सविता महतो के नाम वापस लेने पर झामुमो में उथल-पुथल, तीन विधायकों का इस्तीफा
रांची:झामुमो ने राज्यसभा के लिए स्व. सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को प्रत्याशी बनाया. रात में ही उन्हें सूचना दे दी गयी थी. श्रीमती महतो अपने परिजनों व समर्थकों के साथ दिन के 12.30 बजे शिबू सोरेन के मोरहाबादी स्थित आवास पहुंचीं. तब उनके चेहरे पर मुस्कान थी. उन्हें इसका भान तक नहीं था कि उनका टिकट कट गया है.
सूत्रों ने बताया कि वह शिबू सोरेन से मिलीं. झामुमो के अन्य नेताओं से भी बात की. तब तक मामला उलट चुका था. सब कन्नियां काट रहे थे. किसी के पास जवाब देते नहीं बन रहा था. सविता महतो असमंजस में थी कि आखिर हुआ क्या है! तब पार्टी के ही एक विधायक ने बताया कि उन्हें इस बार प्रत्याशी नहीं बनाया जा रहा है. अगली बार मौका दिया जायेगा.
इसके बाद सविता महतो सीधे वहां से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ी. जब वह बाहर निकलीं, तो उनकी आंखों में आंसू थे. वह रोते हुए चली गयीं. मीडिया ने रोकने की कोशिश की, पर वह नहीं रुकी. कार में वह फफक पड़ी. उनके एक करीबी ने बताया कि उन्होंने इतना ही कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ ऐसा बरताव किया जायेगा. वह भी तब, जब उनके पति का अब तक श्रद्ध कर्म तक नहीं हुआ है.
झामुमो :खुद के मास्टर स्ट्रोक से पिटी भद्द
राजद की धमकी काम आयी. झामुमो को झुकना पड़ा. ऐन वक्त पर प्रत्याशी का नाम वापस लेना पड़ा. एक दिन पहले ही राजद ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी थी. इसके बावजूद झामुमो ने सविता महतो को राज्यसभा प्रत्याशी बनाया. पार्टी जिसे मास्टर स्ट्रोक मान रही थी, उसी स्ट्रोक से पार्टी की भद्द भी पिट गयी. पार्टी में ही बगावत के स्वर उठने लगे हैं. अब झामुमो के नेता सफाई देते चल रहे हैं.
जो स्थिति सोमवार को थी, वही स्थिति मंगलवार को भी थी. सोमवार को सविता महतो के नाम की जोरदार तरीके से घोषणा की गयी, तो मंगलवार को दबी जुबान से नाम वापसी की घोषणा की गयी. झामुमो ने एक रणनीति के तहत सविता महतो का नाम आगे किया था. साथ ही स्थानीय की बात करनेवाली पार्टियों को चुनौती देते हुए सहयोग करने की अपील भी की थी. पार्टी इस भ्रम में रही कि सुधीर महतो के निधन पर आजसू और भाजपा के नेता उनकी विधवा को ढांढ़स बंधा रहे थे, तब राज्यसभा चुनाव में भी साथ देंगे. पार्टी यह भूल गयी कि किसी एक प्रत्याशी पर सत्ता पक्ष व विपक्ष के एक साथ होने की राह काफी कठिन है. दूसरी ओर, झामुमो अपने सहयोगी दलों को विश्वास में नहीं ले सका. इस उम्मीद में रहा कि सविता महतो के नाम पर सहयोगी दल भी एकजुट हो जायेंगे, पर ऐसा नहीं हो सका. परिणामस्वरूप झामुमो को बैकफुट पर आना पड़ा.
इमोशन पर भारी सरकार
सोमवार को विधायक दल की बैठक की शुरुआत में बसंत सोरेन को प्रत्याशी बनाये जाने की चर्चा हुई थी. शिबू ने ही सारी चर्चाओं पर विराम लगाते हुए सविता महतो को प्रत्याशी बनाने की घोषणा की थी. सभी लोगों ने इमोशन के साथ इस फैसले पर सहमति जतायी. झामुमो में शिबू का फैसला अंतिम फैसला होता है, पर इस मामले में शिबू सोरेन के फैसले को भी टालना पड़ा. पार्टी के सामने एक तरफ सरकार थी और दूसरी तरफ राज्यसभा की सीट. अंतत: पार्टी सरकार के साथ रही. यानी इमोशन पर सरकार भारी पड़ी.
