नयी दिल्ली: केंद्र की सरकार का समर्थन हो या फिर उसे गिरने से बचाना हो, कभी बहुत ताकतवर रहे सपा और बसपा जहां उत्तर प्रदेश में हाशिये पर आ गये हैं, वहीं जदयू, राजद और इनेलोद की स्थिति भी अच्छी नहीं है. हालांकि भाजपा का दामन थामने वाले राम विलास पासवान की लोजपा का प्रदर्शन दमदार रहा जबकि ओडिशा में चिर परिचित बीजद ने भी बेहतरीन नतीजे दिये हैं.
संप्रग-1 के समय ‘ड्राइविंग सीट’ पर रही राजद ने 24 सीटें हासिल की थीं और राजद प्रमुख लालू प्रसाद रेल मंत्री बने थे. उनकी पार्टी के कई अन्य सांसद भी मंत्री बने लेकिन 2009 के चुनावी नतीजों में राजद मात्र तीन सीट पर सिमट कर रह गयी और 2014 के चुनावों में अच्छे प्रदर्शन की भविष्यवाणियों के बावजूद राजद चार सीटों से आगे नहीं बढ पायी. राजद ने हालांकि 1996 और 1998 के चुनावों में क्रमश: 14 और 16 सीटें हासिल की थीं.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने 1999 और 2004 के चुनावों में 18-18 सीटें हासिल कीं तो 2009 में 19 सीटें जीतने में कामयाब रही. भाजपा के साथ गठबंधन तोडने के बाद 2014 के आम चुनाव में अकेले दम पर चुनाव लडी जद यू को महज 2 सीटों से संतोष करना पडा. चुनाव आयोग के आंकडों पर नजर डालें तो पाएंगे कि अपने दम पर 282 सीटें जीतने वाली भाजपा को 31 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी मिली और उसे 17 . 16 करोड मत मिले.
कांग्रेस 19 . 3 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ 44 सीटों पर सिमट गयी. बसपा की वोट हिस्सेदारी 4.1 प्रतिशत थी लेकिन वह खाता भी नहीं खोल पायी. सपा की वोट हिस्सेदारी 3.4 प्रतिशत रही और वह पांच सीटें जीत पायी. उधर ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस 3.8 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी के साथ 34 सीटें जीतने में कामयाब रही.
तमिलनाडु में जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक ने 37 सीटें जीती हैं. उसकी वोट हिस्सेदारी 3.3 प्रतिशत है. माकपा की वोट हिस्सेदारी भी 3.3 प्रतिशत रही लेकिन वह केवल नौ सीटें जीत सकी.