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सिर्फ सवाल खड़ा करना मकसद नहीं!
– हरिवंश – यह संयोग ही था. पर था अजीब. विधायकों से जुड़े स्टिंग ऑपरेशन की जांच जिस समय विधानसभा की विशेष कमेटी कर रही थी, विधायकों के आचरण की चर्चा और शिकायत हो रही थी. लगभग उसी समय विधानसभा स्पीकर आलमगीर आलम के नाम पर राज्य सरकार के हेलिकॉप्टर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप […]
– हरिवंश –
यह संयोग ही था. पर था अजीब. विधायकों से जुड़े स्टिंग ऑपरेशन की जांच जिस समय विधानसभा की विशेष कमेटी कर रही थी, विधायकों के आचरण की चर्चा और शिकायत हो रही थी. लगभग उसी समय विधानसभा स्पीकर आलमगीर आलम के नाम पर राज्य सरकार के हेलिकॉप्टर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु और कांग्रेस प्रभारी बेगम नूर बानो जमशेदपुर की यात्रा कर रहे थे.
इस यात्रा के संबंध में स्पीकर महोदय का कहना है कि मैं बीमार था, इसलिए कहीं गया ही नहीं. पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बलमुचु ने कहा कि श्री आलम भी इस हेलिकॉप्टर से आये. हालांकि जमशेदपुर हवाई अड्डे पर दो ही लोग हेलिकॉप्टर से उतरे, प्रदीप बलमुचु और बेगम नूर बानो.
पहला प्रश्न तो यही उठता है कि सच कौन बोल रहा है? कांग्रेस अध्यक्ष या स्पीकर? इस प्रश्न का कानूनी पहलू, नैतिक पहलू,आचरण से जुड़े पक्ष, छोड़ भी दें, तो हमारी परंपरा मानती है –
‘महाजनो येन गता सपंथा:’
यानी जिस रास्ते बड़े लोग गये हों, वही रास्ता सही है. शेष लोग उसी रास्ते पर चलें. यह नैतिक मान्यता और शिक्षा है. ‘भ्रष्टाचार के कैंसर से ग्रस्त’ झारखंडी तो इन्हीं बड़े रहनुमाओं के आचरण से सीखेंगे? क्या झारखंड के रहनुमा साफ और सच नहीं बोल सकते? समाज के सामने ये क्या आदर्श रख रहे हैं?
साफ और सच बोलने में अड़चन कहां से है? आचरण साफ होगा, तो सच बात ही निकलेगी. चूंकि राज्य सरकार के हेलिकॉप्टर पर राज्य के मंत्री या वरिष्ठ सरकारी लोग ही सफर कर सकते हैं, इसलिए हेलिकॉप्टर स्पीकर के नाम से बुक कराया गया. पर उस पर यात्रा की दो लोगों ने, जो शासक दल के मुख्य घटक दल, कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदाधिकारी हैं. किसी भी दल के पदाधिकारी को सरकारी हेलिकॉप्टर से यात्रा का विधान नहीं है.
अगर कांग्रेस प्रभारी को आप हेलिकॉप्टर देते हैं, तो बसपा या अन्य दल के ओहदेदारों को कैसे रोक सकते हैं? अब कांग्रेस की भूमिका देखिए. राज्य के लगभग सभी महत्वपूर्ण कांग्रेसी, एक स्वर में राज्य सरकार को भ्रष्टाचार के लिए कोस भी रहे हैं. रोज धमकी भी देते हैं. पर सरकार से बेजा लाभ भी ले रहे हैं? यानी दोनों हाथ लड्डू और दोनों तरफ उसी हाथ से ताली. इस सवाल के कानूनी और नैतिक पहलू और गंभीर हैं.
पर यहां इस प्रसंग को दूसरे संदर्भ में उठाया गया है. हेलिकॉप्टर पर खर्च मद में सरकार प्रतिमाह 10 लाख रुपये भुगतान करती है. तय घंटे से अधिक उड़ान होने पर अलग से चार्ज भुगतान करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि बेगम और प्रदीप बलमुचु ने पहली बार इसका दुरुपयोग किया हो. एनडीए राज से लेकर अब तक सरकारी हेलिकॉप्टर के दुरुपयोग के अनेक प्रकरण सामने आ चुके हैं. पर सरकारी खर्चों के दुरुपयोग की जो परंपरा शुरू हुई, उसे यूपीए सरकार ने शिखर तक पहुंचाने का अभियान चला रखा है. यूपीए सरकार बनने पर एक मंत्री ने 1.50 लाख की मेज बनवायी. एक ने 80 हजार रुपये की कुरसी खरीदी.
एक ने 78 हजार की नेम प्लेट बनवायी, तो दूसरे ने होड़ में इस पर दो लाख से अधिक खर्च कर दिये. एक मंत्री दिल्ली के पांच सितारा होटल में ठहरे (जिसके हकदार नहीं हैं) और दो दिनों में लगभग तीन लाख का होटल बिल आया. पीने, खाने, ठहरने सबका. किसी मंत्री ने चंद दिनों में लाखों फोन पर ही खर्च कर दिये. ऐसी असंख्य चीजें हैं.
