विश्व की प्रत्येक संस्कृति तथा धर्म में प्रचलित ध्यान की पद्धतियों का विश्लेषण करना संभव नहीं है, क्योंकि अनेक संस्कृतियों में ध्यान का अभ्यास बचपन से ही प्रारंभ कर दिया जाता था. बच्चा अपने परिवार के बड़े सदस्यों से अन्य बातों की तरह पारिवारिक अनुशासन के रूप में ध्यान करना सीखना था. कुछ अन्य संस्कृतियों में ध्यान एक गुह्य अभ्यास के रूप में किया जाता था, जो गुरु द्वारा शिष्य को सिखाया जाता था. यह तो वर्तमान काल में ही देखने को मिलता है कि ध्यान की अनेक पद्धतियों का वर्णन पुस्तकों में लेखबद्ध किया गया है. अनेक शताब्दियों के बाद विभिन्न पद्धतियों की बहुत सी बातें लुप्त हो गई है, क्योंकि अनेक आक्रमणों में पुस्तकालय, बहुमूल्य आलेख, पांडुलिपियां आदि नष्ट हो गई है. फिर भी अपने अनेक अनुसंधानों द्वारा हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हर देश, धर्म तथा संस्कृति में ध्यान का अभ्यास किया जाता था तथा ध्यान की पद्धतियों में पर्याप्त विभिन्नताएं होते हुए भी कुछ बातें समान हैं क्योंकि ध्यानकर्ताओं का अंतिम लक्ष्य प्राय: समान होता है.
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प्रवचन::::: प्रत्येक संस्कृति के ध्यान का विश्लेषण संभव नहीं
विश्व की प्रत्येक संस्कृति तथा धर्म में प्रचलित ध्यान की पद्धतियों का विश्लेषण करना संभव नहीं है, क्योंकि अनेक संस्कृतियों में ध्यान का अभ्यास बचपन से ही प्रारंभ कर दिया जाता था. बच्चा अपने परिवार के बड़े सदस्यों से अन्य बातों की तरह पारिवारिक अनुशासन के रूप में ध्यान करना सीखना था. कुछ अन्य संस्कृतियों […]
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