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त्रिकूट पर्वत पर पर्यटकों का आना हुआ कम, तो भोजन की तलाश में गांव पहुंच कर बंदरों का झुंड मचा रहे उत्पात

jharkhand news: झारखंड में जारी सेमी लॉकडाउन का असर अब जंगली जानवरों पर भी पड़ने लगा है. देवघर के त्रिकूट पर्वत पर पर्यटकों के नहीं आने से यहां के बंदर पास के गांवों में जाकर उत्पात मचाना शुरू कर दिये हैं. साथ ही खड़ी फसलों और घर-खलिहान में रखे अनाज को भी बर्बाद कर रहे हैं.

Jharkhand news: देवघर जिला अंतर्गत मोहनपुर प्रखंड स्थित त्रिकूट-बसडीहा गांव के लोग इनदिनों बंदरों से काफी परेशान हैं. त्रिकूट पर्वत पर रहने वाले करीब 400 बंदर गांव में पहुंच गये हैं और किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ये बंदर त्रिकूट पर्वत पर ही रहते थे. कोरोना काल में पर्वत पर सैलानियों के कम आने से इन्हें भोजन मिलना भी कम हो गया है. इसके बाद भूखे बंदर छोटे-छोटे बंदरों को लेकर इस गांव में पहुंच गये हैं.

ग्रामीणों ने प्रशासन से किया अनुरोध

गांव के किसानों ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि इस गांव में विशेष अभियान चलाकर उत्पात मचाने वाले इन बंदरों को पकड़ कर किसी सुरक्षित जगह पर पुनर्वासन का काम किया जाये. साथ ही बंदरों के लिए प्रशासन द्वारा हर दिन भोजन और पानी की व्यवस्था की जाये. इससे बंदर फसलों को बर्बाद नहीं करेंगे.

गन्ना, आलू, गेहूं व चना समेत अन्य फलदार पौधों को पहुंचाया नुकसान

त्रिकूट-बसडीहा गांव में 200 से अधिक किसान हैं जो अपने खेतों में गन्ना, गेहूं, चना, आलू, गाजर, मूली, फूलगोभी, बंधगोभी, टमाटर आदि फसलों की खेती करते हैं. खेतों में लगी फसल को बंदर खाने के साथ बर्बाद भी कर रहे हैं. वहीं, घर के आंगन में लगे पपीते और फलदार पौधों को भी क्षति पहुंचा रहे हैं. खलिहान में रखे धान को भी बर्बाद कर देते हैं और छत पर रखे अनाज के बोरे को भी फाड़ कर अनाज बर्बाद कर दे रहे हैं. बंदर सबसे अधिक गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाये हैं. गांव के किसानों का कहना है कि बंदरों से पूरे गांव के लोग परेशान हैं. यहां तक किबच्चे भी दहशत में रहते हैं. इस संबंध में किसानों ने वन विभाग को कई बार शिकायत की, लेकिन वन विभाग बंदरों से बचाव के उपाय नहीं कर रहे हैं.

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पीड़ित किसानों का दर्द

स्वास्थ्य विभग से सेवानिवृत्त होने के बाद खेती कर रहे अरुण कापरी कहते हैं कि इन बंदरों ने फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है. घर के बगल में पपीते के पौधे लगोय थे, जिसे बंदरों ने बर्बाद कर दिया है. इसके अलावा महोगनी का पौधा लगाया था, जिसे बंदरों ने तोड़ दिया. इस साल बंदरों ने लाखों रुपये का नुकसान पहुंचाया.

वहीं, किसान ब्रह्मदेव पंजियारा ने कहा कि गन्ने की खेती एक एकड़ जमीन में की है. जिसे बंदरों ने बर्बाद कर दिया. सैकड़ों की संख्या में बंदर गन्ने की खेत में आ जाते हैं और गन्ने को तोड़ कर खाना शुरू कर देते हैं. इससे करीब 40 हजार रुपये का नुकसान हुआ है.

किसान अजय कुमार चौधरी ने कहा कि महंगे दर पर बीज खरीदकर आलू की खेती किये. पौधा बड़ा हो गया था, जिसे बंदरों ने उखाड़ दिया. इससे तकरीबन 50 हजार रुपये का नुकसान हुआ. गरीब किसानों का दर्द वन विभाग ने भी नहीं समझा और बंदरों पर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं किया है.

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किसान बिंदेश्वरी पंजियारा का कहना है कि मेरे खलिहान में रखे धान के बंडल को बंदरों ने तहस-नहस कर दिया है. वहीं, खेत में लगी ब्रोकली और गाजर को नोच-नोच कर खा गये. इससे हजारों रुपये का नुकसान हुआ है. वहीं, एक एकड़ जमीन में टमाटर की खेती की गयी थी, जिसे भी बंदरों ने बर्बाद कर दिया.

रिपोर्ट : फाल्गुनी मरीक कुशवाहा, देवघर.

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