रांचीः राज्य में आठ वर्षो में एक करोड़ रुपये से अधिक की 182 निर्माण योजनाएं अधूरी हैं. इन्हें 2005 से मार्च 2012 के बीच पूरा करने का अलग अलग समय निर्धारित किया गया था. समय पर पूरी नहीं होने के कारण आम लोगों को इन योजनाओं को लाभ नहीं मिल पा रहा है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011 के मुकाबले 2012 में अधूरी योजनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है. वर्ष 2011 के अंत तक विकास कार्यो से जुड़ी 167 योजनाएं अधूरी थीं. वर्ष 2012 में अधूरी योजनाओं की संख्या बढ़ कर 182 हो गयी है. सबसे अधिक अधूरी योजनाएं पथ निर्माण विभाग में हैं. दूसरे नंबर पर भवन निर्माण विभाग है. पथ निर्माण विभाग की अधूरी 104 सड़क-पुल की योजनाओं की मूल लागत 451.29 करोड़ रुपये थी. विभाग ने सड़क की इन योजनाओं पर मार्च 2012 तक सिर्फ 149.53 करोड़ रुपये ही खर्च किये हैं. भवन निर्माण विभाग ने 339.81 करोड़ रुपये लागत की 58 योजनाओं पर 222.70 करोड़ खर्च किये हैं. जल संसाधन विभाग की भी 13 योजनाएं अधूरी हैं. पेयजल विभाग की एक करोड़ से की सात योजनाएं अधूरी हैं.
कुछ अधूरी योजनाओं का उदाहरण
शोभा नदी पर उच्च स्तरीय पुल का निर्माण : सरायकेला-खरसावां जिले के इचागढ़ प्रखंड में पंडरा और कुकरू के बीच शोभा नदी पर पुल बनाने की योजना की स्वीकृति जुलाई 2010 में हुई थी. दिसंबर 2010 में निर्माण कार्य शुरू हुआ. इसे दिसंबर 2011 तक पूरा करने का लक्ष्य था. पुल की लागत 1.65 करोड़ रुपये है. मार्च 2012 तक सिर्फ 10 प्रतिशत काम हुआ था.
एनएच 33 की मरम्मत का काम : 4.5 करोड़ की लागत से एनएच 33 के 269 से 280 किलोमीटर तक मरम्मत की योजना स्वीकृत हुई थी. इस काम को फरवरी 2012 तक पूरा करना था. पर, मार्च 2012 तक सिर्फ 35 प्रतिशत काम ही हुआ था.