लावालौंग व कुंदा में आज तक बिजली नहीं
चतरा : लावालौंग व कुंदा प्रखंड के लोगों के लिए बिजली एक सपना बन गयी है. आजादी के 65 वर्ष बीतने के बाद भी उक्त प्रखंड के किसी भी गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंची है.
प्रखंड में बन रहे पावर सब स्टेशन का निर्माण बंद है.
प्रखंड के लोगों ने सांसद व विधायक से बिजली बहाल करने की कई बार मांग की, लेकिन आजतक बिजली नहीं पहुंची. ग्रामीण मोबाइल रिचार्ज सोलर सिस्टम से करते हैं. बिजली के नहीं रहने से किसान नयी तकनीकी से खेती नहीं कर पा रहे हैं.
डीवीसी के तार–पोल बेकार : डीवीसी द्वारा प्रखंड के गांवों में तार–पोल लगाये गये हैं. इससे ग्रामीणों को बिजली के प्रति उम्मीद जगी थी. लेकिन पांच साल बाद भी बिजली नहीं पहुंचने से उम्मीद टूट गयी है. लगाये गये पोल कई जगह गिर गये हैं. कई स्थानों पर तार की चोरी हो गयी है.
ढिबरी युग में जी रहे हैं लोग : दोनों प्रखंड के लोग ढिबरी युग में रह रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई से लेकर आवश्यक कार्य ढिबरी से ही हो रहे हैं. इसके कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. साथ ही उनकी आंखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र में प्रतिबंध : लावालौंग प्रखंड के अधिकांश गांव वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र में रहने के कारण वन विभाग द्वारा विद्युतीकरण पर रोक लगा दी गयी है. कई गांवों में विद्युतीकरण का कार्य नहीं हो पाया है.
क्या कहते हैं ग्रामीण : लावालौंग प्रखंड सिलदाग पंचायत महुआडीह के आशीष ठाकुर ने कहा कि बिजली एक सपना बन कर रह गयी है. फिलहाल बिजली आने की संभावना नहीं दिख रही है.
वर्षो से बिजली की आस लगाये बैठे हैं. राजेंद्र साव ने कहा कि गांव में जब पोल लगाये जा रहे थे, तो काफी खुश थ़े अब उन्हें काफी निराशा है.