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करोड़ों खर्च, नतीजा सिफर, मछली पालन के लिए 1.26 करोड़ से बना केज हुआ बेकार

मिथिलेश सिन्हा, सारठ : केंद्र सरकार ने मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय वर्ष 2014-15 में आदिवासी बहुल क्षेत्र नावाडीह गांव में चक दुम्हानी बना कर 72 किसानों को जोड़ा गया था. ताकि इससे जुड़कर यहां लोग के आत्मनिर्भर हो सके, लेकिन मत्स्य विभाग के अदूरदर्शिता व सही मॉनीटरिंग नहीं होने से यह […]

मिथिलेश सिन्हा, सारठ : केंद्र सरकार ने मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय वर्ष 2014-15 में आदिवासी बहुल क्षेत्र नावाडीह गांव में चक दुम्हानी बना कर 72 किसानों को जोड़ा गया था. ताकि इससे जुड़कर यहां लोग के आत्मनिर्भर हो सके, लेकिन मत्स्य विभाग के अदूरदर्शिता व सही मॉनीटरिंग नहीं होने से यह योजना धराशायी हो रही है. दरअसल, चांडिल्य डैम की तर्ज पर आदिवासी किसानों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सिकटिया डैम मत्स्य जीवी सहयोग समिति लिमिटेड बनाकर विभाग के अनुदान पर 31 केज लगाया गया था.

इसके लिए पहले साल विभाग द्वारा अनुदान पर मछली का जीरा, चारा व अन्य सामग्री मुहैया कराया गया था. किसानों ने मछली पालन किया. जिसमें करीब 14-15 लाख के मछली की बिक्री हुई. लेकिन सभी पर्यवेक्षण के अभाव में वर्तमान में केज बिल्कुल खाली पड़ा है.
मछली पालक के पास जीरा खरीदने के भी पैसे नहीं है. जिससे उनमें हताशा की स्थिति है. कहा कि विभाग करोड़ खर्च कर कैज तो बनवाया परंतु अधिकारियों की उदासीनता के कारण योजना दम तोड़ती नजर आ रही है. विडंबना है कि चालू वित्तीय वर्ष में 15 कैज निर्माणाधीन है.
फंड के अभाव में संवेदक द्वारा अबतक बनाकर किसानों को हैंडओवर नहीं किया है. मालूम हो कि प्रत्येक कैज में अनुदानित दर पर करीब तीन लाख रुपये की लागत आती है, यानी 1.26 करोड़. वहीं किसानों को 31 नाव, जाल व सोलर लाइट भी विभाग की ओर से उपलब्ध कराया गया था.
समिति के सदस्यों ने अध्यक्ष एवं सचिव पर लगाया राशि का घपला करने का आरोप
मत्स्यजीवी सहयोग समिति के सदस्य तारो सोरेन, विनोद मुर्मू, परिमल टुडू, लोलिन मुर्मू, किशोर मुर्मू, बैजनाथ मुर्मू, दिलीप मुर्मू, बासुदेव मुर्मू, गंगाराम मुर्मू, रामदेव मुर्मू समेत कइयों ने कहा कि समिति के अध्यक्ष एवं सचिव द्वारा प्रथम वर्ष का मछली बिक्री का पैसा घपला कर लिया.
किसी भी सदस्या को आमदनी का एक पैसा भी नहीं दिया. पूछने पर कहता हैं कि मछली मर गया. जिससे घाटा हो गया है. जिस कारण पैसे के कारण दूसरी बार मछली का जीरा नहीं डाला जा सका, जिसका नतीजा केज से मछली पालन का सपना हम बसों का टूट गया.
क्या कहते हैं डीएफओ
जिला मत्स्य पदाधिकारी दीपांकर सीट ने इस बाबत बताया कि प्रथम वर्ष विभाग के द्वारा केज, जीरा, दाना सभी अनुदान पर दिया गया था. जिससे किसान आमदनी कर दूसरी बार रोटेशन के आधार पर उसी आमदनी के पैसे से जीरा, दाना के क्रय में उपयोग करता परंतु किसानों ने ऐसा नहीं किया. जिस कारण कैज में मछली नहीं है. किसान जागरूक नहीं रहे, राशि का उपयोग सही प्रकार नहीं किये. जिस कारण योजना का लाभहीन हो चुका है.
क्या कहते हैं अध्यक्ष
सिकटिया डैम मत्स्य जीवी सहयोग समिति लिमिडेट नावाडीह के अध्यक्ष विश्वनाथ टुडू ने बताया कि प्रथम वर्ष 14-15 लाख के मछली की बिक्री किए थे. दूसरी बार बड़ा जीरा डाला गया, मछली बड़ी हुई भी परंतु मछली मर गयी, जिसके कारण घाटा हो गया. सभी किसानों के कैज में जीरा डालने के लिए और न ही चारा डालने के पैसे समिति के पास नहीं हैं. जिस कारण कैज बेकार हो गया है.
क्या कहते हैं सचिव
सचिव सुनीराम हेंब्रम ने कहा कि बैक के खाते में लगभग तीन लाख हैं. कोई किसान कैज में मछली पालन नहीं करना चाहते हैं तो हमलोग क्या करें, राशि घपला करने का आरोप गलत है.

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