भक्ति ही आत्मसाक्षात्कार तथा मानव चेतना की मुक्ति का एकमात्र रास्ता नहीं है. हिंदू धर्म में दो प्रमुख प्रवृत्तियां है जो भिन्न परंतु एक-दूसरे के पूरक हैं. इनमें से प्रथम द्वैतवाद कहलाता है. इस मत के अनुयायी मानते हैं कि मनुष्य के अस्तित्व से पृथक ईश्वर का अस्तित्व है. निष्ठा, भक्ति और साधना के द्वारा उस ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है. कुछ आस्तिक लोग अपने व्यक्तिगत आराध्य के प्रति भक्ति तथा समर्पण पर अधिक जोर देते हैं, इसे भक्तियोग कहते हैं. हिंदुओं में दूसरी विचारधारा अद्वैतवाद के नाम से जानी जाती है. इसके अनुयायियों का मत है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं अपितु मनुष्य के अपने भीतर स्थित है. मोक्ष के लिए इस सत्य की अनुभूति आवश्यक है. वेदांत दर्शन में ज्ञानयोग के द्वारा इस विवेक की प्राप्ति होती है.
प्रवचन:::: भक्ति ही मानव चेतना की मुक्ति का एकमात्र रास्ता नहीं
भक्ति ही आत्मसाक्षात्कार तथा मानव चेतना की मुक्ति का एकमात्र रास्ता नहीं है. हिंदू धर्म में दो प्रमुख प्रवृत्तियां है जो भिन्न परंतु एक-दूसरे के पूरक हैं. इनमें से प्रथम द्वैतवाद कहलाता है. इस मत के अनुयायी मानते हैं कि मनुष्य के अस्तित्व से पृथक ईश्वर का अस्तित्व है. निष्ठा, भक्ति और साधना के द्वारा […]
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