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अगर माकन की चली होती!
– हरिवंश – अजय माकन भी झारखंड चुनाव प्रचार में आये हैं. याद करिए, वह झारखंड कांग्रेस प्रभारी थे. 24.09.07 से 19.02.08 तक. उन दिनों के प्रभात खबर पलटते हए अतीत के पन्ने खुलते हैं. चर्चिल ने कहा था, अतीत में जितनी दूर तक देख सकें, देखें. इससे भविष्य की झलक बनती है. पर यह […]
– हरिवंश –
अजय माकन भी झारखंड चुनाव प्रचार में आये हैं. याद करिए, वह झारखंड कांग्रेस प्रभारी थे. 24.09.07 से 19.02.08 तक. उन दिनों के प्रभात खबर पलटते हए अतीत के पन्ने खुलते हैं. चर्चिल ने कहा था, अतीत में जितनी दूर तक देख सकें, देखें. इससे भविष्य की झलक बनती है. पर यह बहुत दूर की बात नहीं है. केंद्र में मनमोहन सिंह की दूसरी बार सरकार बनी. मई में लोकसभा चुनावों के बाद. तब झारखंड को लेकर लोकसभा में बहस हुई.
झारखंड से चुने गये एक गैर कांग्रेसी सांसद ने कहा कि काश, कांग्रेस ने अजय माकन की बात मान ली होती, तो झारखंड के हालात यह नहीं होते. किसी सरकारी पक्ष के व्यक्ति के लिए विपक्ष से यह प्रशंसा? वह भी आज की राजनीति में. बड़ा कंप्लीमेंट है. यह भी दिलचस्प है कि उन दिनों केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत समेत कांग्रेस के सभी झारखंडी सांसद, कोड़ा सरकार के खिलाफ थे. फिर भी कोड़ा बने रहे.
फर्ज करिए, कांग्रेस या यूपीए ने अजय माकन की बात मान ली होती, तो आज क्या हालात होते? कांग्रेस को किसी गंठजोड़ की जरूरत नहीं होती. तब कोड़ा समर्थन वापसी मानस के पीछे तत्कालीन सरकार के कुकर्म तो थे ही, एक और वजह थी. कांग्रेसियों का युवा तबका तब से ही यह कहने लगा था, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड वगैरह में कांग्रेस अकेले चले.
भले उसे विपक्ष में बैठना हो. इस खेमे का मानना था कि इन इलाकों में अपने बूते नयी शुरुआत करनी होगी. अपने दम. पर तब बात बनी नहीं. इसलिए आज कांग्रेस भी कोड़ा बोझ से दबी है. हालांकि वह श्रेय ले सकती है कि कोड़ा सरकार के पापों की सफाई भी हम कर रहे हैं. फिर भी कोड़ा प्रयोग की जिम्मेदारी से कांग्रेस बच नहीं सकती. झारखंड के कांग्रेसी किसी कीमत पर नहीं चाहते थे कि कोड़ा जायें. शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बनें. राष्ट्रपति शासन खत्म कराने के लिए भी झारखंड के कांग्रेसियों ने जी-जान से कोशिश की. तब भी कोड़ा का नाम उछला.
पर सरकार में कोड़ा और उनके साथी क्या कर रहे थे? इसको बखूबी किसी कांग्रेस प्रभारी ने समझा, तो वह अजय माकन थे. गौर करिए, उनके इन बयानों को – ‘ ….. मैं अपनी बात आपसे कहने नहीं आया हूं, बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की बात कह रहा हूं. भ्रष्ट मंत्रियों पर कंट्रोल करें. इसके लिए हम 60 दिन की मोहलत दे रहे हैं.’ (प्रभात खबर, 15 नवंबर, 2007).
(अवसर था झारखंड का सातवां स्थापना दिवस. कांग्रेस ने अजय माकन, सुबोधकांत और रामेश्वर उरांव वगैरह के नेतृत्व में सीएम आवास पैदल मार्च किया. इसे प्रोटेस्ट मार्च कहा गया. मुख्यमंत्री कोड़ा को तब अजय माकन ने उपरोक्त बातें कहीं. सरकार को अल्टीमेटम दिया गया.
15 जनवरी तक सुधरें, नहीं तो रास्ता अलग. कांग्रेसियों ने उस दिन यह भी कहा, पानी सिर से ऊपर. इसलिए सार्वजनिक रूप से यह सब कह रहे हैं)
इसके पहले 18 अक्तूबर 2007 को अजय माकन ने कहा, … सरकार को अब ज्यादा वक्त नहीं दे सकती कांग्रेस. 28 जनवरी 2008 को कहा, … सोनिया चाहती हैं, स्वच्छ शासन. यूपीए के कुछ घटकों ने हल्ला किया, तो माकन ने जवाब दिया, … मैं बोल रहा हूं, मतलब एआइसीसी बोल रही है. 20 जनवरी 2008 को माकन ने साफ-साफ कहा, …. नहीं चाहिए कोड़ा और उनके मंत्री. 19 जनवरी को प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कहा …. मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और सरकार के अन्य मंत्री कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार करने सिमरिया नहीं जायें. कांग्रेस को उनकी मदद नहीं चाहिए.
