-आतंकवाद से निपटने के लिए अलग से नहीं है फोर्स
-आतंकियों का पनाहगार बनी रांची
-एटीएस के गठन को लेकर सरकार नहीं है गंभीर
-सुरजीत सिंह-
रांचीः आतंकी खतरों से निपटने के लिए झारखंड पुलिस के पास अपना कोई फोर्स नहीं है. आतंकियों से लड़ने के लिए देश के दूसरे राज्यों में एंटी टेरेरिस्ट स्क्वायड (एटीएस) काम कर रहा है, जबकि झारखंड में इसके गठन को लेकर यहां की सरकार गंभीर नहीं दिखती.
हालांकि पटना ब्लास्ट के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एटीएस के गठन की जरूरत की बात तो कही, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ा. पिछले पांच वर्ष से राज्य में एटीएस के गठन की प्रक्रिया चल रही है. स्पेशल ब्रांच के तत्कालीन एडीजी जीएस रथ ने एटीएस गठन का प्रस्ताव तैयार किया था. प्रस्ताव पुलिस मुख्यालय ने सरकार को भेजा था. एटीएस में फोर्स का स्ट्रेंथ 800 रखा गया था. सरकार के स्तर पर 800 फोर्स को लेकर सवाल उठे और फाइल वापस लौटा दी गयी. स्पेशल ब्रांच के तत्कालीन एडीजी अशोक कुमार सिन्हा के समय भी एक प्रस्ताव सरकार को भेजा गया. इसमें फोर्स की संख्या को 800 से घटा कर 300 किया गया था. इस बार भी सरकार ने फोर्स की संख्या ज्यादा होने की बात कह कर प्रस्ताव को वापस कर दिया. करीब छह माह पहले स्पेशल ब्रांच ने एक और प्रस्ताव भेजा है. इसमें फोर्स की संख्या 150 बताया गया है, लेकिन इस प्रस्ताव पर अब तक सरकार की सहमति नहीं मिली है.
पुलिस विभाग के आला अधिकारी भी मानते हैं कि पहले सिर्फ यह सूचना थी कि झारखंड आतंकियों का स्लीपिंग सेल है, लेकिन पटना ब्लास्ट के बाद यह साफ हो गया है कि रांची समेत राज्य के विभिन्न हिस्सों में आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन का मजूबत नेटवर्क है. बोधगया और पटना में हुए सीरियल ब्लास्ट की योजना रांची में ही बनी थी. यहीं के रहनेवाले युवकों की पहचान आतंकी के रूप में हुई.
एक तरह से देखें, तो आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के मामले में झारखंड पुलिस अब भी पिछलग्गू की भूमिका में है. दूसरे राज्य या केंद्रीय एजेंसियों (आइबी या एनआइए) से मिलनेवाली सूचनाओं पर कार्रवाई करना ही राज्य पुलिस का काम रह गया है.