विकास और आधारभूत संरचना के निर्माण के नाम पर झारखंड में पिछले 14 वर्षो से लूट मची हुई है. कमीशनखोरी ने पूरी व्यवस्था की साख पर प्रश्नचिह्न् खड़ा कर दिया है. राज्य में बननेवाले पुल एक-दो वर्ष भी नहीं टिक पाते. इन्हें बनानेवाले कई लोगों पर सिर्फ मामूली कार्रवाई की जाती है या उन्हें छोड़ दिया जाता है. राज्य को हो रही इस क्षति से आम लोग प्रभावित हो रहे हैं. दरअसल ऐसे बुनियादी सवालों के हल नहीं निकलेंगे, तो झारखंड की जनता की किस्मत नहीं बदलेगी. पर, राजनेता ऐसे सवालों को उठने नहीं देते.
मनोज लाल, रांची
झारखंड बनने के बाद निर्मित दो दर्जन से अधिक पुल गिर गये हैं. ये सभी पांच जिलों में मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना के तहत बनाये गये थे. सभी पुल इतने कमजोर बनाये गये थे कि बरसात में पानी का बहाव नहीं सह सके. इन पुलों के गिरने से सरकार को करीब 65 करोड़ रुपये से अधिक की क्षति हुई.
सरकार ने इनमें से कुछ पुलों को तो दोबारा बनवा दिया, पर अधिकतर का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो पाया है. यही नहीं, कई पुलों के गिरने का रिकॉर्ड तक सरकार के पास नहीं है. इन मामलों में दोषी कुछ इंजीनियर/ ठेकेदारों पर तो कार्रवाई हुई, पर कुछ को बिना कोई दंड दिये छोड़ दिया गया. सबसे बड़ा पुल धनबाद जिले के बराकर नदी में गिरा था. इसका निर्माण करीब 35 करोड़ की लागत से हुआ था.
लागत हो गयी दोगुनी से अधिक
जिन पुलों का दोबारा निर्माण अब तक नहीं हुआ है, उनकी लागत भी दोगुनी से अधिक हो गयी है. धनबाद के बराकर नदी के पुल का इस्टीमेट कॉस्ट (लागत मूल्य) भी करीब ढाई गुना हो गया है. इससे बड़े राजस्व की क्षति होगी.
‘‘बराकर नदी पर पुल बनवाने के लिए डीपीआर तैयार कर लिया गया है. यह प्रयास हो रहा है कि अन्य अधूरे पुलों को भी जल्द बनवा लिया जाये.
बी राम, मुख्य अभियंता, विशेष प्रमंडल