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साहित्य है जीवन की आलोचना : डॉ तिवारी

//रंजीत कुमार// बोकारो:साहित्य समाज का दर्पण है. जीवन की आलोचना है. साहित्य से संवेदनशील समाज का निर्माण संभव है. साहित्य में मौजूदा राजनीतिक-आर्थिक समस्याओं को मुखर करने की जरूरत है. जीवन बोध और कला चेतना से लैस रचनात्मक सरोकार के लेखकों को एक मंच पर आने की जरूरत है. रचनाएं हर भाषाओं में हों, यह […]

//रंजीत कुमार//

बोकारो:साहित्य समाज का दर्पण है. जीवन की आलोचना है. साहित्य से संवेदनशील समाज का निर्माण संभव है. साहित्य में मौजूदा राजनीतिक-आर्थिक समस्याओं को मुखर करने की जरूरत है. जीवन बोध और कला चेतना से लैस रचनात्मक सरोकार के लेखकों को एक मंच पर आने की जरूरत है. रचनाएं हर भाषाओं में हों, यह अच्छी बात है. वैचारिक मतभेद हो, पर वहीं तक, जहां तक वह रचनात्मक सरोकार के लिये उर्वर-उत्प्रेरक माहौल तैयार करे. ये बेलाग राय बोकारो के साहित्यकार डॉ नर नारायण तिवारी की है. ‘प्रभात खबर’ से बातचीत में उन्होंने ये बातें कहीं.

शुरू से ही साहित्य के प्रति दिलचस्पी : पढ़ाई समाप्त करने के बाद डॉ नर नारायण तिवारी बोकारो आये. 13 जुलाई 1977 को बोकारो इस्पात नगर में चलने वाले स्कूल में बतौर सहायक शिक्षक योगदान दिया. इस दौरान इन्होंने दर्जनों बार मंच पर काव्य पाठ किया. बोकारो की साहित्यिक गतिविधियों को जीवंत रखने में लेखकों को उनका पूरा सहकार मिला. आज भी सृजनात्मक साहित्य में सक्रिय हैं. 31 जुलाई 2006 को हिंदी व्याख्याता पद से सेवानिवृत्त हुए. दर्जनों संस्थाएं इन्हें सम्मानित कर चुकी हैं.

समय का सार्थक उपयोग करें युवा : युवा खाली समय का सार्थक उपयोग कर चरित्रवान व योग्य बनें. समाज को बेहतर बनाने के लिए आगे बढ़ कर सेवा करें. आदर्श व उद्देश्य से कभी भी विचलित न हों. एक अच्छे नागरिक का फर्ज सदैव ही अदा करें.

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