यह बयान पर्याप्त था, संकेत समझ लेने के लिए. किसी अन्य राज्य में कांग्रेस के समर्थन से चलती सरकार के मुख्यमंत्री-मंत्रियों के लिए ऐसा बयान कांग्रेस प्रभारी द्वारा दिया गया होता, तो आत्मसम्मान के लिए तुरंत सरकार इस्तीफा दे देती. पर जहां सौदेबाजी होती है, वहां आत्मस्वाभिमान नहीं होता. अब उस सरकार के कारनामे जगजाहिर हो गये हैं. इससे स्पष्ट है कि तब सरकार इतनी फजीहत के बाद भी किस मकसद से चलायी जा रही थी?
टंडवा, सिमरिया, ईटखोरी, पत्थरगड्डा, गिद्दौर में अजय माकन ने सभाएं की. सिमरिया विधानसभा चुनाव के सिलसिले में. कहा, …. झारखंड में सिर्फ भ्रष्टाचार बढ़ा. 14 जनवरी 2008 के आसपास.
कोड़ा सरकार के कई मंत्री माकन से मिलने के लिए बेचैन थे. पर माकन झारखंड के मंत्रियों से नहीं मिले. एक टीवी चैनल पर 15 जनवरी को कहा, … हम भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकते. इसलिए समर्थन वापस ले रहे हैं. हमने इस सरकार को समर्थन ही दिया था कि वह अच्छा काम करे. पर ऐसा नहीं हुआ.
11 जनवरी 2008 को धनबाद में कांग्रेस की विकास संकल्प महारैली हुई. वहां अजय माकन ने कहा था,… यहां सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क, कहना मुश्किल. यह भी बताया कि केंद्र में झारखंड के लिए कुछ योजनाओं के 700 करोड़ रखे हुए हैं. लेकिन सरकार राशि लेने तक के लिए तैयार नहीं है. उस दिन भी यह कहा गया …. 15 के बाद कभी भी समर्थन वापस.
15 से आशय, 15 जनवरी 2008 था. 22 फरवरी 2008 को अजय माकन ने कहा कि हम घटक दलों को समझा रहे हैं, यह भी जानते हैं कि निर्णय नहीं हुआ, तो झारखंड की जनता हमें माफ नहीं करेगी. उन दिनों नियेल तिर्की अपने कुछ साथियों के साथ मंत्री एनोस एक्का के खिलाफ 12 फरवरी से अनशन पर थे. अजय माकन ने उन्हें जूस पिला कर अनशन तुड़वाया, तो नियेल तिर्की रो पड़े. नियेल ने निवेदन किया, कुछ नहीं तो कम से कम एनोस को तो हटवा दीजिए.
अतीत की व्याख्या, किंतु-परंतु से नहीं होती. अगर-मगर से इतिहास नहीं सुधरता. पर अतीत से संदेश मिलता है, भविष्य के लिए. निर्दलीय या गंठजोड़ की राजनीति, झारखंड की तबाही का मूल कारण है.
अजय माकन के बयान साफ थे. अगर कांग्रेस इस राह पर चली होती, तो शायद आज कांग्रेस की स्थिति भिन्न होती. झारखंड, कोड़ा या कोड़ा सरकार के मंत्रियों के कामकाज से बचता. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को एक सीट पर संतोष नहीं करना पड़ता. देश-दुनिया में झारखंड बदनाम न होता. सरकार में बैठे लोग ऐसे-ऐसे स्तब्धकारी काम कर सकते हैं, यह नहीं होता.
पर क्या वजह थी कि अजय माकन सफल नहीं हुए. यह गंठबंधन की राजनीति का ही परिणाम था. स्पष्ट है कि झारखंड शुरू से ही गंठबंधन की राजनीति (कोलिशन पालिटिक्स) का दर्द झेल रहा है. पहली सरकार बाबूलाल मरांडी के खिलाफ उपद्रव हुआ? सिर मुड़ाते ही ओले.
पहली बार राज्य बना और राजनीतिक अस्थिरता का सूत्रपात हो गया. मरांडी सरकार में साझीदार और निर्दल ही इस उपद्रव के अगुवा थे. उसी तरह अर्जुन मुंडा सरकार को अपदस्थ करने में निर्दलीयों की भूमिका रही. फिर यूपीए ने तो निर्दलों की सरकार ही पदारूढ़ करा दिया.
निर्दलीयों की अगुवाई में चली सरकार ने जो करतब किये, उससे देश स्तब्ध है. इसे समर्थन देने, चलाने की कीमत यूपीए को भी चुकानी पड़ेगी. फिर भी अजय माकन के स्टैंड की याद कांग्रेस के बचाव का कारगर हथियार है. कांग्रेस के लिए ताकत और ऊर्जा का स्रोत.
दिनांक : 22-11-09
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