सविता को जल्द ही बड़ा पद
पार्टी की भद्द पिटती देख झामुमो के तीन विधायक मथुरा महतो, जगन्नाथ महतो और विद्युत वरण महतो ने अपना इस्तीफा शिबू सोरेन को सौंप दिया. पार्टी अब क्राइसिस मैनेजमेंट में जुट गयी है. सूत्रों की मानें, तो अब फेस सेविंग की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. सविता महतो को दो से तीन दिनों के भीतर ही बड़ा पद दिया जा सकता है. संभवत: किसी बोर्ड या निगम का चेयरमैन बनाया जा सकता है. एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि जब तक कि केडी सिंह की रिक्त सीट पर चुनावी प्रक्रिया आरंभ नहीं होती, श्रीमती महतो को बड़े पद पर बैठाया जा सकता है.
राज्यसभा चुनाव: सविता महतो की नाम वापसी के बाद दलों ने जताया विरोध
जमशेदपुर: जिस परिवार की शहादत के बाद झारखंड आंदोलन खड़ा हुआ, झामुमो को एक नया तेवर मिला, उसी परिवार की विधवा को आज उसकी ही पार्टी ने राज्यसभा का टिकट देने की घोषणा करने के बाद अपने हाथ खींच लिये. राजनीतिक हालात को इसका कारण बताया गया. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को स्व सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को राज्यसभा का टिकट देने की घोषणा की थी. इसके बाद सविता महतो को मंगलवार की सुबह करीब आठ बजे नामांकन फॉर्म लाकर दिया गया. नामांकन भरने के बाद सविता महतो भांजे लालटू महतो के साथ इनोवा पर सवार होकर रांची के लिए रवाना हुईं. कुरमी परंपरा के मुताबिक, पति की मौत के बाद विधवा को दशकर्म तक घर से बाहर नहीं निकलना होता है. नदी -नाला भी पार करना नहीं होता है, लेकिन इसका वैकल्पिक उपाय करते हुए पार्टी के बुलावे पर सविता महतो निकलीं. पार्टी हित के लिए वह रांची गयीं, लेकिन जब रांची पहुंचीं, तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें बताया कि राजनीतिक हालात के कारण वे लोग अभी टिकट नहीं दे सकते हैं. इसके लिए उन्होंने माफी तक मांगी और शर्मिदगी भी जतायी. इसके बाद सविता महतो अपने ससुराल लौट गयीं. वे शाम के वक्त घर पहुंचीं. उनका हाल-चाल जाननेवालों का भीड़ लग गयी. सभी पूछ रहे थे कि आखिर उनके साथ हुआ क्या है. पार्टी का टिकट काटने से स्थानीय लोगों में जबरदस्त आक्रोश देखा गया. परिवार भी काफी निराश है. अब उन लोगों को सूझ नहीं रहा है कि आखिर उनके साथ क्या हुआ है और वे लोग आगे क्या करें.
सीधे तौर पर शहीद परिवार के साथ धोखा
अगर ऐसे ही फैसले को पलटना था, तो बैठक में फैसला लेना ही नहीं चाहिए था. जिसने कभी कहा था कि मेरी लाश पर झारखंड बनेगा, उसके लिए झारखंड के लिए लहू देनेवाले शहीद परिवार को टिकट देने से मना कर दिया गया. इससे अधिक दुख की बात और क्या हो सकती है. यह सीधे तौर पर शहीद के परिवार के साथ धोखा है. ठेस पहुंचायी गयी है.
अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड
झारखंड का सम्मान दिल्ली के हाथ गिरवी
रांची. झाविमो नेता प्रवीण सिंह ने कहा कि इस बार राज्यसभा चुनाव में बड़े दलों ने सौदेबाजी की. झारखंड का मान-सम्मान कांग्रेस-भाजपा के दिल्ली दरबार के पास गिरवी रख दी गयी है. झारखंड के मान-सम्मान का दिल्ली के नेताओं को ख्याल नहीं है. कांग्रेस व भाजपा ने स्थानीय लोगों को छलने का काम किया है. आजसू स्थानीयता और विशेष राज्य की बात करती है, लेकिन हर बार यहां के लोगों को धोखा दिया है.
प्रवीण सिंह, झाविमो नेता