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झारखंड चुनाव – 4 : मंत्रियों के कारनामे
– हरिवंश – झारखंड, चुनाव के द्वार पर है. जानना चाहिए कि कैसे थे हमारे मंत्री, जिनकी हाथ में हमारी नियति थी? थामस जाफरसन ने कहा था, राजनीतिज्ञ वह है, जो अगले चुनाव तक देखता है, राजनेता (स्टेट्समैन) वह है, जो अगली पीढ़ी को ध्यान में रखता है. इस अर्थ में झारखंड के कुछेक मंत्री […]
– हरिवंश –
झारखंड, चुनाव के द्वार पर है. जानना चाहिए कि कैसे थे हमारे मंत्री, जिनकी हाथ में हमारी नियति थी? थामस जाफरसन ने कहा था, राजनीतिज्ञ वह है, जो अगले चुनाव तक देखता है, राजनेता (स्टेट्समैन) वह है, जो अगली पीढ़ी को ध्यान में रखता है. इस अर्थ में झारखंड के कुछेक मंत्री सामान्य राजनीतिज्ञ भी नहीं थे. इन्हें चारागाह का खुला व बड़ा मैदान मिला था.
मंत्री पद का संवैधानिक कवच ऊपर से. हाल में एक मंत्री के निजी सचिव के पास से लगभग 14 करोड़ के फिक्स्ड डिपोजिट मिले हैं. अगर सूद वगैरह जोड़ दिया जाये, तो यह 17-18 करोड़ की राशि होगी.
अगर एक मामूली पीए 14 करोड़ एक जगह जमा रख सकता था, तो मंत्री क्या करते होंगे? भगवान जाने. धन्यवाद, चौकस आयकर विभाग को, जिसने केस उजागर किया. इस एक घटना से स्पष्ट है कि झारखंड के हालात क्या थे? इससे भी गंभीर बात, 42 से अधिक झारखंड सरकार की गोपनीय फाइलें उस पूर्व सचिव के घर मिलीं. याद रखिए, यह सचिव सरकारी कर्मचारी नहीं हैं. मंत्रियों को सुविधा है कि वे अपनी पसंद के सहायक रख सकते हैं. उनके हटते ही इनके पद स्वत: समाप्त हो जाते हैं.
मंत्री के हटते ही यह प्रतिनिधि भी किसी पद पर नहीं थे. इसका अर्थ यह है कि एक साधारण आदमी के घर सरकार की 42 गोपनीय फाइलें अब तक पड़ी रहीं? इस सचिव के मंत्री महोदय 15 महीने पहले पद छोड़ चुके हैं, फिर 15 महीनों से ये गोपनीय फाइलें कैसे एक गैरसरकारी व्यक्ति के घर रहीं? क्या झारखंड सरकार के अफसरों को अपनी गोपनीय फाइलों, कागजातों के बारे में पता नहीं होता? कैसे सरकार की संवेदनशील और गोपनीय फाइलें वर्षों एक आउटसाइडर के घर रह सकती हैं? यानी झारखंड में कोई माई-बाप है या नहीं?
जो जैसा चाहे, वैसा ही करे. सूचना है कि ये फाइलें इंजीनियरों के प्रमोशन, टेंडर और आरोपों से जुड़ी हैं. हालात बताते हैं कि झारखंड में प्रमोशन, टेंडर और आरोप के विषय तिजारत के माध्यम रहे हैं. सचिव बना यह व्यक्ति कैसे सरकारी फाइलों पर तिजारत करता था? क्या गुजरे 15 महीनों में इन फाइलों की खोज सरकार में किसी ने की? यह एक घटना संकेत देती है कि झारखंड सरकार की कार्यशैली कितनी मरणासन्न, खराब (इररिसपांसिबल, अनएकाउंटेबल) है. निजी सचिव रहे महोदय के घर मात्र 14 करोड़ की राशि या सरकार की फाइलें ही नहीं मिलीं, उनका एक कमरा अभी सीलबंद है. इस तरह उनकी कुल संपत्ति का हिसाब नहीं मिला है.
यह एक घटना राज्य की सेहत बताती है. कैसे अयोग्य, धूर्त, अपढ़, अज्ञानी, देश तोड़नेवाले, आज महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच जाते हैं. कहावत है कि पानी अपना सतह तलाशता है. इसी तरह मंत्री भी अपने आसपास अपने स्तर के लोगों को ही रखते हैं.
