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ये चेहरे और इनके काम याद रखें!

– हरिवंश – जो संभावना थी, सच हुई. सर्वोच्च न्यायालय से झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष के खिलाफ, यूपीए समर्थकों को ‘रिलीफ’ (राहत) नहीं मिली. पुन: झारखंड विधानसभाध्यक्ष 13 सितंबर को इन निर्दल विधायकों के मामले की सुनवाई कर रहे हैं. परिस्थितिगत कयास लगाये जा रहे हैं कि कमलेश सिंह, एनोस एक्का और स्टीफन मरांडी की […]

– हरिवंश –
जो संभावना थी, सच हुई. सर्वोच्च न्यायालय से झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष के खिलाफ, यूपीए समर्थकों को ‘रिलीफ’ (राहत) नहीं मिली. पुन: झारखंड विधानसभाध्यक्ष 13 सितंबर को इन निर्दल विधायकों के मामले की सुनवाई कर रहे हैं. परिस्थितिगत कयास लगाये जा रहे हैं कि कमलेश सिंह, एनोस एक्का और स्टीफन मरांडी की सदस्यता खतरे में पड़ सकती है. यह फैसला करने का अधिकार विधानसभाध्यक्ष को है. वह कह ही चुके हैं कि दल-बदलुओं को सजा मिलनी ही चाहिए.
पर, अच्छा होता कि कानूनन जायज या सही होने के बावजूद झारखंड के स्पीकर मान्यवर केसरीनाथ त्रिपाठी (पूर्व उत्तरप्रदेश विधानसभाध्यक्ष) की राह न चलते. इन तीनों द्वारा यूपीए को समर्थन के बावजूद यूपीए को सरकार बनाने में कठिनाई है. फर्ज करिए कि इन तीनों की सदस्यता नहीं जाती, तब भी भाकपा (माले) यूपीए को सरकार बनाने में सहयोग करेगा, यह संदिग्ध है.
बाबूलाल मरांडी के मंच के स्टीफन मरांडी सहयोग करेंगे या नहीं, यह स्पष्ट नहीं, क्योंकि श्री मरांडी का मंच राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहा है. ऐसी स्थिति में प्रस्तावित यूपीए सरकार भी ऑक्सीजन पर चलती रहेगी.
एनडीए सरकार को गिराना यूपीए के लिए आसान हो सकता है, पर सरकार बनाना लगभग नामुमकिन. भला, एक निर्दल की अगुवाई में निर्दलीयों की सरकार (राजद के शामिल होने की चर्चा है) को बाहर से समर्थन देकर कांग्रेस और झामुमो चला पायेंगे? अगर स्पीकर तीन विधायकों के मामले में कोई कदम उठाते हैं, तो एनडीए को जरूर मदद मिलेगी. फिर भी उसे बहुमत के लिए कुछेक चेहरे चाहिए.
संभावना है कि वे मिल भी जायें. फिर भी निर्णायक बहुमत नहीं रहेगा. इसलिए इस स्थिति से निकलने के लिए जरूरी है कि एक बार पुन: जनता की अदालत, नयी विधानसभा का आकार और भविष्य तय करे. झारखंड की मौजूदा स्थिति, संकट, संशय और ऊहापोह का सर्वश्रेष्ठ समाधान है, चुनाव.
चुनाव ही, झारखंड की राजनीति को और गंदा होने से बचा सकता है. जनमानस में यह स्पष्ट धारणा है कि झारखंड में सरकारें ‘डील’ से बन और बिगड़ रही हैं. निर्दल विधायकों को पटा कर. उनकी शर्त्तों को मान कर. यह गलत भी हो सकता है, क्योंकि परदे के पीछे की बदशक्ल राजनीतिक दुनिया का असली चेहरा दबा, छुपा और ढका है.
मार्च 2005 में सरकार गठन को लेकर झारखंड में हुए ड्रामे में ही कई लोक मान्यताएं सार्वजनिक हुईं. पहली बात यह चर्चित हुई कि यूपीए (खासतौर से गुरुजी कैंप) निर्दल विधायकों को पटाने में विफल रहा. एनडीए अपने संसाधनों से पटा लिया. फिर माननीय विधायक जयपुर घूमे. इन दिनों यह चर्चा है कि फिर यूपीए ने तीन माननीय विधायकों की शर्त्तों को माना.
इस बार ये लोग दिल्ली (पांच सितारा लि-मेरेडीएयन), हरियाणा, गोवा, केरल, हरिद्वार की यात्रा पर हैं. परदे के पीछे हो रहे ये डील, सौदेबाजी और बनाने-बिगाड़ने का खेल अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, पर अज्ञात और अनजाना. इसलिए मान लिया जाये कि यह सब अफवाह है? दोनों एनडीए और यूपीए पाक साफ हैं. फिर भी चुनाव ही क्यों एकमात्र हल है?
