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कांवरिया पथ से लगे ग्रामीणों की अनसुनी पीड़ा, सावन में शौच का संकट

देवघर: श्रावणी मेला में कांवरियों की सुविधा के लिए प्रशासन कांवरिया पथ के किनारे शौचालय का निर्माण तो करा देता है, लेकिन पथ के आसपास के गांव की महिलाओं की परेशानी पर किसी का ध्यान नहीं जाता. मेला का महीना आते ही कांवरिया पथ से लगे गांवों की ग्रामीण महिलाओं को शौच की मुसीबत खड़ी […]

देवघर: श्रावणी मेला में कांवरियों की सुविधा के लिए प्रशासन कांवरिया पथ के किनारे शौचालय का निर्माण तो करा देता है, लेकिन पथ के आसपास के गांव की महिलाओं की परेशानी पर किसी का ध्यान नहीं जाता. मेला का महीना आते ही कांवरिया पथ से लगे गांवों की ग्रामीण महिलाओं को शौच की मुसीबत खड़ी हो जाती है.

सावन-भादो दो माह तक महिलाओं को शौच के लिए दो से तीन किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. दुम्मा से सरासनी तक कांवरिया पथ के आसपास बसे गांवों में करीब 90 फीसदी घरों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है. इसमें बारा पंचायत के दुम्मा, बारा, मानिकपुर, नवाडीह, धावाघाट, उदयपुरा व सरासनी पंचायत के घरमारा गांव की 90 फीसदी महिला व पुरुष खुले में शौच जाते हैं. श्रावणी मेला में जो शौचालय प्रशासन द्वारा चालू किये जाते हैं उसे मेला खत्म होते ही बंद कर दिया जाता है. मेला में कांवरियों की इतनी भीड़ रहती है कि स्थानीय लोग शुल्क देकर शौचालय का उपयोग नहीं कर पाते हैं. कांवरिया पथ के इन गांवों में स्थानीय लोगों के लिए शौचालय निर्माण की पहल पंचायतीराज व्यवस्था से ग्राम सभा के जरिये शुरू हुई.

2014 में बारा पंचायत के मुखिया की अध्यक्षता में छह गांवों में ग्राम सभा के जरिये करीब 400 शौचालय निर्माण के लिए लाभुकों का चयन किया गया. 2014 में निर्मल भारत अभियान के तहत बारा पंचायत के मुखिया विष्णु महतो के साथ पीएचईडी की टीम ने छह गांवों में सर्वे कर सूची तैयार की. मुखिया ने ग्राम पंचायत के माध्यम से सूची पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता को सौंप दिया. मनरेगा व निर्मल भारत अभियान की राशि से शौचालय का निर्माण होना था. लेकिन एक भी शौचालय का निर्माण पिछले श्रावणी मेला में स्थानीय लोगों के लिए नहीं हुआ. इस बीच ग्राम पंचायत से बार-बार पत्रचार होता रहा लेकिन विभाग ने गंभीरता नहीं दिखायी.

जनवरी में दोबारा भेजा गया प्रस्ताव
2014 में ही निर्मल भारत अभियान की जगह स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत हुई. जनवरी 2015 में ही ग्राम पंचायत से पुन: 400 शौचालय का प्रस्ताव पीएचईडी को भेजा गया. लेकिन छह महीने बीत गये, लेकिन इसकी फाइल आज भी धूल फांक रही है. मुखिया को बार-बार पीएचईडी कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है. डीसी से भी गुहार लगा चुके हैं. बावजूद शौचालय की स्वीकृति नहीं हुई. अब फिर से श्रणवी मेला में महिलाओं के लिए खुले में शौच परेशानी का कारण बनता जा रहा है. जबकि सरासनी पंचायत की मुखिया प्रमिला देवी का भी शौचालय का प्रस्ताव लंबित है.
हमारी परेशानी समझने वाला कोई नहीं : मुखिया
बारा पंचायत के मुखिया विष्णु महतो कहते हैं कि श्रावणी मेला में कांवरियों की सुविधा के लिए शौचालय की व्यवस्था अच्छी बात है. लेकिन स्थानीय लोगों की भी परेशानी समझनी होगी. उसमें भी महिलाओं को अधिक परेशानी है. सावन में पूरे कांवरिया पथ में कांवरियों की भीड़ रहती है. खेतों में धान की फसल लगी रहती है. इस परिस्थिति में महिलाओं को खुले में शौच जाने के लिए तीन किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. पीएचईडी को बार-बार शौचालय की सूची दी गयी . लेकिन कोई असर नहीं हुआ. क्या सही स्वच्छ भारत मिशन पर काम हो रहा है. महिलाओं की परेशानी समझने वाला कोई नहीं है.

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