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प्रवचन:::: प्रारंभ में दीक्षा नाटक के रूप में दी जाती थी

यह स्पष्ट है कि आम आदमी के लिए ये रहस्य बड़े ही दुरूह थे क्योंकि आज की तरह उस समय भी वह एकाएक अपने भय, कमजोरियों आदि के नाटकीय ढंग से दर्शन के लिए न तो अभ्यस्त था और न ही तैयार था. प्रारंभिक साधकों को प्रथम दीक्षा नाटक के रूप में दी जाती थी, […]

यह स्पष्ट है कि आम आदमी के लिए ये रहस्य बड़े ही दुरूह थे क्योंकि आज की तरह उस समय भी वह एकाएक अपने भय, कमजोरियों आदि के नाटकीय ढंग से दर्शन के लिए न तो अभ्यस्त था और न ही तैयार था. प्रारंभिक साधकों को प्रथम दीक्षा नाटक के रूप में दी जाती थी, क्योंकि तत्कालीन यूनानी लोग नाट्य विद्या से भली-भांति परिचित थे. यूनान ऐसा ही समाज था जो एलुसिनियन कहलाता था. वह प्रतिवर्ष एक समारोह आयोजित करता था जिसमें ऐथेंस नगर के तमाम स्त्री, पुरुषों तथा बच्चों को आमंत्रित किया जाता था. इस समारोह में डेमिटर के रहस्यों को उत्साहपूर्वक मनाया जाता था. यह अवसर बड़े उत्साह तथा मौज-मस्ती का होता था जिसमें हजारों नर-नारी प्रारंभिक दीक्षा ग्रहण करते थे. इसके पश्चात उन साधकों को स्वयं के रूपांतरण तथा ध्यान की उच्च तकनीकों की दीक्षा प्रदान की जाती थी जो आत्मानुसंधान में लगे रहते थे एवं इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अथक प्रयास करते थे.

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