एनडीए सरकार में काम करते हुए चार मंत्रियों को पिछले डेढ़ साल में जनता ने देखा. इनकी कार्यशैली, कार्यक्षमता और दृष्टि सार्वजनिक हुई. ये न सिद्धांतवश एनडीए के साथ आये थे, न वैचारिक मतभेद के कारण पलटे. इन्होंने घुटना टेक सरकार को हर जगह झुकाया.
हर गलत काम कराये. सरकार बचाने के लिए मुख्यमंत्री इनकी मांगों के आगे झुकते रहे. अब इन लोगों ने उन बिंदुओं पर सरकार को सार्वजनिक ढंग से ब्लैकमेल करना शुरू किया, जहां झुक कर अर्जुन मुंडा कुछेक महीने सरकार तो बचा सकते थे, पर वे कानूनी फंदे में फंसते. इन मंत्रियों ने उन्हें वहां पहुंचा दिया, जहां उनके पास दो ही विकल्प थे, (1) झुक कर कुछेक माह सरकार का अस्तित्व बचा लें और (2) अपना अस्तित्व खतरे में डाल दें. खुद कानूनी फंदे में फंस जाये.
इन मंत्रियों की जीवनशैली, कामकाज और शौक को छोड़िए. बानगी के तौर पर चावल के दाने की तरह एक-एक काम चुन कर परख लीजिए.
हरिनारायण राय : अनंत इच्छाओं के धनी. वह प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 650 करोड़ की सड़कें बनवाना चाहते थे. इन सड़कों की क्वालिटी की मानिटरिंग केंद्रीय जांच एजेंसियां करती हैं. बिहार में इस योजना के तहत सड़क बनवाने का काम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र सरकार की एक एजेंसी से करवा रहे हैं. झारखंड में भी मुख्यमंत्री यही चाहते थे. माननीय मंत्री महोदय अड़े थे कि 650 करोड़ की सड़कें उनके ठेकेदार बनायेंगे. इसी तरह प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी लगभग 239 सड़कों को केंद्र सरकार की जांच एजेंसी ने अपनी मानिटरिंग में स्तरीय नहीं पाया था. यह जांच केंद्रीय कानून के तहत जरूरी है, पर मंत्री महोदय तैयार नहीं थे. मुख्यमंत्री यह जांच कराना चाहते थे.
ऐसे मंत्री के साथ यूपीए या एनडीए की सरकार कैसे चलेगी? कब तक ब्लैकमेल होगी? इसलिए चुनाव ही समाधान है.
कमलेश सिंह : हरि अनंत, हरि कथा अनंता. इनके कामकाज, दल-बदल, बयान और बखान से परे हैं. 60 के दशक के हरियाणा के ‘आया राम गया राम’ के यह 21वीं सदी की प्रतिमूर्ति हैं. कोदाईबांक बांध बहने के बरखास्त इंजीनियर के पैरोकार. गरीबों को मुफ्त नमक न बांटनेवाले घोटालेबाज अफसरों के अभिभावक. सिंचाई विभाग के भ्रष्टाचार के तथ्य, सभ्य समाज को स्तब्ध कर देंगे. क्या एनडीए या यूपीए दोनों के लिए यह मंत्री भरोसेमंद हैं?
एनोस एक्का : मोबाइल दारोगा ट्रांसफर. डीटीओ. लोगों की सेवा वापसी का मामला. ट्रांसफर-पोस्टिंग के कारनामे. ट्रांसपोर्ट विभाग में हो रही अनियमित चीजें. माननीय मंत्रीजी, नेशनल रूरल इंपलायमेंट स्कीम (एनआरइपी) विभाग, चाहते थे कि ग्रामीण विभाग से अलग कर उन्हें दे दिया जाये. उल्लेखनीय है, इस विभाग में केंद्र से काफी धन आ रहा है. मंत्रीजी ग्राम सेवा करना चाहते थे या धन सेवा, यह वही बता सकते हैं.
किस सीमा तक कोई सरकार अनियमित और गैरकानूनी चीजें सहन कर सकती है? यूपीए हो या एनडीए, दोनों को ऐसे मंत्री संकट में डाल देंगे. एनडीए को तो डाल ही दिया है, यूपीए भी इन्हें लेकर सरकार बना ले, तो इस अनुभव से नहीं बचेगा?
इसलिए चुनाव!
मधु कोड़ा : ट्रैक्टर खरीद प्रकरण में अपने मित्र के खिलाफ सीबीआइ जांच न होने देने के लिए कटिबद्ध. माइंस बंटवारे में पूरी आजादी की इच्छा.
क्या ऐसे निर्दलीयों के बल कोई सरकार अपना भविष्य सुनिश्चित कर सकती है? ऐसी सरकार राज्य को प्रगति राह पर तेजी से ले जा सकती है?
इसलिए ऐसे तत्वों से मुक्ति और निर्णायक बहुमत के लिए चुनाव ही रास्ता है.याद करिए, झारखंड की पहली सरकार के मंत्री, लालचंद महतो, मधु सिंह, समरेश सिंह और बच्चा सिंह को.
