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कांग्रेस का फैसला है

-हरिवंश- झारखंड में यूपीए सरकार की शपथ, इसके तत्काल बाद बिहार में राजद को कांग्रेस का समर्थन पत्र! ये दोनों निर्णय कांग्रेस आलाकमान के हैं. फर्क यह है कि कांग्रेस हाइकमान के झारखंड निर्णय को एक संवैधानिक संस्था झारखंड के राज्यपाल ने क्रियान्वित किया है, जबकि बिहार के राजद समर्थन के फैसले को बिहार कांग्रेस […]

-हरिवंश-

झारखंड में यूपीए सरकार की शपथ, इसके तत्काल बाद बिहार में राजद को कांग्रेस का समर्थन पत्र! ये दोनों निर्णय कांग्रेस आलाकमान के हैं. फर्क यह है कि कांग्रेस हाइकमान के झारखंड निर्णय को एक संवैधानिक संस्था झारखंड के राज्यपाल ने क्रियान्वित किया है, जबकि बिहार के राजद समर्थन के फैसले को बिहार कांग्रेस संगठन ने.
यह महज संयोग नहीं है कि हरियाणा में दो-तिहाई बहुमत के बाद कांग्रेस अपना नेता आज तक नहीं चुन सकी है. पर झारखंड में यह जल्दबाजी संवैधानिक पद की कीमत पर सुनियोजित ढंग से की गयी.झारखंड राज्यपाल का फैसला, परंपरा और प्रामाणिकता दोनों के खिलाफ है. परंपरा है कि अस्पष्ट बहुमत होने पर संवैधानिक प्रमुख (राज्यपाल या राष्ट्रपति) चुनाव पूर्व बड़े गंठबंधन को न्योतता है. केंद्र में देवगौड़ा सरकार के गठन के पहले अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनी सरकार, फिर संयुक्त मोरचा की सरकार (देवगौड़ा और गुजराल) ऐसे ही बनी.
केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार कांग्रेस ने ऐसे ही बनवायी. जनता दल में टूट के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ने बड़े समूह के रूप में कांग्रेस को न्योता. कांग्रेस ने इनकार किया. झारखंड में चुनाव पूर्व गंठबंधन के रूप में राजग सबसे बड़ा समूह बन कर आया था. उधर यूपीए में चुनाव पूर्व तालमेल नहीं था. सिर्फ झामुमो और कांग्रेस के बीच तालमेल था. राजद नहीं था. फिर भी पांच निर्दलीय विधायकों को लेकर (सुदेश महतो, मधु कोड़ा, चंद्रप्रकाश, हरिनारायण, एनोस एक्का) राजग के लोग राज्यपाल के यहां गये. तय समय से दो घंटे विलंब से. राजग के वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि राज्यपाल का रुख आहत करनेवाला था. संभव है, विलंब की वजह से. उस समूह में ये पांचों निर्दलीय विधायक साथ थे. इन लोगों ने टीवी पर बयान दिया.
उस दिन शाम को सुदेश महतो समेत इन पांचों ने प्रेस कांफ्रेंस किया. अगले दिन सुबह ये पांचों राज्यपाल के पास गये और अपना पक्ष रखा. वहां से आकर टीवी चैनलों-मीडिया से बात की.कांग्रेस ने आरोप लगाया कि एनोस एक्का का अपहरण कर लिया गया है. एक और दो मार्च को एनोस दो-दो बार राजभवन गये. इन पांच विधायकों ने अलग प्रेस कांफ्रेंस की. टीवी संवाददाताओं से अपनी बात कही. अगर एनोस अपहृत थे, तो क्या दो दिनों में उन्हें ऐसा एक भी क्षण, माहौल नहीं मिला, जहां अपने अपहरण की बात कह सकते?
एनोस के बारे में यह भी कहा गया कि उनके पार्टी अध्यक्ष एनइ होरो ने यूपीए को लिखित समर्थन दिया है. अगले दिन उसी होरो साहब ने अपने पुराने पत्र को वापस लेने का पत्र भी दिया है. इसी पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष ने राजग के समर्थन में पत्र दिया है. अब सच क्या है? ये दोनों पत्र, विधायक एक्का की लगातार दो दिनों तक टीवी से लेकर राजभवन तक राजग के पक्ष में शारीरिक उपस्थिति या होरो साहब का पहला पत्र?
राज्यपाल के लिए तय करना कठिन था, तो एक आसान रास्ता थे. वह उन विधायकों को बुलाते, जिनके नाम दोनों की सूची में था. मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्यपाल अपने प्रशासन से कह कर जांच करा सकते थे कि कौन अपहृत है या गलत पत्र दे रहा है?शायद राज्यपाल चिंतित थे कि एनडीए के लोग (जो संभव है) विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगे हैं. अगर राज्यपाल विधायकों की ‘हार्स ट्रेडिंग’ (आयाराम-गयाराम) से चिंतित थे, जो उन्हें संवैधानिक प्रमुख के रूप में होना चाहिए, तब अपने विवादास्पद फैसले से उन्होंने यूपीए को बहुमत साबित करने के लिए 20 दिनों का समय क्यों दिया? ऐसी स्थिति में एक सप्ताह का समय पर्याप्त होता. अधिक समय ‘हार्स ट्रेडिंग’ के लिए दिया गया है या उसे रोकने के लिए?
दो मार्च दोपहर तक नंबर गेम एनडीए के साथ टीवी में दिखा. 20 दिनों में संभव है यह पलट जाये, क्योंकि सत्ता में पद और पैसा अब चुंबकीय तत्व हैं. 20 दिनों की लंबी अवधि राज्यपाल के फैसले के प्रति शंका पैदा करती है.इस शंका की एक और वजह है. एक मार्च की शाम स्टीफन मरांडी ने बता दिया था कि कल यानी दो मार्च को यूपीए को शपथ दिलायी जायेगी. ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ (दो मार्च) में यह आठ कॉलम की बैनर हेडलाइन है. स्वाभाविक सवाल है कि क्या एक मार्च को यूपीए के नेताओं को राज्यपाल ने पहले से कह दिया था कि दो मार्च को आपको शपथ दिलायेंगे?