मंत्री तो एक से बढ़ कर एक थे. शायद झारखंड के कुछेक मंत्री ऐसे हुए, जिन्होंने केंद्र सरकार के सरकारी विभागों, उपक्रमों, सार्वजनिक संस्थाओं से सीधे घूस मांगना शुरू किया. ऐसे अनेक प्रकरण चर्चित हुए. मसलन प्रधानमंत्री के परिचितों में से एक हैं, अंतरराष्ट्रीय उद्योगपति. वह झारखंड में बड़ा प्रोजेक्ट लगाने के इच्छुक हैं. उनकी टीम ने झारखंड सरकार से संपर्क किया.
तब झारखंड में सबसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति के एक गहरे मित्र थे, जिनका काम सिर्फ वसूली था. इस पक्ष से कहा गया कि यही व्यक्ति आपकी सरकारी मदद-काम करायेंगे. उक्त उद्यमी के वरिष्ठ लोग जब इस आदमी से मिले, तो इन्होंने सीधे कुछेक सौ करोड़ रुपये मांगे. वह टीम हतप्रभ. यह बात उक्त उद्यमी तक पहुंच गयी, जिनकी प्रधानमंत्री से भी पहचान है. इस तरह ऊपर तक यह सूचना पहुंची कि झारखंड में क्या हो रहा है?
एक दूसरे मंत्री के विभाग में टेंडर निकला, इंश्योरेंस कराने का. सरकारी गाड़ियों का इंश्योरेंस होना था. केंद्र सरकार के एक उपक्रम, इंश्योरेंस कंपनी ने भी टेंडर भरा. उनके लोग मंत्री से मिले. मंत्री पहली ही मुलाकात में कट मनी मांग बैठे. आगे-पीछे कोई चर्चा नहीं. सीधे बिजनेस की बात. यह भी डर-भय नहीं कि यह सार्वजनिक उपक्रम है. बात दिल्ली तक पहंचेगी. इतने बहादुर और बेधड़क लोग झारखंड में मंत्री रहे.
एक दूसरे मंत्री ने भी कमाल किया. एक विदेशी एनजीओ राहत पहुंचाने का काम करता है. दुनिया में. भारत में भी. उसका प्रतिनिधि यहां काम करने का प्रस्ताव लेकर आया. मंत्री के पीए इतने ज्ञानवान या ज्ञानशून्य (आप पाठक तय कर लें) थे कि वे उसे उद्यमी समझ बैठे. वह सीधे मंत्री के दरबार में ले गये. वहां दो-तीन पार्टियां बैठी थीं. खुलेआम पैसे भी दे रही थीं.
अचानक मंत्री आगंतुक से पूछ बैठे, आप कितना पैसा लाये हैं? वह व्यक्ति हतप्रभ. इस परिवेश से अपरिचित. उसे बात समझायी गयी, तो उसने स्पष्ट किया कि मैं उद्यमी नहीं हूं. न कारोबार करता हूं. मैं सेवा काम में लगे एनजीओ से जुड़ा हूं, जो चंदे से, डोनेशन से चलता है. इसके बाद वह व्यक्ति सीधे झारखंड से भाग कर कोलकाता पहुंचा. झारखंड में काम न करने का संकल्प लेकर.
एक अन्य पावरफुल मंत्री थे. वह एक क्लीयरेंस देने में भारत सरकार के एक विभाग से ही पैसा मांग बैठे. जब तक वह पद पर रहे, तब तक क्लीयरेंस नहीं दिया. सूचना है कि उस विभाग के सचिव ने वह बात ऊपर तक पहुंचा दी. एक सरकारी कारखाने से झारखंड के एक दूसरे मंत्री करोड़ों का फ्लैट मांग बैठे, काम के बदले.
इस तरह झारखंड के कुछेक मंत्रियों के काम-काज के विवरण और चर्चे दिल्ली पहुंचे. दिल्ली में सत्ता में बैठे लोग यह सब सुन कर स्तब्ध थे. किसी को अनुमान नहीं था कि हालात इतने बदतर हैं. मंत्रियों के पीए बने लोगों को लिखने-पढ़ने की जानकारी शायद ही थी.
जो लोग मंत्रियों से काम कराना चाहते थे, वे इन पीए लोगों से संपर्क करते. पीए लोग सौदेबाजी कर उस पाट से ही कहते, यह लीजिए सरकारी पैड-कागज, जो करना है लिखवा कर-नोट बना कर लाइए. यानी सरकारी कामकाज की जो मर्यादा-शुचिता थी, वह सड़कों पर नीलाम हो रही थी. यह थी झारखंड की स्थिति. राज्यसभा चुनावों में विधायकों की भूमिका जाहिर हो चुकी है. क्या झारखंड की राजनीति में ऐसे ही तत्व प्रभावी रहेंगे? इन चुनावों में जनता को यह भी तय करना है.
दिनांक : 31-10-09
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