17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंडी नेताओं, खास तौर से सरकार के रहनुमाओं से : समझिए, कांग्रेस के संकेत साफ हैं!

– हरिवंश – राजनीति संभावनाओं का खेल है. और कांग्रेस संभावनाएं तलाश रही है. इस नयी संभावना की प्रयोगस्थली बन रहा है झारखंड. फिलहाल कांग्रेस के लिए झारखंड का महत्व कम, झारखंड में कांग्रेस द्वारा नयी राजनीतिक संभावनाओं की तलाश का महत्व अधिक है. जो कांग्रेस की परंपरा, कार्यसंस्कृति और संगठन से वाकिफ हैं, वे […]

– हरिवंश –
राजनीति संभावनाओं का खेल है. और कांग्रेस संभावनाएं तलाश रही है. इस नयी संभावना की प्रयोगस्थली बन रहा है झारखंड. फिलहाल कांग्रेस के लिए झारखंड का महत्व कम, झारखंड में कांग्रेस द्वारा नयी राजनीतिक संभावनाओं की तलाश का महत्व अधिक है.
जो कांग्रेस की परंपरा, कार्यसंस्कृति और संगठन से वाकिफ हैं, वे जानते हैं कि आलाकमान की आज्ञा के बिना कांग्रेसी सांस भी नहीं लेते. वे झारखंड के स्वच्छंद और मुक्त निर्दलों की तरह नहीं हैं. कहीं भी, कुछ भी बोलने-करने के लिए स्वतंत्र. वह भी एक केंद्रीय मंत्री और ऊपर से झारखंड राज्य कांग्रेस प्रभारी अपने मन और स्तर से कोई बड़ा फैसला नहीं कर सकता.
कांग्रेस में संगठन या आलाकमान की सीमा से बाहर गये कि छुट्टी. पर पिछले दो महीने में अजय माकन साफ-साफ एक ही भाषा और बात बोल रहे हैं. राजनीति की मामूली समझ रखनेवालों को भी यह स्पष्ट है कि आलाकमान की सहमति के बिना अजय माकन यह ‘स्टैंड’ ले ही नहीं सकते. पर झारखंड के नादान राजनीतिज्ञ यही मान रहे हैं कि आलाकमान से बात कर वे अजय माकन को प्रभारी पद से मुक्त करा देंगे? विनाश काले विपरीत बुद्धि, यही है.
माकन से मिलना नहीं हुआ है. वैसे भी राजनेताओं से परहेज है. पर माकन के बयानों से स्पष्ट है, वह सिस्टेमेटिक, सिजंड और मैच्युर्ड (सुव्यवस्थित, अनुभवी और परिपक्व) हैं. ठेका, पट्टा और बिचौलियों का धंधा न करते हैं, न प्रश्रय देते हैं. यह धारणा कैसे बनी? बिना मिले और जाने? झारखंड की राजनीति में बिचौलिये, दलाल और ठेकेदार अहम रोल में हैं. झारखंड का माखन डकार रहे इस लुटेरे वर्ग को जरा भी लगता कि माकन मैनेज हो सकते हैं, तो माकन इस स्टैंड तक और इतनी दूर तक आये ही नहीं होते. अब वह सिस्टेमेटिक और मैच्युर्ड हैं, तो उन्हें मैनेज करनेवाला भी उसी स्तर का चाहिए.
पर इधर कौन है? कुछेक मंत्रियों को छोड़ दें, तो अधिसंख्य अपनी बात तक नहीं रख सकते. ये घिरे हैं, अपराधीनुमा निजी सचिवों से. दलालों से. अब इस जमात की संस्कृति है, कानूनन न चलना, मन की इच्छा को कानून मानना, दलालों से घिरे रहना. अब इस समूह और माकन के बीच संवाद का माध्यम या सेतु क्या हो सकता है? यह मामूली बात भी सरकार चलानेवाले नहीं समझ रहे? यह बेमेल संबंध टूटना ही था.
सत्ता वासना भयंकर रोग है. झारखंड सरकार इस रोग की शिकार है. खासतौर से निर्दलीय यह बात न पचा पा रहे हैं और न देख पा रहे हैं कि सत्ता उनके हाथों से फिसल रही है.
निर्दल, राजनीतिक अनाथ प्राणी होते हैं. झारखंड में चल रहे राजनीतिक द्वंद्व से यह पुन: साबित हो रहा है. क्या लालू प्रसाद जैसा मंजा हुआ राजनीतिक खिलाड़ी, एक सीमा के बाद इन निर्दलों के साथ खड़ा होगा? या कांग्रेस के साथ? इस सरकार से सर्वाधिक लाभ पानेवालों में से गुरुजी शिबू सोरेन हैं. कांग्रेस का स्पष्ट रुख जान कर वह भी मौन साध लेंगे?
