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झारखंड चुनाव के संदेश

– हरिवंश – 2009 के चुनाव परिणाम, 2005 के चुनाव परिणामों से भी अधिक खंडित, जटिल और विभाजित है. इसका संकेत है कि खंड-खंड बंटा झारखंडी समाज, लगातार बंट और विभाजित हो रहा है. समाज के स्तर पर. इस चुनाव के मुख्य गेनर हैं, शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी, सुदेश महतो और कांग्रेस. बाबूलाल और कांग्रेस […]

– हरिवंश –
2009 के चुनाव परिणाम, 2005 के चुनाव परिणामों से भी अधिक खंडित, जटिल और विभाजित है. इसका संकेत है कि खंड-खंड बंटा झारखंडी समाज, लगातार बंट और विभाजित हो रहा है. समाज के स्तर पर. इस चुनाव के मुख्य गेनर हैं, शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी, सुदेश महतो और कांग्रेस. बाबूलाल और कांग्रेस दोनों एक दूसरे के कंप्लिमेंट (पूरक) साबित हुए हैं.
बाबूलाल जी और कांग्रेस गंठजोड़ ने भाजपा की लुटिया डुबो दी है. शिबू सोरेन को तमाड़ चुनाव में मिली पराजय के बाद लोग हाशिये पर डाल रहे थे. पर झामुमो की कामयाबी ने साबित कर दिया है कि शिबू सोरेन आज भी झारखंडी माटी के बड़े नेता हैं. नक्सली या अतिवामपंथी ताकतों ने भी तीन राजनीतिक समूहों के प्रति अपनी सहानुभूति दिखायी है, ऐसा चुनाव परिणामों से लगता है. वे हैं, झामुमो, आजसू और राजद.
नक्सल पृष्ठभूमि से रहे तीन लोगों को, झामुमो ने (तोरपा, खूंटी और विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्रों से) प्रत्याशी बनाया था. राजद ने भी पांकी विधानसभा से ऐसी ही पृष्ठभूमि के प्रत्याशी को उतारा था. सिमरिया विधानसभा से आजसू के प्रत्याशी भी इसी पृष्ठभूमि से थे. भले ही वे प्रत्याशी न जीत पाये हों (इनमें से सिर्फ एक झामुमो प्रत्याशी को तोरपा से कामयाबी मिली है), पर ऐसी ताकतों का स्वाभाविक रुझान इन दलों से हुआ.
लालू प्रसाद ने झारखंड चुनाव में काफी मेहनत की. पर यह संख्या पाकर भी वह यूपीए सरकार बनवाने के लिए अपरिहार्य नहीं रह गये. अगर कांग्रेस गंठबंधन और जेएमएम मिल कर सरकार बनाते हैं, तो लालू जी को लोकसभा की तरह झारखंड में भी मजबूरन कांग्रेस गंठबंधन सरकार को समर्थन देना पड़ेगा. इस तरह वे अपनी पुरानी सीटें बचा कर कामयाब तो हुए, पर कांग्रेस को बिहार में अपनी शर्त मनवाने के लिए मजबूर नहीं कर पायेंगे.
सुदेश महतो भविष्य के उभरते नेता हैं. वह अपना आधार लगातार मजबूत बना रहे हैं. पर इस चुनाव का गणित भले ही कांग्रेस गंठबंधन और जेएमएम को मिल कर सरकार बनाने का आसान संख्या आधार देता है, पर सरकार बनना या बनाना सबसे बड़ी चुनौती होगी. क्या बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन को अपना नेता स्वीकार करेंगे? जब वह कहते हैं कि हम टेंटेड (दागी) के साथ नहीं होंगे, तो उनके संकेत साफ हैं. अर्थपूर्ण और लंबी दूरी तक मार करनेवाले.
उनके इस बयान में उनकी भावी राजनीति के बीज छुपे हैं. वे बाध्य करना चाहेंगे कि बीजेपी, जेएमएम के साथ जाये. इस तरह भाजपा का वोट-बैंक बिदक कर भविष्य में बाबूलाल जी के साथ आ जाये. इस तरह बाबूलाल जी भविष्य की राजनीति कर रहे हैं. वे भविष्य में खुद बड़ी ताकत बनने के लिए अपने वर्तमान की कुर्बानी दे सकते हैं.