इस विधानसभा के चार ‘हीरे’ हैं, एनोस, हरिनारायण राय, मधु कोड़ा और कमलेश जी. झारखंड की पहली विधानसभा के चार ‘कोहिनूर’ थे लालचंद, मधु सिंह, समरेश सिंह और बच्चा सिंह. झारखंड के सौंदर्य में ये कुल आठ (चार ‘हीरे’ और चार ‘कोहिनूर’) नहीं होते, तो आज झारखंड की राजनीति इतनी बदनाम नहीं होती. सांकेतिक तौर पर एक-एक को याद करिए. चावल के दाने की तरह हरेक का थोड़ा-थोड़ा स्मरण.
लालचंद महतो : पूरे झारखंड को बिजली से जगमगाने का हुंकार भरनेवाले महतो, झारखंड को ही अंधकार में डालने के बीज बो गये. जब मंत्री थे, तो प्रभात खबर में ही उनकी पुरी होटल की दास्तां छपी. आगबबूला हुए. फिर मौन रहे. अब सब सूचनाएं जगजाहिर होने पर कहते हैं, परिवार का पाटर्नरशिप है. टीवीएनएल में कोयला आपूर्ति में परिवार के लोगों की सेवाएं. ज्योति कंस्ट्रक्शन की गड़बड़ी. स्टेट पावर को निजी जागीर समझनेवाले.
मधु सिंह : बाबूलाल मरांडी खुद ही कह चुके हैं कि उनके मंत्री के रूप में मधु सिंह ने उनसे निबंधन विभाग मांगा. बदले में सालाना 60 लाख देने का वादा. एक मुख्यमंत्री को उनके मंत्री द्वारा सीधे घूस देने का आरोप. हिंदुस्तान में शायद पहली बार झारखंड में ही सुना गया.
संविधान बनानेवाले जीवित होते, तो आत्महत्या ही करते. एक उद्योगपति को राज्यसभा में भेजने का अग्रिम एडवांस लेने के आरोप में जदयू से निलंबित हुए. मंत्री के रूप में कारनामों की चर्चा, सभ्य समाज और कानून से चलनेवाले राज्य के लिए धब्बा हैं.
समरेश सिंह : अपने ही इंजीनियरिंग कॉलेज को सरकारी मान्यता, पैसा देने के लिए प्रयासरत रहे. एक वेबल नामक कंपनी से समझौता कर राज्य पर 175 करोड़ की चपत लगाने का कुचक्र रचा. कानून के रास्ते पर चलने से परहेज. रोज नये सचिव चाहिए थे, जो मंत्री जी की गैरकानूनी चीजों को ठीक करता. ‘रंग में भंग’ नहीं डालता.
बच्चा सिंह : कभी किसी अफसर से नहीं पटी. विभाग में मनमाने तौर-तरीके से काम. कभी मुख्यमंत्री से नाराज, कभी खुश. विभाग में लगभग अराजकता और अव्यवस्था.
अगर इन मंत्रियों के दास्तां लिखे जाते, तो यह झारखंड के हित में होता. दरअसल झारखंड की राजनीति में सिविल मूवमेंट कारगर होता, तो इन सभी आठ ‘हीरों और कोहिनूरों को परखने-जांचने के लिए जांच एजेंसी रूपी जौहरी लगाये जाते.
जो विपक्ष, आज झारखंड में सत्तारूढ़ होने के लिए व्यग्र और बेचैन है, वह भी झारखंड की बदहाली के लिए बराबर का हिस्सेदार है.
विपक्ष के रूप में यूपीए की विफलता के क्या कारण हैं? क्या विपक्ष का मौन, जानबूझ कर है? झारखंड में जो कुव्यवस्था, अशासन, अराजकता, भ्रष्टाचार सार्वजनिक जीवन में पसरा-फैला है, क्या विपक्ष उससे अपरिचित है? क्यों नहीं ये सवाल, विधानसभा में या विधानसभा के बाहर नहीं उठते? क्यों विरोधी दल, आंदोलन, विरोध या संघर्ष से झारखंड में पसरे भ्रष्टाचार के खिलाफ बुलंद आवाज नहीं उठाते?
चुनाव, इसलिए भी ताकि झारखंड को एक कारगर सरकार और ईमानदार विपक्ष मिल सके. इतना ही नहीं, चुनाव इसलिए भी जरूरी है कि ये सवाल, चुनावों में मुख्य बहस के बिंदु बन कर उभरें और उठें. जब जनता के बीच बहस के एजेंडा में मंत्रियों के कुकर्म, विपक्ष की विफलता, झारखंड के पिछड़ेपन के सवाल उठेंगे, तो इस गर्भ से एक नयी राजनीति निकलेगी. इस नयी राजनीति के लिए भी चुनाव जरूरी है.
दिनांक : 13-09-06

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