जा रहा है. एक सर्वगुण व्यक्ति में यह गुण अनिवार्य रुप से होना चाहिए. स्वामीजी ने कहा कि रिखियापीठ में देवी लोक की भव्यता है. ऐसी भव्यता शिवलाेक, ब्रहमलोक व बैकुंठ लोक में भी नहीं है. पूरा परिसर देवीमय हो चुका है. रिखियापीठ अब रिखिया तीर्थ बन गयास्वामी निरंजनानंद जी ने कहा कि रिखिया तपस्या से तपोभूमि व रिखियाधाम बना. सेवा, प्रेम व दान से यह रिखियापीठ हुआ. अब रिखियापीठ एक तीर्थ का रुप ले लिया है, इसलिए रिखियापीठ अब रिखिया तीर्थ बन गया है. इससे रिखिया का अब महत्व बढ़ गया है.

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