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मनुष्य का धर्म आंतरिक दिव्यता : सीताराम शरण

बोकारो: जैसे अग्नि का धर्म उष्णता, सूर्य का धर्म प्रकाश, चीनी का धर्म मिठास है, उसी तरह मनुष्य का धर्म आंतरिक दिव्यता होती है. धर्म आत्मा की उत्कृष्टता होती है. जो मानव शरीर के विभिन्न गुणों के रूप में अभिव्यक्त होती है. यह बात श्रीश्री 108 स्वामी सीतारामशरण जी महाराज (चित्रकुट) ने कही. स्वामी सीतारामशरण […]

बोकारो: जैसे अग्नि का धर्म उष्णता, सूर्य का धर्म प्रकाश, चीनी का धर्म मिठास है, उसी तरह मनुष्य का धर्म आंतरिक दिव्यता होती है. धर्म आत्मा की उत्कृष्टता होती है. जो मानव शरीर के विभिन्न गुणों के रूप में अभिव्यक्त होती है. यह बात श्रीश्री 108 स्वामी सीतारामशरण जी महाराज (चित्रकुट) ने कही. स्वामी सीतारामशरण को नावाडीह चास स्थित काली मंदिर में आयोजित श्रीश्री अन्नपूर्णा महायज्ञ में प्रवचन दे रहे थे. आयोजन के तीसरे दिन गुरुवार को शिव विवाह की चर्चा की गयी.

स्वामी सीताराम शरण ने कहा : जब प्रेम, ईमानदारी, क्षमा, प्रसन्नता व सज्जनता जैसे गुणों का ह्रास होने लगता है, तो धर्म का क्षय होता है. ऐसी स्थिति में अनैतिकता का अंबार लग जाता है. इस परिस्थिति से बचाने के लिए भगवान का अवतरण होता है. जीव-जगत का कल्याण करने के लिए देव मानव देह में अवतार लेते हैं. कहा : अवतार से मानव को दिव्य चैतन्य की अभिव्यक्ति का दर्शन होता है. शुक्रवार को विद्यार्थी के लिए संस्कार सिंचन कार्यक्रम होगा.

राष्ट्रीय सरस प्रवक्ता लाडलीशरण जी ने शिव विवाह की चर्चा करते हुए कहा : शिवत्व की प्राप्ति करना हर किसी की चाहत होनी चाहिए. यज्ञ में देह त्याग करते वक्त सती ने भगवान शिव से हर जन्म में साथ देने की मांग करती है. बावजूद इसके शिव को पाने के लिए पार्वती को तपस्या करना पड़ा. यह सती के दृढ़ संकल्प को दिखाता है. जहां आत्मविश्वास व कष्ट सहन करने का साहस हो, वहां लक्ष्य की प्राप्ति करना संभव हो जाता है. प्रवचन कार्यक्रम में विभिन्न गांव के दर्जनों श्रद्धालु मौजूद थे.

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