-हरिवंश-
सुप्रीम कोर्ट के सौजन्य से मतदाताओं के पास एक अमोघ अस्त्र पहुंच गया है. हालांकि इसे आवश्यक महत्व-प्रचार नहीं मिला है. वैसे भी मीडिया की दिलचस्पी बदलाव में नहीं है. इसलिए यह प्रसंग मीडिया में अचर्चित है. राजनीतिक दल तो ऐसे कानूनी प्रावधानों के खिलाफ, विचार, दल, रंग का चोला उतार कर एकजुट हो गये. इसलिए उनकी रुचि ऐसे अमोघ अस्त्रों का प्रचार-प्रसार न होने देने में है. भारत का शासक (पक्ष, विपक्ष, नौकरशाह और पूंजी) इस एक अचूक हथियार से मुसीबत में पड़ सकता है, बशर्ते जनता इस हथियार का इस्तेमाल शुरू कर दे.
हम घरों में, ड्राइंग रूमों में, चौक-चौपालों में राजनीतिक पतन पर रोते हैं. परनिंदा हमारी रगों में है, पर लोकतंत्र की जीवंत और गतिशील रहने की बुनियादी शर्त है, नागरिक पहल, लोक हस्तक्षेप. भारतीय लोकतंत्र-समाज की सफाई की बुनियाद इस एक अस्त्र से हो सकती है. इसके लिए चाहिए एक मामूली संकल्प. इस आम चुनाव में 60 फीसदी मतदाता 40 साल से कम उम्र के हैं. युवकों की छोटी टोली भी गांव, शहर से लेकर दिल्ली तक लोकसभा चुनावों में इस हथियार को आजमाने का संकल्प कर ले, तो राजनीति की सूरत-सीरत बदल सकती है. ‘क्वालिटी ऑफ पालिटिक्स’ (राजनीतिक स्तर) और गवर्नेंस (शासकीय पद्धति) में चमत्कारिक बदलाव हो सकते हैं? एनजीओ समूह, लोकतंत्र में सुधार की पक्षधर ताकतें, सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज के प्रवर्त्तक) अगर इस मुहिम में उतर जायें, तो इस सफाई अभियान से दलाली, भ्रष्टाचार, अपराध और विचारहीनता के चक्रव्यूह से राजनीति निकल सकती है.
सिर्फ नकारात्मक बातें करनेवाले, अकर्मण्य और हर बात पर छाती पीटनेवाले इस कानूनी प्रावधान को भी तुरंत खारिज करेंगे. पर कहीं न कहीं से शुरुआत तो करनी होगी. महात्मा गांधी अक्सर कहते थे- एक मामूली, पर सार्थक कदम से माहौल बदल सकता है.तो माहौल बदलने का कारगर औजार हम नागरिकों के पास क्या है?
13 मार्च 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया. इससे मतदाताओं को अपने प्रतिनिधियों को जानने का अधिकार मिला. इसके बाद चुनाव आयोग ने इसे लागू किया. इसके तहत चुनाव में नामांकन के समय प्रत्याशी को ‘डिस्क्लोजर फार्म’ (घोषणा पत्र) भरना है. इस फार्म में अगर प्रत्याशी ने गलत सूचनाएं दी हैं, तो वह चुनाव जीत कर भी, अपनी सीट खो देगा. इस फार्म में प्रत्याशियों के द्वारा दी गयी सूचनाएं, तुरंत सार्वजनिक की जानी हैं. अब किसी रिटर्निंग आफिसर की कृपा पर नहीं है कि वह चुनाव लड़नेवाले ऐसे प्रत्याशियों की इस ‘डिस्क्लोजर फार्म’ में दी गयी सूचनाएं दबा सके.
इस अधिकार का हम कैसे उपयोग कर सकते हैं? प्रभात खबर राजनीति में सार्थक हस्तक्षेप की योजना के तहत लोकसभा चुनावों में नामांकन करनेवाले प्रत्याशियों के निजी ब्योरे छाप रहा है. प्रत्याशियों के ‘डिस्क्लोजर फार्म’ में दी गयी सूचनाएं आप पढ़ रहे हैं. इन सूचनाओं में एक भी तथ्य गलत होने पर प्रत्याशी फंसेगा. इसीलिए राजनीति में सुधार के पक्षधर इन सूचनाओं को गौर से पढ़ें. बिना किसी पूर्वाग्रह के जांच करें. अगर एक भी गलत तथ्य मिलते हैं, तो आप सप्रमाण प्रभात खबर (इलेक्शन वाच डेस्क, पी-15, कोकर इंडस्टियल एरिया, रांची) को भेजें. पर ध्यान रखें. पूर्वाग्रह या निजी दुराग्रह, ईर्ष्या-द्वेष या गलत मंशा से इस ‘गांडीव’ का आप इस्तेमाल करेंगे, तो इसकी पवित्रता खत्म हो जायेगी.
चुनाव लड़नेवाले प्रत्याशियों को कौन-कौन सी सूचनाएं देनी हैं? अपने और अपने सगों की पूरी संपत्ति का ब्योरा. उधार भी. शपथ पत्र पर. इन सूचनाओं से हम अपने प्रत्याशी की ईमानदारी की एक झलक पा सकते हैं. भ्रष्ट, लुटेरे, कमीशनखोर नेताओं से मुक्ति का एक रास्ता. ऐसे नेता जरूर सूचनाएं छिपायेंगे, पर चौकस लोगों का फर्ज है, उनकी गोपनीय सूचनाएं निकालना. यह मुश्किल नहीं है. एक प्रत्याशी को यह भी बताना है कि उसके खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं. कहां-कहां दर्ज हैं? इस सूचना से प्रत्याशी की पृष्ठभूमि, चरित्र और कारगुजारियों के बारे में आप जान सकते हैं. प्रत्याशियों को अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि की सूचना भी देनी है. यह सूचना आपको निर्णय करने में मदद करेगी.
संसद-विधानमंडल के ‘दृश्यों’ को टीवी पर देख कर जो लोग इसे ‘मछली बाजार’ की संज्ञा देते हैं, वे मतदान करते समय फैसला कर सकते हैं कि संसद-विधानमंडल की गरिमा-आभा बढ़ने में हमारी भूमिका होगी या ‘बाजार’ बने रहने देने में!