झामुमो को भी संसद पहुंचने या विधायक बढ़ाने के लिए आज कांग्रेस की उतनी ही जरूरत है, जितनी कांग्रेस को झामुमो की. झारखंड सरकार के निर्दलों के कारनामे देश में गूंज रहे हैं.
सूचना है कि माकन व कांग्रेस के पास सबूत हैं. जब गुरुजी सरकार बचाव का प्रस्ताव लेकर कांग्रेस के पास जायेंगे, तो इन आरोपों के क्या उत्तर देंगे? हाल की दिल्ली यात्रा में मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने सोनिया गांधी से मिलने की पुरजोर कोशिश की, पर उन्हें समय नहीं मिला. क्या यह संकेत साफ व स्पष्ट नहीं है?
माकन ने 19 जनवरी को रांची में जो बयान दिये, वे गौर करने लायक है. उन्होंने कहा, ‘सिमरिया में हमारा नारा होगा, भ्रष्टाचार मिटाना है, विकास लाना है, कांग्रेस ने ठाना है. अगर हम सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं करेंगे, तो लोग कैसे उम्मीद करेंगे कि हम एक स्वच्छ शासन देंगे’.
माकन यहीं नहीं रुके, फरमाया, मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और सरकार के अन्य मंत्री कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार करने सिमरिया नहीं जायें. कांग्रेस को उनकी मदद नहीं चाहिए.
ऐसे अनेक साफ और स्पष्ट बयानों के बाद भी झारखंड सरकार अपनी स्थिति समझने के लिए तैयार नहीं है. माकन का रांची में उसी दिन दिया गया एक और बयान अर्थपूर्ण है. उन्होंने कहा, सिमरिया हिंदी बेल्ट के लिए टर्निंग प्वाइंट है. यहीं से पार्टी बिहार-यूपी में इतिहास की ओर लौटेगी.
इस कथन के महत्व को जानने के लिए अतीत में जाना जरूरी है. 1990 के बाद जिस तेजी से क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ, राष्ट्रीय दल, खासतौर से कांग्रेस इतिहास बनने लगी. कांग्रेस का एक वर्ग जो अब तक प्रभावी था, वह सत्ता बिना रह नहीं सकता था.
सिद्धांत, आचरण सब छोड़ कर. यही तबका दो दशकों से कांग्रेस में हावी रहा. पर मिली सूचनाओं से लगता है, कांग्रेस में हवा बदल रही है. कांग्रेस का दूसरा वर्ग मानता है कि यूपी और बिहार में कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों से गंठबंधन कर अपना अस्तित्व मिटा डाला.
अब उसे अलग और स्वतंत्र पहचान की राजनीति करनी चाहिए. राजनीति में मुद्दों की ओर लौटना चाहिए, भले ही पार्टी को वर्षों अकेले चलना पड़े. गुजरात और हिमाचल के चुनावों में मिली पराजय ने कांग्रेस में मंथन तेज किया है. अलग पहचान और सैद्धांतिक राजनीति की बात करनेवाले, लगता है, कांग्रेस में फिलहाल प्रभावी हैं. और यही संभावना कांग्रेस, झारखंड में तलाश रही है. यह प्रयोग वह उत्तरप्रदेश और बिहार तक ले जाना चाहती है. यही माकन के बयान का अर्थ है.
इसी कारण कांग्रेस अब निर्दलों के बोझ से मुक्ति चाहती है. वैसे भी अगले साल के आरंभ तक कमोबेश 10 राज्यों में चुनाव होने हैं, झारखंड एक और हो जायेगा. पर निर्दलीयों की सरकार से मुक्ति पा कर कांग्रेस की कोशिश होगी कि वह लोकसभा चुनावों में बेहतर परफार्म करे. फिलहाल झारखंड के कांग्रेसी सांसद मानते हैं कि इस सरकार की छत्रछाया में चुनाव लड़ कर वे लोकसभा नहीं पहुंच पायेंगे.
कांग्रेस ने राजद से जुड़े रहे योगेंद्र बैठा को सिमरिया में टिकट देकर अपनी भावी रणनीति का संकेत दे दिया है. वह लालू प्रसाद जी की इच्छानुसार राज्य में कांग्रेस को नहीं चलानेवाली. राज्य सरकार की भावी स्थिति समझने के लिए क्या ये संकेत पर्याप्त नहीं हैं?
दिनांक : 24-01-08

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें