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डिफरेंट है हॉस्टल लाइफ का टाइम मैनेजमेंट

बोकारो: हॉस्टल लाइफ का टाइम मैनेजमेंट बिल्कुल अलग है. जब पहली बार घर से निकल कर विद्यार्थी हॉस्टल पहुंचते हैं, तब उन्हें कई तरह की परेशानी का सामना पड़ता है. इन्हीं परेशानियों में से एक है हॉस्टल का टाइम मैनेजमेंट. सुबह-सुबह उठना, स्नान-ध्यान कर स्कूल के लिए तैयार होना, स्कूल से लौटने के बाद खाना, […]

बोकारो: हॉस्टल लाइफ का टाइम मैनेजमेंट बिल्कुल अलग है. जब पहली बार घर से निकल कर विद्यार्थी हॉस्टल पहुंचते हैं, तब उन्हें कई तरह की परेशानी का सामना पड़ता है. इन्हीं परेशानियों में से एक है हॉस्टल का टाइम मैनेजमेंट.

सुबह-सुबह उठना, स्नान-ध्यान कर स्कूल के लिए तैयार होना, स्कूल से लौटने के बाद खाना, फिर ट्यूशन-कोचिंग जाना, ट्यूशन से लौट कर खाना, फिर पढ़ना और सो जाना. हॉस्टल में उक्त सभी काम समय से होते हैं. देरी होने कई बार हॉस्टल संचालक से फटकार सुननी पड़ती है.

हॉस्टल के टाइम मैनेजमेंट को लेकर विद्यार्थियों में मतभेद है. कुछ इसे निजी जिंदगी में दखलदांजी मानते हैं, तो कुछ इसे भविष्य के लिए अच्छा कहते हैं. लेकिन, एक बात पर सभी हॉस्टल के विद्यार्थी एकमत है कि टाइम को लेकर बहुत अधिक टोका-टोकी करने की जरूरत नहीं है. एक हद तक ठीक है. कभी-कभार देर-सबेर होने पर हॉस्टल संचालकों को एडजेस्ट करना चाहिए, न कि तुरंत बरस जाना चाहिए. घर से बाहर निकलने के बाद इस तरह जेल की तरह जिंदगी कष्टदायक हो जाती है.

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