बोकारो: कहते हैं इनसान का कद कितना भी ऊंचा हो जाये अपनी पहचान नहीं भूलता. 45 साल से अपने गांव, खेत-खलिहान अपने लोगों से दूर है यह जनाब, लेकिन इनके अंदर का किसान अभी तक जिंदा है.
फसल नहीं उगा सके तो सब्जी ही ऊगा ली. अनाज नहीं जमा कर सके तो फूलों की खूबसूरती ही एक जगह समेट ली. पगडंडी का आनंद नहीं मिला तो कॉन्क्रिट की कियारी बना ली. सारे जुगाड़ और सारी जुगत के बाद थोक में जब सब्जी और साग उपज गये तो आस-पास के लोगों में बांट कर अपनी मेहनत का सुख भोगा. कुछ ऐसे ही हैं सेक्टर-1 सी/181 आवास में रहने वाले बीएसएल रिटायर एनकेपी सिंह. दो डिसमिल से भी कम जगह में इन्होंने फूल और सब्जियों की ऐसी बागवानी की है, जो देखते बनती है. इनका आवास भले ही रंगीन हो पर इनका जीवन काफी ही सादा है. जितना यह खेती और बागवानी से जुड़े हैं उतने ही अध्यात्म से भी.
1973 में आये बोकारो : श्री सिंह बताते हैं : 1973 में बोकारो आया. एसओटी में ऑक्सीजन विभाग में ज्वाइन किया. 31 जनवरी 2012 को सीनियर मैनेजर के पद पर से ऑक्सीजन विभाग से ही रिटायर हुआ. राजेंद्र कॉलेज-छपरा से बीएससी किया. गांव हमीदपुर, पोस्ट राजापट्टी, जिला-गोपालगंज के रहने वाले श्री सिंह 40 साल छह माह से बोकारो में हैं. कहा : 29 जनवरी 2013 को बीएसएल गोल्डेन जुबली मनाने जा रहा है. इस बात की खुशी है कि जिस संस्थान में मैंने काम किया वह 50 साल का हो गया. इस खुशी के क्षण में मैं भी शामिल हूं.
पिता से मिली प्रेरणा : श्री सिंह बताते हैं : जब गांव पर रहता था, उस समय से हीं बागवानी व खेती में मन लगता था. कारण, पिता स्व सकलदेव नारायण सिंह बढ़-चढ़ कर बागवानी व खेती करते थे. वह शौक आज भी बरकरार है. बागान में जब तक दो-तीन घंटे का समय नहीं गुजारता हूं, तब तक एक अजीब-सी बेचैनी रहती है. बताया : इससे बहुत लाभ है. एक तो शारीरिक श्रम हो जाता है, दूसरा मानसिक संतुष्टि मिलती है. मतलब, इससे तन-मन दोनों की संतुष्टि मिलती है. फूल-पौधे को देख जो खुशी मिलती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया सकता.