यूनानी आध्यात्मिक परंपराओं का अध्ययन तब तक अपूर्ण रहेगा जब तक हम उसके महान दार्शनिकों, ज्ञानयोगियों तथा गुरुओं का उल्लेख न करें. इन संतों की परंपरा में सुकरात, प्लेटो तथा अरस्तू के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. सुकरात की दार्शनिक विचारधारा को उसके शिष्य प्लेटो ने लेखबद्ध किया था. सुकरात प्राकृतिक नियम को ही चेतना की अभिव्यक्ति मानता था. वह तार्किक शोध तथा अनुसंधानों को अत्यधिक महत्व देता था. यह ज्ञानयोग ध्यान से बहुत कुछ मिलता-जुलता है जो संतुलित मन व बुद्धि वाले साधक के विवेक जैसा होता है. इस विधि के द्वारा व्यक्ति मानसिक पीड़ा तथा भावनात्मक कष्ट से मुक्ति पा सकता है. इन कष्टों का मूल कारण प्राकृतिक नियमों की त्रुटिपूर्ण समझ तथा मनुष्य का अपना ही दोष है. इस दृष्टि से देखा जाये तो ग्रीक-दर्शन का साम्य बौद्ध-दर्शन से हो सकता है.
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प्रवचन:::: यूनानी आध्यात्म में योगियों व गुरुओं का प्रमुख स्थान
यूनानी आध्यात्मिक परंपराओं का अध्ययन तब तक अपूर्ण रहेगा जब तक हम उसके महान दार्शनिकों, ज्ञानयोगियों तथा गुरुओं का उल्लेख न करें. इन संतों की परंपरा में सुकरात, प्लेटो तथा अरस्तू के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. सुकरात की दार्शनिक विचारधारा को उसके शिष्य प्लेटो ने लेखबद्ध किया था. सुकरात प्राकृतिक नियम को ही […]
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