तब दो मार्च को निर्दलीय विधायकों से मिल कर बातचीत करने और संतुष्ट होने की बात राज्यपाल ने क्यों कही? क्या चुनाव परिणाम आते ही वह यूपीए सरकार बनवाने का फैसला कर चुके थे? एनडीए के नेताओं का कहना है कि राज्यपाल से बातचीत में जब इन नेताओं ने ‘पारदर्शिता’ की बात की, तो वह नाराज हुए, दो मार्च को शपथ दिलायेंगे, यह बात अगर एक मार्च को ही यूपीए नेताओं को पता थी, तो पारदर्शिता कहां थी? दिल्ली से आये यूपीए के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार यह शपथग्रहण एक मार्च को ही होना था. पर कांग्रेस ने कहा कि यह शुभ दिन नहीं है.


राज्यपाल के फैसले ने एनडीए को जीवन दान दिया है. वे गद्दी हारे हैं, पर कांग्रेस के खिलाफ नैतिक सवाल उठे हैं. बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं, उत्तरप्रदेश के पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी और आंध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल रामलाल ने अपने फैसलों से तत्कालीन विरोधी दलों को ऊर्जा-आक्सीजन दी थी. झारखंड राजभवन के इस फैसले से भविष्य में असर पड़ेगा.

लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस पुनर्जीवन की ओर थी. सोनिया गांधी का आभामंडल बढ़ा था. गोवा और झारखंड के फैसलों से सोनिया जी व कांग्रेस दोनों को झटका लगेगा. बिहार-झारखंड के चुनावों में कांग्रेस की सीटें कम हुई हैं. यह संकेत कांग्रेस को समझना चाहिए. एनडीए के लोगों ने राजभवन के सामने धरना-प्रदर्शन कर लोकतांत्रिक-संवैधानिक संस्थाओं के प्रति मर्यादा का परिचय नहीं दिया था, पर राज्यपाल के विवादास्पद फैसले से नये बड़े सवाल खड़े हो गये हैं.

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