एजी रिपोर्ट के अनुसार 4,538 करोड़ के हिसाब नहीं मिल रहे. इसकी जांच हो, तो फिजूलखर्ची, अपव्यय और दुरुपयोग (घोटाला, घपला अलग कर दीजिये) के अनंत उदाहरण मिलेंगे. दूसरी तरफ लाल कार्डधारी गरीबों की स्थिति?
इस राज्य में पागल कुत्तों के काटने से गरीबों को मौत की, जो सौगात मिलती है, उसकी दवा उपलब्ध नहीं. कुछ दिनों पहले तक रांची सिविल सर्जन ने अपने यहां सूचना लगा रखी थी कि कुत्ता काटने का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं. पता चला इसके लिए पैसे नहीं हैं. मंत्री से पूछिए, तो कहते हैं, सचिव से पूछिए. सचिव कहते हैं, फंड चला गया है.
सिविल सर्जन कुछ और कहते हैं. बहरहाल हमारा मकसद इस विषय पर शोध करना नहीं है कि कौन सच बोल रहा है? राज्य के एक नागरिक की हैसियत से हमें यही पता है कि अस्पताल जाने पर यही कहा जा रहा है कि पैसे नहीं हैं, फंड नहीं है, दवा नहीं है. यह तो स्वास्थ्य विभाग की जवाबदेही है कि वह तय करे कि कौन झूठ बोल रहा है? कहां फाइलें अटकी हैं ?
उल्टे स्वास्थ्य विभाग के एकाध जिम्मेवार लोगों ने व्यंग्य किया कि प्रभात खबर पूरे राज्य में यह कार्यक्रम चलाये. प्रभात खबर यह नहीं कहना चाहता कि जिस गरीब जनता के कर से आपकी तनख्वाह या ऐशोआराम का भुगतान हो रहा है, उसके प्रति आपकी एकाउंटबिलिटी क्या है? किस कार्य के लिए सरकारी कोष से अफसरों- कर्मचारियों को वेतन मिलते हैं? सरकारी नौकरों से शायद मंत्री भी यह हिसाब लेते ही होंगे. पर मूल सवाल यह है कि जिस राज्य की जनता, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर मिला कर लगभग 8000 करोड़ प्रतिवर्ष सरकारी खजाने में देती है, वहां अत्यंत गरीबों, आदिवासियों को मौत के कुएं (पागल कुत्तों के काटने पर) से निकालने के लिए पैसा उपलब्ध नहीं है.
पर जनता द्वारा दिये गये कर के पैसे यानी सरकारी खजाने से सत्ताधारी समूह के घटक नेताओं (कानूनन और नैतिक रूप से जिसके वे हकदार नहीं हैं) की उड़ान पर फिजूलखर्ची, मंत्रियों के अनाप-शनाप शगल पर बेशुमार खर्च के लिए धन उपलब्ध है. सरकारी खजाना खुला है. उल्लेखनीय है कि झारखंड में पागल कुत्तों-सियार वगैरह के काटने से काफी गरीब लोग मरते हैं. हर साल.
यह सवाल उठाने के लिए प्रभात खबर ने कुछेक दिनों के लिए यह काम प्रतीकात्मक तौर पर हाथ में लिया. 27 जून तक, समाज के सबसे गरीब 118 लागों को इंजेक्शन लग चुके हैं. समाज के विभिन्न समूहों, उदार लोगों व निरामया अस्पताल के सहयोग से. प्रभात खबर के युवा सहकर्मियों के परिश्रम से. 40 आदिवासी, 25 औरतें, 13 मुसलिम समाज के लोग, फिर सदान और अन्य गरीब इसका लाभ ले चुके हैं. दूर देहात और गांव से आये गरीबों की पीड़ा, शायद ही सत्ता में बैठे लोग समझें.
पर इस प्रयास ने लोगों के मन में सवाल जरूर खड़ा किया है. सवाल कि झारखंड राज्य, नेताओं के ऐशोआराम के लिए बना या गरीबों के कल्याण के लिए? जो आदिवासियों, दलितों, मुसलिमों के नाम पर राजनीतिक व्यापार और सत्ता भोग में डूबे हैं, वे इन गरीब आदिवासियों-दलितों-मुसलिमों-सदानों की खबर भी रखते हैं या सिर्फ माला जप कर अपनी दुनिया में रमे हैं?
हमारा मकसद सिर्फ सवाल खड़ा करना ही नहीं था, बल्कि यह बताना भी था कि यह असंभव काम नहीं है. यह जन सहयोग से साबित भी हुआ. पर जो जनता की रहनुमाई के दावेदार हैं, पेड दावेदार (पैसा, सुविधाएं, ऊपर से घूस, कमीशन अलग) हैं, उनके पास इन सवालों के क्या जवाब हैं?
दिनांक : 29-06-07
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