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दयानंद कश्यप को नहीं जानते लालू प्रसाद

रांची: सीबीआइ गलत तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले के एक बड़े अभियुक्त के रूप में पेश कर रही है. इसके लिए वह ऐसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य बना रही है, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है. लालू प्रसाद तत्कालीन 20 सूत्री उपाध्यक्ष दयानंद कश्यप को नहीं जानते थे, न ही उन्होंने दिल्ली […]

रांची: सीबीआइ गलत तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले के एक बड़े अभियुक्त के रूप में पेश कर रही है. इसके लिए वह ऐसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य बना रही है, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है. लालू प्रसाद तत्कालीन 20 सूत्री उपाध्यक्ष दयानंद कश्यप को नहीं जानते थे, न ही उन्होंने दिल्ली में आरके राणा से एक करोड़ रुपये लिया था. इसके बावजूद सुनी सुनाई बातों के आधार पर सीबीआइ हर काम के लिए लालू को जिम्मेवार ठहरा रही है. जबलपुर हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह ने लालू प्रसाद का पक्ष पेश करते हुए यह बात कही.

सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश पीके सिंह की अदालत में चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 20ए/96 में लालू प्रसाद का पक्ष पेश करते हुए उन्होंने कहा कि सीबीआइ का यह आरोप है कि लालू प्रसाद ने सप्लायर दयानंद कश्यप को 20 सूत्री का उपाध्यक्ष बनाया. इस सप्लायर के साथ उनका करीबी संबंध था. वास्तव में लालू प्रसाद इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानते थे. इस तरह के पदों पर नियुक्ति के लिए विभाग का प्रस्ताव आता है. जांच पड़ताल कर प्रस्ताव भेजना विभाग का काम है. लालू प्रसाद ने विभाग के प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी थी. पशुपालन अधिकारी श्याम बिहारी सिन्हा से आरके राणा के माध्यम से एक करोड़ रुपये लेने का आरोप भी गलत है.

सीबीआइ ने लालू प्रसाद पर यह आरोप सुनी सुनाई बातों के आधार पर लगाया है. अधिकारियों की सेवा विस्तार भी नियमानुसार किया गया था. पशुपालन अधिकारी बीएन शर्मा का तबादला भी नियमानुसार स्थगित किया गया था. उस वक्त किसी को यह जानकारी नहीं थी कि ये लोग घोटाले बाज हैं. जानकारी मिलने के बाद तो लालू प्रसाद ने ही प्राथमिकी दर्ज करवा दी. सीबीआइ ने यह आरोप भी लगाया है कि लालू प्रसाद ने खुद ही छह फरजी आवंटन पत्र जांच के लिए दिये. बाद में उन्होंने ही जांच रोक दी. सीबीआइ का यह आरोप सही नहीं है. लालू प्रसाद को छह आवंटन पत्र मिले थे. इन आवंटन पत्रों को तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक (पशुपालन,दुमका)के हस्ताक्षर से जारी किया गया था. गुप्त सूत्रों से आवंटन पत्र के फर्जी होने की शिकायत मिलने के बाद उन्होंने सत्यता जानने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश निगरानी विभाग को दिया. उन्होंने इन आवंटन पत्रों को भी निगरानी के हवाले कर दिया.

इसके बाद लोक लेखा समिति ने एक पत्र लिख कर यह सूचित किया कि दुमका क्षेत्रीय निदेशक के हस्ताक्षर से जारी किये आवंटन पत्रों की शिकायत लोक लेखा समिति को भी मिली थी. समिति इस मामले की जांच कर रही है. इसलिए इस मामले में किसी एजेंसी द्वारा समानांतर जांच की जरूरत नहीं है. लोक लेखा समिति ने जांच के लिए इससे संबंधित दस्तावेज जब्त कर लिये हैं.

इसके बाद लालू प्रसाद ने लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा को यह जानकारी दी कि इस मामले की जांच निगरानी कर रही है. जांच में काफी प्रगति है. साथ ही उन्होंने निगरानी के तत्कालीन डीजी को यह निर्देश दिया कि वह लोक लेखा समिति से फाइलों की फोटो कॉपी ले लें और एक माह में मामले की जांच कर सही स्थिति की जानकारी दें. अगर निगरानी ने लोक लेखा समिति के पत्र को आधार मान कर जांच नहीं की तो इसमें लालू प्रसाद की कोई गलती नहीं है. फिर भी सीबीआइ उन पर साजिश रच कर जांच नहीं कराने का आरोप लगा रही है.

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