देवघर: भारत में बाल विवाह कुरीति के रूप में घर कर गया है. विश्व की 40 प्रतिशत बाल विवाह भारत में होता है. अकेले झारखंड में वर्ष 2010-11 के आंकड़े के अनुसार 52} लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम में हो रही है.
यह अलार्मिग है. जो कानून बने हैं निष्प्रभावी हैं. यह बातें राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण मिशन व राष्ट्रीय महिला कोष की कार्यकारी निदेशक रश्मि सिंह ने कही. वे बाल विवाह की रोकथाम के लिए आयोजित परामर्श कार्यशाला में हिस्सा लेने देवघर आयी थीं. उन्होंने कहा कि अशिक्षा, गरीबी, बेकारी के कारण लोग इस दिशा में सोच नहीं पा रहे हैं. कड़े कानून बने हैं, लेकिन इसका लाभ लोग नहीं उठा पा रहे हैं. क्योंकि लोगों में जागरूकता की कमी है.
ग्रामसभा के माध्यम से हो प्रचार-प्रसार : कार्यकारी निदेशक ने कहा कि अब सोचने का वक्त आ गया है कि आखिर कानून क्यों प्रभावी नहीं हो पा रहा है. इसके मूल्यांकन की रणनीति बनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा : आज पंचायतीराज है. ग्राम व वार्ड स्तर पर प्रतिनिधि हैं, लेकिन आज की तारीख में हम इन बॉडी का जागरूकता जैसे काम में इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. जरूरी है कि ग्रामसभा का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो. जो महिला संगठन, सेल्फ हेल्प ग्रुप बने हैं, वे ग्राम सभा का इस्तेमाल करके इस तरह की सामाजिक कुरीति के खिलाफ खड़े हों.
जवाबदेही तय करनी होगी
उन्होंने कहा कि कड़े कानून बने हैं, लेकिन थाने व कोर्ट तक बाल विवाह के मामले जा ही नहीं पाते हैं. इसलिए इस कुरीति पर अंकुश लगाने के लिए जो भी संस्थाएं(सरकारी या गैरसरकारी) इस क्षेत्र में काम कर रही है. सभी को प्रभावी बनाना होगा, उनकी जवाबदेही तय करनी होगी.
कुरीतियों के खिलाफ सभी मिल कर लड़ें
कार्यकारी निदेशक ने कहा : इस कार्यशाला में बहुत सारी बातें क्षण कर आयी है. जैसे यहां जुडिशियरी, एनजीओ, पंचायत प्रतिनिधि, निगम प्रतिनिधि व सरकारी मशीनरी मिल कर दहेज प्रथा, बाल विवाह, बाल अपराध जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठायेंगे. सभी अलग-अलग काम करते हैं, इसलिए रिजल्ट नहीं मिलता है. सभी एकजुट हो इस मिशन के लिए काम करेंगे. जो भी फाइंडिंग्स आयेगी, उसे महिला व बाल कल्याण विभाग एक्शन प्लान में शामिल करेगा.