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प्रवचन:::: आज्ञा चक्र में होता है गुरु का निवास

आज्ञा का अर्थ ‘आदेश’ होता है. इसे गुरु चक्र भी कहते हैं, क्योंकि यही वह केंद्र है जिसके माध्यम से गुरु तथा शिष्य के बीच संवाद होता है. यह चक्र गुरु का निवास कहलाता है. आज्ञा चक्र और भी अन्य नामों से जाना जाता है, जैसे- अंतर्प्रज्ञा-चक्षु, शिव का तीसरा नेत्र आदि. शरीर में इसकी […]

आज्ञा का अर्थ ‘आदेश’ होता है. इसे गुरु चक्र भी कहते हैं, क्योंकि यही वह केंद्र है जिसके माध्यम से गुरु तथा शिष्य के बीच संवाद होता है. यह चक्र गुरु का निवास कहलाता है. आज्ञा चक्र और भी अन्य नामों से जाना जाता है, जैसे- अंतर्प्रज्ञा-चक्षु, शिव का तीसरा नेत्र आदि. शरीर में इसकी स्थिति सिर के सर्वोच्च बिंदु के नीचे मस्तिष्क के बीचों-बीच मेरुदंड के ऊपरी अंतिम छोर पर होती है. यद्यपि इसकी बिल्कुल सही स्थिति का पता लगाना जरा कठिन है, तथापि योग में इसे भ्रूमध्य से सीधा संबंधित बताते हैं. आज्ञा तथा भ्रूमध्य एक अतीन्द्रिय पथ द्वारा संबंधित हैं. इसका शीर्ष ग्रंथि से भी सीधा संबंध है. आज्ञा चक्र इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना का मिलन-स्थल है. इस प्रकार इसका संबंध अन्य सभी चक्रों से होने के कारण यह बहुत महत्वपूर्ण चक्र माना गया है.

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