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जो ढाबा नहीं चला सकते, वे हमारा-आपका भविष्य तय कर रहे हैं!
– हरिवंश – संदर्भ : झारखंड में सत्ता खेल चुनाव ही रास्ता है! डॉ राममनोहर लोहिया कहा करते थे, रोटी बार-बार पलटने-सेंकने से कच्ची नहीं रहती. उनका आशय था कि जब सरकार संकटग्रस्त रहने लगे, विरोध-विक्षोभ बढ़े, तो तिकड़म-षड्यंत्र और जोड़-तोड़ की कोशिश न हो, परदे के पीछे खेल न चले, बल्कि लोकतांत्रिक भावना-मर्यादा के […]
– हरिवंश –
संदर्भ : झारखंड में सत्ता खेल
चुनाव ही रास्ता है!
डॉ राममनोहर लोहिया कहा करते थे, रोटी बार-बार पलटने-सेंकने से कच्ची नहीं रहती. उनका आशय था कि जब सरकार संकटग्रस्त रहने लगे, विरोध-विक्षोभ बढ़े, तो तिकड़म-षड्यंत्र और जोड़-तोड़ की कोशिश न हो, परदे के पीछे खेल न चले, बल्कि लोकतांत्रिक भावना-मर्यादा के तहत जनता के बीच जायें. पुन: चुनाव में जायें. बार-बार जायें, तब तक, जब तक सरकार चलाने का स्पष्ट आदेश मतदाता नहीं देते.
यह तर्क उठेगा कि गरीब लोकतंत्र, बार-बार चुनावों का बोझ उठा पायेगा? पर आप उस अनिर्णय, ठहराव और अस्थिरता की कल्पना कीजिए, जो सरकार के भविष्य की अनिश्चितता से उपजते हैं. इस राजनीतिक अस्थिरता की कीमत क्या है? बार-बार ऐसी स्थिति से अराजकता फैलती है. कुशासन बढ़ता है. भ्रष्टाचार तो झारखंड की शिराओं में प्रवाहित हो रहा है. विकास वैसे भी लूट का पर्याय बन गया है. ‘जनता’ तो किसी के ध्यान में है, नहीं. सारी लड़ाई, अधिक सत्ता पाने, गद्दी हथियाने के लिए है. सत्ता भी किसलिए? सुरक्षा, रोबदाब और भ्रष्टाचार की छूट के लिए. ऐसी अराजक परिस्थिति में अगर बार-बार चुनाव होते हैं, तो जनता का क्या नुकसान होनेवाला है?
भला हो, उन पुराने कानूनों का, जिनके कारण दल-बदल संभव नहीं. अन्यथा हरियाणा में ‘आयाराम-गयाराम’ (एक दिन में दो-तीन बार दल बदल कर) नयी राजनीतिक संस्कृति डाल गये. इसके बाद तो भजनलाल ने रातोंरात सरकार और पाट समेत ‘जनता दल’ से ‘कांग्रेसी’ हो गये. अगर दल-बदल कानून नहीं होता, तो झारखंड में हमारे विधायक घंटे-घंटे सरकार बनाते-गिराते.
झारखंड की त्रासदी यह है कि जो लोग ढाबा चलाने का हुनर , कौशल नहीं रखते, वे हम झारखंडी जनता का इस 21वीं सदी में भविष्य-भाग्य-नियति तय कर रहे हैं. सरकार या मंत्रालय चलाना अब एक ‘आर्ट’ (कला) है. यह कौशल, हुनर और क्षमता का काम है.
अब सरकार चलाना या विकास करना, ‘विजन’ से जुड़ा प्रसंग है. पर जो झारखंडी राजनीतिज्ञ इस काम में लगे हैं, उनका व्यक्तित्व परखिए. उद्दंडता, कुछ भी बोलना, अनर्गल प्रलाप. इन्हें यह एहसास नहीं है कि ये किस पद पर बैठे हैं? रोज-रोज मंत्री अपनी ही सरकार की फजीहत करे? मंत्रिमंडल के फैसले पर अंदर मुहर लगाये, बाहर आकर उसी फैसले पर धमकी दे? झारखंड में ‘भारतीय संविधान’ और लोकतंत्र का नया चेहरा दिख रहा है.
एक साथ सरकार और विपक्ष, दोनों की भूमिका में है, इस सरकार के लोग. संविधान में मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेवारी होती है. या तो मंत्रिमंडल के फैसले से असहमत मंत्री, इस्तीफा देकर विरोध में आयें या अपनी संवैधानिक मर्यादा समझें. सार्वजनिक जीवन में बची-खुची शालीनता-मर्यादा नष्ट न करें. झारखंड के मंत्री ऐसे हैं कि मंत्री होकर भी वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों तक ही सिमटे हैं. वे पूरे राज्य के मंत्री हैं, शायद इसका भी एहसास नहीं है, इन्हें. भाग्य का खेल देखिए, जो पंचायत चलाने का कौशल- हुनर नहीं रखते, उन्हें अलग राज्य झारखंड के गठन ने राज्य चलाने का मौका दे दिया. पर काबिलियत-दृष्टि पंचायत की ही है.
