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प्रवचन :::मानव जीवन की आवश्यकताओं का चार समूह को पुरुषार्थ कहते हैं

हर कोई प्रारंभिक अवस्था से ही संन्यास के उपयुक्त नहीं होता. वे यह भी जानत थे कि यदि जीवन अनुशासित तथा व्यवस्थित ढंग से व्यतीत किया जाये तो प्रत्येक व्यक्ति में आत्मसाक्षात्कार की क्षमता निहित होती है. आश्रम व्यवस्था क निर्माण के पीछे यही बुनियादी दृष्टिकोण था. इसलिए मानव जीवन की आवश्यकताओं का चार समूहों […]

हर कोई प्रारंभिक अवस्था से ही संन्यास के उपयुक्त नहीं होता. वे यह भी जानत थे कि यदि जीवन अनुशासित तथा व्यवस्थित ढंग से व्यतीत किया जाये तो प्रत्येक व्यक्ति में आत्मसाक्षात्कार की क्षमता निहित होती है. आश्रम व्यवस्था क निर्माण के पीछे यही बुनियादी दृष्टिकोण था. इसलिए मानव जीवन की आवश्यकताओं का चार समूहों में , जिन्हें पुरुषार्थ कहते हैैं, विभक्त किया गया है. ये चार पुरुषार्थ निम्न हैं :-1. धर्म : इसके अंतर्गत जीवन को इस तरह व्यवस्थित किया जाता है कि व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार पूर्णरूप से महत्वाकांक्षीओं की पूर्ति कर सके.2. अर्थ : व्यक्ति धन संचय करता है, भले ही वह आर्थिक, बौद्धिक अथवा किसी अन्य स्वरूप में क्यों न हो.3. काम : इसके अंतर्गत भोजन तथा मैथुन के द्वारा इंद्रियों-सुख की प्राप्ति शामिल है.4 . मोक्ष : आत्मसाक्षात्कार की उपलब्धि तथा मुक्ति.यदि मृत्यु पर्यंत जीवन पूर्णता से जीना हो तो उपयुक्त आवश्यकताओं की पूर्ति तथा संतुष्टि अनिवार्य है. इसके अतििाक्त मोक्ष का अन्य कोई मार्ग नहीं है.

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