पर झामुमो यह अवसर नहीं गंवाना चाहेगा. क्योंकि झामुमो के लिए मत चूको चौहान वाली स्थिति है. गुरुजी को बार-बार सीएम बनने का ऐसा मौका नहीं मिलनेवाला. उनकी साध रही है कि एक बार भविष्य में वह अच्छी तरह बेरोकटोक मुख्यमंत्री के रूप में काम करें. उनका यह सपना आसानी से साकार हो सकता है, अगर कांग्रेस-जेवीएम गंठबंधन साथ आ जाये.
मन ही मन वह यह चाहेंगे भी. क्योंकि इससे उन्हें केंद्र में यूपीए का संरक्षण मिलेगा. केंद्र से कांग्रेस का वरदहस्त मिलना गुरुजी को सुरक्षा प्रदान करेगा. पर मूल पेंच है कि कांग्रेस तुरत से राजी भी हो जाये, तो क्या जेवीएम गुरुजी की ताजपोशी के लिए आसानी से सहमत होगा? सत्ता गलियारे में अनेक नये दावं-पेंच उभरेंगे.
सत्ता मैनेजर कहेंगे कि बाबूलाल जी को दिल्ली में एडजस्ट किया जाये. फिर भी वह समर्थन के लिए राजी नहीं होते, तो उन्हें बाहर से समर्थन के लिए कोशिश होगी. संभव है कि बाबूलाल जी दिल्ली में महत्वपूर्ण पद स्वीकार लें और अपने दल की नीतियां सार्वजनिक कर कहें कि झारखंड की सेक्युलर सरकार को हम इन नीतियों के तहत समर्थन दे रहे हैं. झारखंड की कोई सरकार नीतियों पर तो चलनेवाली है नहीं, इस तरह सही अवसर पर बाबूलाल जी सरकार को गच्चा दे सकते हैं. और खुद झारखंडी राजनीति की केंद्रीय भूमिका में आ सकते हैं.
कांग्रेस यह भी कोशिश करेगी कि बाबूलाल जी कांग्रेस में शामिल हो जायें. तब बाबूलाल जी को कांग्रेस मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर देगी. फिर जेएमएम को कांग्रेस प्रस्ताव दे सकती है कि गुरुजी दिल्ली में महत्वपूर्ण पद ले लें और हेमंत सोरेन झारखंड की सरकार में महत्वपूर्ण ओहदा संभालें. पर इस फार्मूला पर भी शायद सर्वसम्मति न बन पाये. अंत में एक और संभावना बन सकती है. हालांकि इसकी उम्मीद बहुत कम है.
एनडीए+ जेएमएम+आजसू मिल कर सरकार बनाने की स्थिति में होते हैं, तो शायद यह पहल भी कुछ लोग शुरू करायें. हालांकि यह समाधान स्थायी नहीं होगा. और न इस पर आसानी से सहमति होगी. झामुमो को भी इसमें रिजर्वेशन होगा. भाजपा के लिए तो और कठिनाई है. क्योंकि उसके समर्थक वर्ग और झामुमो के समर्थक वर्ग में भिन्नता है. इसलिए भाजपा को भी इस रास्ते पर चलने में संकोच होगा. इन सबके बावजूद भाजपा और झामुमो सहमत भी हो जायें, तो आजसू पार्टी जल्द तैयार नहीं होगी.
कारण, आजसू पार्टी भविष्य की राजनीति को ध्यान में रख कर अपनी राह चुनेगी. और भविष्य की राजनीति कांग्रेस और झामुमो गंठबंधन में अधिक संभावनापूर्ण दिखायी देता है. इस तरह भाजपा, झामुमो और आजसू गंठबंधन की संभावना जन्म के पहले ही लगभग खत्म है. इसलिए कांग्रेस अपनी शर्तों पर सबको प्रतीक्षा करा कर सरकार गठित करायेगी. क्योंकि हालात उसके पक्ष में हैं. केंद्र में उसकी सरकार है ही. फिलहाल झारखंड में राष्ट्रपति शासन है ही.
फिर सरकार बनाने की हड़ब़ड़ी क्या है? वैसे भी कोई मुख्य प्रतिद्वंद्वी या प्रतिस्पर्द्धी, तो है नहीं. उधर भाजपा पस्त है. इसलिए हालात कांग्रेस के अनुकूल है. इसलिए झारखंड के इन चुनाव परिणामों से सरकार बनाने में गंभीर परेशानियां खड़ी हैं. सरकार बनाना आसान दिखता है, पर एक दूसरे के अंतरविरोध गहरे और आसानी से हल निकलने देने में बाधक हैं.
दिनांक : 24.12.2009

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