इन ‘मंत्रियों’ का साहस-चरित्र देखिए. रमेश सिंह मुंडा कह रहे हैं कि अब बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. इसी बाबूलाल मरांडी की सरकार को गिराने के लिए रमेश सिंह मुंडा ने पूरी ताकत झोंक दी थी. याद करिए बाबूलाल मरांडी क्यों गये, क्योंकि वह लालचंद महतो, मधु सिंह वगैरह के ‘ब्लैकमेल’ के आगे नहीं झुके.
फर्ज कीजिए कि बाबूलाल मरांडी पुन: मुख्यमंत्री बनते हैं, फिर छह माह बाद यही स्थिति, यही मंत्री पैदा नहीं करेंगे, इसकी क्या गारंटी है? ऐसा करना, इन नेताओं के जेहन-फितरत और चरित्र में है. अगर नयी सरकार बन गयी तो कुछेक महीने बाद ही ये नारा लगायेंगे कि अर्जुन मुंडा बेहतर थे. अपने-अपने विभागों के प्रति इन मंत्रियों की क्या जवाबदेही है?
झारखंड में लगातार बंद हो रहे हैं, पर गृहमंत्री दिल्ली में हैं. सड़कों की स्थिति खराब हो रही है, पर कोई देखनेवाला नहीं है. कुछ जिलों में बरसात कम हुई है, पर राजनीतिज्ञ सुख-सुविधा-सुरक्षा में नहा रहे हैं. मौज कर रहे हैं. झारखंड सरकार के मंत्रियों में न आत्म अनुशासन है, न राजनीतिक तहजीब. वे न समय का ध्यान रखते हैं, न अपनी भाषा का.
संविधान में ‘मुख्यमंत्री’ के पद की गरिमा है. व्यक्ति इस पद पर आते-जाते रहेंगे, पर पद की गरिमा रहेगी, तब शासन चलेगा. कल इन्हीं विक्षुब्ध मंत्रियों में से कोई मुख्यमंत्री बन जाये, तो क्या वह अपने हर मंत्री से पूछ-पूछ कर सांस लेगा.
अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री हैं, कल नहीं रहेंगे. पर मुख्यमंत्री पद की गरिमा-मर्यादा का ध्यान उन्हें भी रखना चाहिए. वह जोड़-तोड़, सबको खुश करके इस पद पर रहना चाहते हैं, तो कुछ दिन और टिक सकते हैं, पर झारखंड के मुख्यमंत्री की गरिमा को खोकर. उन्हें सीधे इस्तीफा दे कर चुनाव की बात करनी चाहिए.
पर झारखंड क्या ऐसे ही चलता रहेगा? दुर्भाग्य यह है कि राजनीति अब सिद्धांत, आदर्श, निष्ठा और ईमानदारी का खेल नहीं है. आज चुनाव वही जीत सकता है, जिसके पास पैसा, अपराधी, जाति, धर्म की पूंजी हो, जो मतदातओं को ठगने की विद्या में पारंगत हो. जनता को छलने की कला में सिद्धहस्त हो. झूठे सपने दिखाने में माहिर हो.
इसलिए चुनाव जीत जाने से यह जाहिर नहीं होता कि जनप्रतिनिधि बनते ही अयोग्य, अपराधी, लुटेरे, हमारी नियति तय करने के योग्य बन गये. ‘झारखंड’ के लिए लड़नेवाले साफ-सुथरे, ईमानदार लोगों की जमात का फर्ज है कि वे झारखंड के कोने-कोने में जा कर इन जनप्रतिनिधियों की करतूतों को बतायें.
डॉ रामदयाल मुंडा, बीपी केसरी, त्रिदीव घोष, शाहिद हसन, आरपी साह, प्रोफेसर एसबी महतो जैसे अनेक समझदार, समर्पित और सम्मानित लोग झारखंड में मौजूद हैं. रांची से जिलों, गांवों तक ऐसे लोग फैले हैं. अगर ये अच्छे लोग गोलबंद होकर राजनीतिक सफाई का अभियान चलाते हैं, तो शायद झारखंड का पुनर्जन्म हो.
‘झारखंड’ राज्य की लड़ाई लड़नेवाली जनता एक और पहल करे. अपनी तकदीर बदलने के लिए. यह जन पहल चमत्कार कर सकता है.
12 अक्तूबर से सूचना का अधिकार कानून पूरे देश में लागू हो रहा है. इस कानून के तहत एक आम नागरिक गोपनीय से गोपनीय सूचनाएं मांग सकता है. सरकार देने के लिए विवश है. झारखंड में एक जन अभियान चले कि पिछले पांच वर्षों में कौन-कौन बड़े ठेके किसको दिये गये? क्यों दिये गये? रिटायर्ड लोग चेयरमैन कैसे बने? बड़े-बड़े ठेकों की फाइलों में क्या दर्ज है? कौन सड़क किसने बनवायी? कितने पैसे लगे? उस सड़क की हालत क्या है?
मंत्रियों पर कितने खर्च हुए? फाइलें, फाइलों पर दर्ज टिप्पणियां और फाइलों के मजमून दलाली, लॉबिंग और पक्षपात के फिल्म दिखायेंगे. मंत्रियों की करतूतें-अफसरों के कारनामे सड़कों-गलियों तक ध्वनित होंगे. यकीन करिए, अगर ये सूचनाएं मिल गयीं, तो पिछले पांच वर्षों से सत्ता सुख भोग रहे, न जाने कितने चेहरे सीखचों के पीछे नजर आयेंगे. यह झारखंड पुननिर्माण का दूसरा अध्याय होगा.
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