मुख्य अतिथि बिहार विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के डॉ आरके वर्मा थे. मुख्य अतिथि ने समावेशी विकास की चुनौतियों पर अपनी राय दी. वक्ताओं ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन (भूमंडलीकरण) आर्थिक उत्थान की बात करता है. लेकिन, एक तरफ वैश्वीकरण तो दूसरी तरफ स्थानीय नीति की मांग की जाती है. एक तरफ मार्केट खोलना चाहते हैं तो दूसरी तरफ संताल परगना टेंनेंसी एक्ट (एसपीटी) एवं छोटानागपुर टेंनेंसी एक्ट (सीएनटी) का विरोध होता है. हम ग्लोबलाइजेशन का लाभ लेना चाहते हैं. दूसरी तरफ आइडेंटिफिकेशन की मांग करते हैं. इस दुविधा में इन्क्लूसिव डेवलपमेंट नहीं होता है. यह सवाल पूरे सेमिनार में छाया रहा. सिदो कान्हू मुमरू विश्वविद्यालय दुमका के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ अजय सिन्हा ने कहा कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में ग्लोबलाइजेशन को ढालना है.
तभी समावेशी विकास की ओर अग्रसर होंगे. पीजी सेंटर के डॉ संजीव कुमार सिन्हा ने कहा कि नव उदारवादी वैश्वीकृत व्यवस्था के मूल्यों का जनजातीय समाज के मूल्यों के साथ क्या सामांजन संभव है. जामताड़ा कॉलेज के प्रोफेसर डॉ रंजीत कुमार झा ने कहा कि समवेशी विकास में सेल्फ हेल्प ग्रुप की भूमिका पर अपनी राय दी. सेमिनर में श्यामसुंदर मिश्र, डॉ विजय कुमार, अमरेश पासवान, प्राप्ति कुमार, मंटु कुमार, डॉ कुमुद झा, अपर्णा सिंह आदि ने अपने-अपने विचारों के साथ शोध पत्र प्रस्तुत किया. सेमिनार के समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ मनोज कुमार सिन्हा ने की. समारोह के दौरान प्रमाणपत्र का वितरण सामूहिक रूप से बाजला कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ नीरजा दुबे, डॉ मनोज कुमार सिन्हा, डॉ शेषनाथ राय, डॉ विजय कुमार ने संयुक्त रूप से किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ अजय सिन्हा एवं धन्यवाद ज्ञापन बाजला कॉलेज के व्याख्याता डॉ प्रकाश चंद्र दास ने दिया.