-हरिवंश-
हूल का स्मरण क्यों? हूल (विद्रोह) के 150 वर्ष होने पर प्रभात खबर के इस विशेषांक के आयोजन का मकसद क्या है?वर्तमान से बेचैन और असंतुष्ट ताकतें, हमेशा अतीत और इतिहास से पुनर्निर्माण, आस्था, सृजन और भविष्य गढ़ने की प्रेरणा पाती हैं. झारखंड का समृद्ध अतीत, संतालों की गौरवपूर्ण भूमिका और आदिवासियों की चेतना, भविष्य की चुनौतियां स्वीकार करने और नयी राह गढ़ने की ऊर्जा देते हैं.
इसलिए हूल के 150 वर्ष होने के ऐतिहासिक अवसर पर प्रभात खबर टीम ने काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी थी. प्रो संजय बसु मल्लिक, डॉ रामदयाल मुंडा वगैरह के साथ मिल कर इस अवसर पर विशेषांक प्रकाशन और रांची में तीन दिनों की एक गोष्ठी का कार्यक्रम तय हुआ. इस योजना का परिणाम है, यह हूल विशेषांक, जिसमें देश- विदेश के जाने-माने लेखकों ने लिखा है.
हूल का एक महत्वपूर्ण सृजनात्मक पहलू है, नवनिर्माण के लिए विद्रोह, यथास्थिति बदलने के लिए हूल. भोगनाडीह से सिद्धो-कान्हू के नेतृत्व में उठी आवाज शोषण-अत्याचार से मुक्ति की आवाज थी, तो एक नये समतापूर्ण समाज के सृजन की बेचैनी भी थी. देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार चीजें बदलती हैं. इस हूल के 150 वर्ष होने पर आधुनिक चुनौतियों के अनुरूप हम एक नये बदलाव-नये मानस के लिए ऊर्जा पा सकें, अपने इतिहास से सीख सकें, यही इस विशेषांक का मकसद है.
इस अवसर पर रांची में तीन दिनों की एक विशेष गोष्ठी भी हो रही है. इस गोष्ठी का आयोजन संताल हूल 150वीं वर्षगांठ समारोह समिति ने किया है. इस समिति में प्रभात खबर सहित 21 जन संगठन, शोध संगठन और सामाजिक संगठन शामिल हैं. इसमें झारखंड के कोने-कोने से तकरीबन 200 चुनिंदा लोग भाग लेंगे. हूल के अध्येता-जानकार भी रहेंगे. ये लोग इस बात पर भी विमर्श करेंगे कि आधुनिक समय में हम इतिहास की इस धरोहर से क्या सीखें?
इतिहास को मोड़नेवाली घटनाएं समाज के लिए उस लैंपपोस्ट की तरह हैं, जो अंधकार में भटकते समुद्री जहाज को दिशा देती हैं. उनका स्मरण समाज में नयी उमंग-उत्साह भरता है. हूल स्मृति की इस घड़ी में यह नया मानस झारखंड में पैदा हो, यही प्रभात खबर के इस विशेषांक और आयोजन का प्रयोजन है.