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पलायन को मजबूर हैं हुनरमंद खिलाड़ी

देवघर: झारखंड गठन को 13 वर्ष से अधिक समय गुजर गया. मगर आज तक इंफ्रास्ट्रर के अभाव में संताल परगना प्रमंडल में खेल का समुचित विकास नहीं हो सका. यही वजह है कि इक्के-दुक्के खिलाड़ियों को छोड़ यहां कभी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी नहीं बन सके . ऐसा नहीं है कि प्रमंडल […]

देवघर: झारखंड गठन को 13 वर्ष से अधिक समय गुजर गया. मगर आज तक इंफ्रास्ट्रर के अभाव में संताल परगना प्रमंडल में खेल का समुचित विकास नहीं हो सका. यही वजह है कि इक्के-दुक्के खिलाड़ियों को छोड़ यहां कभी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी नहीं बन सके .

ऐसा नहीं है कि प्रमंडल में खेल प्रतिभाओं की कमी है. साहिबगंज जैसे छोटे से जिले से फैजल जैसे राष्ट्रीय स्तर के जैबलिन थ्रोअर, देवघर से फुटबॉल खिलाड़ी अनिल मुमू आदि अपनी प्रतिभा के बल पर निखर कर सामने आये. मगर आवश्यक संसाधन के अभाव में छोटे स्तर से खिलाड़ी उभर कर सामने नहीं आ रहे हैं. खेल संसाधनों का यहां खासा अभाव है. पूरे प्रमंडल में आधा दर्जन से अधिक स्टेडियम है, मगर उसमें खिलाड़ियों को ध्यान में रखते हुए न एथलेटिक ट्रैक की सुविधा है, न हाइजंप पिच और न लांग जंप के प्रैक्टिस के लिए उपयोगी गद्दा ही है.

इतना ही नहीं मरूस्थल की तरह दिखने वाले स्टेडियम में फुटबॉल व क्रिकेट के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाने के लिए दिन-रात पसीना बहाते हैं. मगर उनकी सारी मेहनत यहां से शुरू हो कर यहीं पर खत्म हो जाती है. हालांकि खेल व खिलाड़ियों के विकास के लिए पूरे प्रमंडल में अलग-अलग एसो़सिएशन तो है. मगर उसमें शामिल लोग खेल से ज्यादा अपने पद को बचाये रखने की राजनीति में ज्यादा समय गुजारते हैं. कुछ जिलों में अच्छे कोच भी हैं मगर वे परिवार के बोझ व भरण-पोषण के लिए आवश्यक मानदेय के अभाव में अपनी क्षमता खो रहे हैं. इस परिस्थिति में बहुतेरे खिलाड़ी बड़े शहरों की ओर पलायन के लिए बाध्य हो रहे हैं.

संप में गरीबी बड़ी बाधक
संताल परगना में गरीबी खेल के बीच बड़ी बाधक है. यहां बहुत से हुनरमंद खिलाड़ी हैं, जो दिनभर मजदूरी करने, ट्यूशन पढ़ाने के बाद खेल के मैदान में पहुंचते हैं. कई बेहतरीन पहलवान हैं जो सुबह की लाली के साथ दंगल में पहुंचते हैं. मगर दिन चढ़ने के साथ ही नाव चलाने व दूध दुहने में सारा वक्त गुजार देते हैं.

राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताएं हुई
पिछले दो वर्षो के दौरान देवघर व दुमका जैसे शहरों में चार-पांच राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं (सब जुनियर कबड्डी, जूनियर कुश्ती आदि) हुई. इसके लिए भारी पैमाने पर खर्च भी हुआ. मगर खेल से स्थानीय खिलाड़ियों का कौशल नहीं दिखा.

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