मधुपुर: किसी भी क्षेत्र के विकास की बुनियाद वहां की शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली व सड़क पर निर्भर करती है. इसमें स्वास्थ्य की भी भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. सरकार भी स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर बुनियादी ढांचे में सुधार लाने का प्रयत्न कर रही है. इसके लिए करोड़ों की लागत से अस्पताल बनाये जा रहे हैं व महंगे मशीन लगाये जा रहे हैं, मगर चिकित्सक व विशेषज्ञों की कमी के कारण इनकी ये केवल हाथी के दांत साबित हो रहे हैं. कुछ यही स्थिति मधुपुर में नवनिर्मित अस्पताल की है.
निर्माण में साढ़े तीन करोड़ खर्च
बुनियादी ढांचे में साढ़े तीन करोड़ की लागत से अनुमंडलीय अस्पताल को नया भवन मिल गया. लाखों रुपये के संसाधन भी आ गये. मगर, अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों नहीं रहने के कारण मरीजों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है. अनुमंडलीय अस्पताल में आठ विशेषज्ञ चिकित्सकों का पद स्वीकृत है.
मगर यहां डॉ अरुण व डॉ रमेश दो ही चिकित्सक पदस्थापित हैं. वर्ष 2012 में एक चिकित्सक डॉ मनीष कुमार पदस्थापित थे, मगर एक माह बाद ही उनकी प्रतिनियुक्ति सदर अस्पताल कर दी गयी. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चार पद स्वीकृत हैं. मगर, यहां भी दो चिकित्सक डॉ आरिफ व डॉ सुनील मरांडी पदस्थापित हैं. अनुमंडलीय अस्पताल में पीएचसी के चिकित्सकों से भी कार्य लिया जाता है. विशेषज्ञ चिकित्सकों के पदस्थापन नहीं होने से कई महंगे चिकित्सा उपकरण का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है.
धूल फांक रही लाखों की मशीन
नया भवन बनने के बाद उक्त भवन के लिए अल्ट्रासाउंड मशीन, एनआर लाइजर मशीन, जेरॉक्स मशीन, प्रिंटर, 20 केवीए का जेनेरेटर सेट, आठ सेट अगिAशमन उपकरण, आठ फ्रीज, 25 अलमीरा, 100 कुर्सी व टेबल समेत लाखों रुपये की दवा अस्पताल में मौजूद है. इसके अलावा पूर्व से ही इसीजी मशीन, एक्सरे मशीन अस्पताल में हैं. विशेषज्ञों के नहीं होने के कारण एक्सरे मशीन को छोड़ सारे उपकरण बंद हैं. खून व पेशाब संबंधी सभी तरह के जांच अस्पताल में नहीं हो पा रहे हैं. एएनएम, नर्स समेत स्वास्थ्य कर्मियों की भी कमी है.
जिला में मधुपुर और सारवां को एफआरयू का दर्जा मिला है. लेकिन इसका कोई लाभ मरीजों को नहीं मिल पाता है. अस्पताल में ही ब्लड बैंक बनाया गया है. लेकिन अब तक चालू नहीं किया जा सका है. इसके अलावा यहां पोस्टमार्टम हाउस भी नहीं बन पाया है. अनुमंडलीय अस्पताल से मिलने वाली कोई भी सुविधा यहां के मरीजों को नहीं मिल पा रही है. बंध्याकरण व नसबंदी व प्रसव के दौरान चिकित्सकों की कमी के कारण कई बार अस्पताल में मरीजों द्वारा हो हंगामा व तोड़-फोड़ की घटना घट चुकी है.